'डॉक्टरों को दर-दर नहीं भटकाया जाना चाहिए': दिल्ली हाईकोर्ट ने पीजी कोर्स के लिए अस्पतालों से स्टडी लीव की मांग करने वाली याचिका स्वीकार की

Update: 2021-10-01 14:00 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कई डॉक्टरों की तरफ से दायर उन याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है, जिसमें नियोक्ता-अस्पतालों को आगे की शिक्षा, NEET PG पूरी करने के लिए स्टडी लीव देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि डॉक्टरों को केवल एनओसी और अन्य अनुमति प्राप्त करने के लिए दर-दर नहीं भटकाया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों को आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए अस्पताल से मिलने वाली एनओसी पर्याप्त होनी चाहिए, और स्टडी लीव के लिए अलग से आवेदन करने की आवश्यकता एक अनावश्यक विचार प्रतीत होता है।

मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा कि,

''एनओसी का मतलब ही अनापत्ति है। जब कोई आपत्ति नहीं है, तो अतिरिक्त अनुपालन की आवश्यकता और पूरी प्रक्रिया को और अधिक जटिल बनाने की क्या आवश्यकता है?''

पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता अरुणा आसफ अली अस्पताल और बाबा साहेब अम्बेडकर अस्पताल के तत्वावधान में विभिन्न अस्पतालों में नियमित आधार पर चिकित्सा अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।

उन्होंने प्रायोजित डीएनबी सीटों के लिए NEET PG की परीक्षा दी थी, क्योंकि संबंधित अस्पतालों ने उनको एनओसी जारी किया था, जो यह दर्शाता है कि अस्पतालों को उनके पीजी पाठ्यक्रम शुरू करने पर कोई आपत्ति नहीं थी।

NEET PG में उनके चयन और विभिन्न अस्पतालों में विभिन्न विशिष्टताओं में प्रायोजित डीएनबी सीटों के आवंटन के बाद, अपीलकर्ताओं ने अपने संबंधित विभागों में तीन साल की अवधि के लिए अध्ययन अवकाश/स्टडी लीव देने और रिलीविंग ऑर्डर जारी करने के लिए आवेदन किया और आवश्यक बांड जमा किए।

हालांकि, संबंधित अस्पतालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिन्होंने अपीलकर्ताओं को न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य किया। अपीलकर्ताओं की तरफ से दायर रिट याचिका को सिंगल बेंच द्वारा खारिज कर दिया गया था।

दलीलें

अपीलकर्ताओं के वकील ने जोर देकर कहा कि अपीलकर्ताओं को आश्वासन दिया गया था कि परीक्षा उत्तीर्ण करने पर, उन्हें अध्ययन अवकाश प्रदान किया जाएगा और संबंधित अस्पतालों से रिलीव कर दिया जाएगा।

संबंधित अस्पतालों के लिए स्थायी वकील अवनीश अहलावत और एडवोकेट मिनी पुष्करना ने प्रस्तुत किया कि सामान्य तौर पर जब एनओसी दी जाती है, तो डॉक्टरों को उन कोर्स को पूरा करने के लिए अध्ययन अवकाश दिया जाता है,जिनमें वे नामांकन करवाना चाहते हैं।

हालांकि, महामारी के कारण अपीलकर्ताओं को अध्ययन अवकाश प्रदान नहीं किया गया, क्योंकि अस्पतालों में डॉक्टरों की सेवाओं की आवश्यकता थी और मामलों की संख्या में वृद्धि के कारण, सरकार डॉक्टरों को पीजी कोर्स करने के लिए अवकाश नहीं दे सकती थी।

निष्कर्ष

न्यायालय ने अपीलकर्ताओं के इस तर्क में योग्यता पाई कि संबंधित अस्पताल जहां अपीलकर्ता डॉक्टर के रूप में काम कर रहे हैं, ने उन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रदान किया था और इसलिए, पीजी पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए अनुमोदन और स्वीकृति थी।

पीठ ने कहा, ''जिन सीटों के खिलाफ अपीलकर्ताओं को प्रवेश दिया गया है, वे प्रायोजित सीटें हैं और अपीलकर्ता केवल संबंधित विभागों की मंजूरी के साथ ही आवेदन कर सकते हैं।''

आगे यह भी कहा कि यदि अपीलकर्ता पाठ्यक्रमों में शामिल होते हैं, तो इससे केवल अस्पतालों को ही लाभ होगा क्योंकि अपीलकर्ता उच्च शिक्षा और योग्यता प्राप्त करेंगे।

अदालत ने संबंधित अस्पतालों को रिलीविंग ऑर्डर के साथ-साथ अपीलकर्ताओं को अध्ययन अवकाश देने के लिए आवश्यक आदेश जारी करने का निर्देश देते हुए कहा, ''हमें कोई कारण नहीं दिखता कि संबंधित अस्पतालों को अपीलकर्ताओं को अध्ययन अवकाश देने में और देरी क्यों करनी चाहिए?''

केस का शीर्षक- डॉ रुचिता घिलोरिया व अन्य बनाम चिकित्सा अधीक्षक व अन्य

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