दिल्ली हाईकोर्ट ने चार सप्ताह के भीतर DAMEPL को शेष पंचाट अवार्ड का भुगतान नहीं करने पर DMRC के मैनेजिंग डायरेक्ट को तलब किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर द्वारा प्रवर्तित दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड (DAMEPL) को 2017 के ऑर्बिटल अवॉर्ड (Arbitral Award) के संदर्भ में चार सप्ताह की अवधि के भीतर शेष राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया।
जस्टिस वी कामेश्वर राव की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि निर्धारित समय के भीतर राशि का भुगतान नहीं किया जाता तो अदालत को DMRC के प्रबंध निदेशक की व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए कहने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
यह घटनाक्रम DAMEPL द्वारा दायर याचिका के संबंध में आया, जिसमें 11 मई, 2017 को ऑर्बिटल अवॉर्ड को लागू करने की मांग की गई है।
हाईकोर्ट ने जून में DMRC को DAMEPL को बकाया डिक्री राशि का भुगतान 5 अगस्त या उससे पहले सुनिश्चित करने के लिए समय दिया।
हालांकि 16 अगस्त को मामले में कार्यवाही 6 सितंबर को इस तथ्य के मद्देनजर स्थगित कर दी गई कि DMRC ने 10 मार्च, 2022 के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष क्यूरेटिव पिटीशन के साथ-साथ SLP दायर की, जिसमें उसे DAMEPL को दो समान किश्तों में ब्याज सहित 4,600 करोड़ रुपये से अधिक की डिक्रीटल राशि का संपूर्ण भुगतान करने का निर्देश दिया गया।
6 सितंबर को कार्यवाही के दौरान, कोर्ट को अवगत कराया गया कि क्यूरेटिव पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध नहीं किया गया, जबकि 10 मार्च, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली एसएलपी को खारिज कर दिया गया था।
तदनुसार, DMRC की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट पराग त्रिपाठी ने अवार्ड के रूप में शेष राशि का भुगतान करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा, जो अंतिम रूप से प्राप्त हो चुका है।
अदालत ने मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए निर्देश दिया,
"पक्षकारों के सीनियर वकील द्वारा किए गए सबमिशन को ध्यान में रखते हुए मैं यह निर्देश देना उचित समझता हूं कि अवार्ड के संदर्भ में शेष भुगतान चार सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाएगा।"
DAMEPL ने यह दावा करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि दी गई राशि के भुगतान के निर्देश के बावजूद, DMRC ने DAMEPL को केवल 166.44 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया।
इसलिए आवेदन दायर कर DMRC के बैंक खातों, सावधि जमा आदि की कुर्की द्वारा 4427.41 करोड़ (10 मई, 2022 तक) रुपये भुगतान का दावा किया गया। इसके अलावा, यह दावा किया गया कि DMRC द्वारा वास्तविक भुगतान की तारीख तक ब्याज लागू होता रहा।
जजमेंट देनदार, DMRC ने आर्बिटर और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत चुनौती को प्राथमिकता दी, जिसे हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने 6 मार्च, 2018 के फैसले के तहत खारिज कर दिया।
इसके बाद उक्त फैसले को अधिनियम की धारा 37 के तहत खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई, जिसे आंशिक रूप से अनुमति दी गई और निर्णय को 15 जनवरी, 2019 के फैसले के तहत रद्द कर दिया गया।
DAMEPL डिक्री धारक ने तब 2019 के फैसले के खिलाफ भारत के सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिसे 9 सितंबर, 2021 के फैसले के पक्ष में अनुमति दी गई।
तदनुसार, चूंकि 2017 के अधिनिर्णय को अधिनियम की धारा 36 के संदर्भ में डिक्री के रूप में निष्पादित किया जा सकता है, वर्तमान याचिका DAMEPL द्वारा मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा पारित अवार्ड के निष्पादन के लिए दायर की जा रही है।
केस टाइटल: दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड बनाम दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड।
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