नशीली दवाओं का खतरा सामाजिक संरचना पर गंभीर आक्रमण, यह किशोरों को भी नहीं बख्श रहा: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि नशीली दवाओं का खतरा सामाजिक संरचना पर एक गंभीर आक्रमण है, जिससे कड़ाई से निपटा जाना चाहिए और इस कार्य के लिए पुलिस के पास अभियुक्तों तक उचित पहुंच होनी चाहि। यह उपयुक्त मामलों में हिरासत में पूछताछ के जरिए ही हो सकती है।
जस्टिस सत्येन वैद्य की पीठ ने उक्त टिप्पणियों के साथ एनडीपीएस एक्ट के तहत अपराधों के लिए एफआईआर में गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए एक आवेदन को खारिज कर दिया।
मामले में पुलिस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर के बरमाना के पास एक कार को पकड़ा था, जिसे बिना किसी पंजीकरण संख्या और 15.13 ग्राम चिट्टा के साथ चलाया जा रहा था। वाहन से हेरोइन बरामद की गई थी।
जांच के दौरान यह पाया गया कि कार में पकड़े गए लोगों ने याचिकाकर्ता को 40,000 रुपये का भुगतान करने के बाद बरामद मादक पदार्थ खरीदा था। तदनुसार, याचिकाकर्ता को भी सह-आरोपी के रूप में नामित किया गया था।
अपनी गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा कि वह निर्दोष है और विचाराधीन अपराध से जुड़ा नहीं है। उसने आगे कहा कि वह कानून का पालन करने वाला व्यक्ति हैं और समाज में उसकी पहचान है और वर्तमान मामले में उसे फंसाना पूरी तरह से गलत है।
उपलब्ध रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद जस्टिस वैद्य ने कहा कि जांच एजेंसी कुछ सामग्रियों को खोज पाने में सक्षम रही है, जो प्रथम दृष्टया चिता/हेरोइन के साथ पकड़े गए कार सवार लोगों और याचिकाकर्ता के बीच संबंध स्थापित करती है। सीडीआर और अन्य डेटा, कॉल के आदान-प्रदान और याचिकाकर्ता और अन्य सह-आरोपियों को उसी स्थान पर या उसके आसपास दिखाते हैं, जहां कथित अपराध किया गया था।
यह देखते हुए कि चूंकि जांच अभी भी चल रही है, जस्टिस वैद्य ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नशीली दवाओं का खतरा गंभीर रूप ले चुका है और कार में पकड़े गए सभी आरोपी 23 से 27 वर्ष की आयु के हैं। कानून और व्यवस्था की समस्या होने के अलावा, यह एक गंभीर सामाजिक मुद्दा बन गया है और सामाजिक संरचना में इस तरह के गंभीर आक्रमण को सख्ती से रोकने की जरूरत है और इस तरह के उद्देश्य के लिए पुलिस को अभियुक्तों तक उचित पहुंच की आवश्यकता है।
इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि याचिकाकर्ता और अन्य सह-आरोपी के बीच कुछ लिंक का सुझाव देने के लिए रिकॉर्ड पर सामग्री मौजूद है, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की आयु लगभग 44 वर्ष है और उसके और अन्य सह-आरोपियों के बीच उम्र का अंतर है। उसके और सह-आरोपियों के बीच लिंक की जांच की जानी चाहिए।
पीठ ने रेखांकित किया कि अभी याचिकाकर्ता से रिकवरी की जानी बाकी है और इस मामले को देखते हुए, यह नहीं कहा जा सकता है कि इस मामले में याचिकाकर्ता की हिरासत में पूछताछ अनुचित होगी।
उपरोक्त चर्चा के आलोक में, याचिका में कोई दम ना पाते हुए उसे खारिज कर दिया।
केस टाइटल: अनिल कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एचपी) 18