गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, COVID-19 संकट का राजनीतिकरण न करें, सरकार की कमियों को उठाने से लोगों के मन में भय पैदा होगा
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार की आलोचना करने भर से COVID-19 ठीक नहीं होने जा रहा है और न ही मरे हुए लोग जिंदा होने वाले हैं। चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने कहा कि COVID-19 संकट का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अहमदाबाद सिविल अस्पताल में सुधार के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों के अनुमोदन की प्रतीक्षा किए बिना, COVID-19 के संदिग्धों का परीक्षण तुरंत किया जाना चाहिए। कोर्ट ने COVID-19 के मुद्दे का राजनीतिकरण न करने की ताकीद करते हुए कहा कि कि संकट के समय में "हमें एक होने की जरूरत है, न कि झगड़ने की।
कोर्ट ने कहा, "COVID-19 संकट एक मानवीय संकट है, न कि राजनीतिक । इसलिए, यह जरूरी है कि कोई भी इस मुद्दे का राजनीतिकरण न करे। COVID-19 के बारे में अनिश्चितता और हमारी अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के कारण यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि सरकार सही नीतियों की संबंध में सही काम करे।"
कोर्ट ने विपक्ष की भूमिका पर भी टिप्पणी की-
"इन असाधारण परिस्थितियों में विपक्ष की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। इस बात से कोई इनकार नहीं करता है कि विपक्ष की भूमिका सरकार को जवाबदेह बनाना है, हालांकि ऐसे समय में आलोचना करने के बजाय मदद करना ज्यादा फायदेमंद होगा।"
कोर्ट ने कहा कि एक व्यक्ति COVID-19 के मुद्दे का राजनीतिकरण करके इससे पैदा हुई पीड़ा को कमतर कर रहा है, लोगों की मदद करने और जीवन बचाने के बजाय राजनीति और राजनीतिक आकांक्षाओं को आगे रख रहा है।
न्यायालय ने कहा कि रचनात्मक आलोचना ठीक है, लेकिन विरोधात्मक आलोचना उचित नहीं है। बेंच ने ये टिप्पणियां अहमदाबाद सिविल अस्पताल के संबंध में दिए गए अपने पिछले आदेश के संदर्भ में की हैं, जिसके बाद गुजरात सरकार आलोचनाओं से घिर गई थी।
22 मई को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की अलग-अलग बेंचों ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल की स्थितियों पर स्वास्थ्य विभाग को कड़ी फटकार लगाई थी। बेंच ने अस्पताल की हालत को "दयनीय" और "एक कालकोठरी जैसा" कहा था।
COVID-19 रोगियों की मृत्यु दर पर चिंता व्यक्त करते हुए, कोर्ट ने पूछा था कि क्या राज्य सरकार को पता है कि वेंटिलेटर की कमी के कारण यह हो रहा था। पीठ ने अस्पताल की स्थितियों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया और सरकार को निर्देश दिया था कि वह सिविल अस्पताल की एक रेजिडेंट डॉक्टर की ओर से भेजे गए गुमनाम पत्र, जिनमें अस्पताल की कमियों के उजागर किया गया था, की स्वतंत्र जांच कराए।
बाद में राज्य सरकार ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल पर की गई कोर्ट की टिप्पणियों पर एक आवेदन दायर किया था और कहा था कि ऐसी टिप्पणियों से अस्पताल में आम आदमी का विश्वास कम होगा और चिकित्साकर्मियों का मनोबल गिरेगा।
सरकार ने यह दावा करते हुए कि अस्पताल के हालात को सुधारने के लिए कदम उठाए गए हैं, कोर्ट से आग्रह किया था कि कोर्ट "उपयुक्त टिप्पणियां करें ताकि आम आदमी के मन में भरोसा पैदा हो सके।"
25 मई को जे परदीवाला की बेंच ने इस मामले पर विचार किया था और सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर ध्यान देते हुए कहा कि था कि सिविल अस्पताल के संबंध में कोई प्रमाणपत्र देना जल्दबाजी होगी। 29 मई को एक रोस्टर परिवर्तन के बाद मामले को चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की एक अलग बेंच समक्ष सूचीबद्ध किया गया।
बेंच ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि वह सरकार को केवल उसके संवैधानिक कर्तव्यों को याद दिलाने की कोशिश कर रही थी और कहा कि राज्य सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने निर्देश दिया किया सिविल अस्पताल के संबंध में आवश्यक मेडिकल प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन होना चाहिए।
कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश पारित किए-
[1] एक्सपर्ट, डॉक्टर, नर्स, सेवाकमी, तकनीशियन, फिजियोथेरेपिस्ट समेत, किसी भी कैटेगरी में मैनपॉवर की कमी नहीं होनी चाहिए।
[2] अस्पतालों में भर्ती COVID 19 मरीज मेडिकल प्रोटोकाल के अनुरूप उचित उपचार और देखभाल की मांग कर रहे हैं। अलग-अलग श्रेणियों के रोगियों के लिए अलग-अलग मेडिकल प्रोटोकॉल हैं। यह आरोप है कि सभी श्रेणियों के रोगियों के लिए आवश्यक मेडिकल प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है।
[3] COVID 19 रोगियों के संबंध में एक और परिस्थिति है। किसी भी अटेंडेंट को मरीजों की मदद और देखभाल करने की अनुमति नहीं है। आम तौर पर भर्ती किए गए गैर COVID रोगियों को एक अटेंडेंट दिया जाता है, जो उनके भोजन, दैनिक आवश्यकताओं का ख्याल रखता है। हालांकि, COVID रोगियों के मामलों में ऐसी देखभाल नर्सों, परिचारकों और अस्पतालों के अन्य कर्मचारियों द्वारा की जानी है।
[4] हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन प्रिंट और डिजिटल मीडिया दोनों में ऐसी खबरें हैं कि COVID रोगियों को उचित देखभाल और उन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हमारी जानकारी में यह भी आया है कि कई COVID रोगियों की जान पानी की कमी और लापरवाही के कारण गई है।
[5] ऐसी रिपोर्टें भी हैं कि डॉक्टरों और कर्मचारियों को आवश्यक सुरक्षा उपकरणों, उपभोग्य सामग्रियों, पीपीई किटों आदि को उपलब्ध कराने के संदर्भ में आवश्यक सावधानी नहीं बरती जा रही है। उन्हें किसी भी परिस्थिति में जोखिम में नहीं डाला जा सकता है।
अदालत ने कहा कि वह "अभी भी सिविल अस्पताल के कामकाज पर कड़ी नजर रखना चाहेगा" और कहा "अगर हम संतुष्ट नहीं हुए तो कानून के अनुसार कुछ और कदम उठाने पड़ सकते हैं।"
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