डीएनए टेस्ट किसी व्यक्ति की निजता और शारीरिक स्वायत्तता का अतिक्रमण कर सकता, टेस्ट कराने का आदेश स्वाभाविक रूप से पारित नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2022-12-23 07:56 GMT

झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने कहा कि डीएनए टेस्ट कराने का आदेश स्वाभाविक रूप से पारित नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसा निर्देश किसी व्यक्ति की निजता और शारीरिक स्वायत्तता का अतिक्रमण कर सकता है।

जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने पॉक्सो अधिनियम के तहत बलात्कार के आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति की अपनी और बच्चे की डीएनए टेस्ट कराने के निर्देश की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए स्पेशल जज, पॉक्सो, रांची के आदेश को बरकरार रखा।

पूरा मामला

अदालत के समक्ष, याचिकाकर्ता-आरोपी के वकील ने प्रस्तुत किया कि एक यांत्रिक तरीके से उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4/6 के तहत एक कथित अपराध के लिए आरोप पत्र दायर की गया था और उसके बाद आरोप तय किए गए और उस पर मुकदमा चलाया गया। उसने डीएनए टेस्ट कराने की अनुमति मांगी ताकि बच्चे के पितृत्व के सवाल पर फैसला किया जा सके।

याचिका को चुनौती देते हुए राज्य के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एक बच्चे के बलात्कार के गंभीर आरोप हैं, और प्रत्येक मामले में डीएनए टेस्ट करना कोई नियम नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा आईपीसी की धारा 376 के तहत किए गए अपराध के मामले में डीएनए टेस्ट के परिणाम का कोई फायदा नहीं होगा।

अंत में, यह तर्क दिया गया कि बलात्कार के मामले में, चिकित्सा साक्ष्य हमेशा अंतिम नहीं होता है, लेकिन चिकित्सा साक्ष्य द्वितीयक साक्ष्य की भूमिका निभाता है।

कोर्ट की टिप्पणियां

दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद, अदालत ने शुरुआत में ही कहा कि नियमित रूप से डीएनए टेस्ट की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

इसके अलावा, अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 376 के तहत मामले को तय करने के लिए, बच्चे का पितृत्व प्रासंगिक नहीं है क्योंकि मौखिक साक्ष्य पर इसका फैसला किया जा सकता है, और इसलिए, डीएनए टेस्ट कराना बच्चे के विचार के लिए प्रासंगिक नहीं होगा।

इसके अलावा, कोर्ट ने गौतम कुंडू बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [1993 (3) SCC 418] के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध ब्लड सैंपल देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और इस तरह के इनकार करने पर कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।

इस संबंध में, कोर्ट ने अशोक कुमार बनाम राज गुप्ता और अन्य एलएल 2021 एससी 525 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी उल्लेख किया। इसमें कोर्ट ने कहा था कि एक अनिच्छुक पक्ष को डीएनए टेस्ट कराने के लिए मजबूर करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता का अधिकार पर प्रभाव डालता है।

कोर्ट ने तर्क दिया कि केवल इसलिए कि कानून के तहत कुछ अनुमेय है, इसे निश्चित रूप से निष्पादित करने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता है, विशेष रूप से तब जब इस आशय का निर्देश किसी व्यक्ति की निजता और शारीरिक स्वायत्तता का अतिक्रमण कर सकता है।

नतीजतन, अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो, रांची के आदेश में कोई अवैधता नहीं है। इसलिए, याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल - अफान अंसारी बनाम झारखंड राज्य और अन्य [डब्ल्यू.पी. (Cr.) संख्या 536 ऑफ 2022]

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