(तलाक) दोनों पक्षकार शिक्षित हैं, इसलिए यह माना जा सकता है वे अपने सर्वोत्तम हित को समझते हैं : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड से छूट दी

Update: 2020-09-09 15:30 GMT

यह देखते हुए कि 'इस विवाह में शामिल दोनों  पक्षकार 30 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और शिक्षित हैं, इसलिए यह माना जाता है कि वह अपने सर्वोत्तम हित को समझते हैं', पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक के मामले में अनिवार्य छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड से छूट देने का आदेश दिया है।

न्यायमूर्ति संजय कुमार के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने एक पुनःविचार याचिका दायर कर आपसी सहमति के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत तलाक की एक डिक्री के माध्यम से अपनी शादी को भंग करने की मांग की थी। इस मामले में तलाक की याचिका जून, 2020 में दायर की गई थी। जिसके बाद उन्होंने अधिनियम 1955 की धारा 13-बी (2) के तहत निर्धारित छह महीने की वैधानिक प्रतीक्षा अवधि या वेटिंग पीरियड से छूट देने के लिए एक आवेदन दायर किया था। परंतु अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, मोहाली ने 06 अगस्त 2020 के आदेश के तहत उक्त आवेदन को खारिज कर दिया।

वर्ष 2017 में अमरदीप सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए सिंगल पीठ ने दोहराया कि-

''मोटे तौर पर, इस तरह की छूट पर तभी विचार किया जा सकता है,जब (ए) धारा 13-बी (1) के तहत पार्टियों के अलग होने की एक वर्ष की वैधानिक अवधि के अलावा धारा 13-बी (2) में निर्दिष्ट छह महीने की वैधानिक अवधि फस्र्ट मोशन से पहले ही पूरी हो जाए, (बी) पार्टियों को फिर से मिलाने के लिए मध्यस्थता/समझौता कराने के सभी प्रयास विफल हो गए हों और आगे के प्रयासों से इस दिशा में सफलता मिलने की कोई संभावना न हो, (सी) जब दोनों पक्षों ने वास्तव में गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी या अन्य लंबित मुद्दों सहित अपने मतभेदों को सुलझा लिया हो,(डी) प्रतीक्षा अवधि केवल उनकी पीड़ा को बढ़ा रही हो।''

जज ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने नवंबर, 2010 में शादी की थी और जनवरी, 2018 से वह अलग रह रहे हैं। उनके अनुसार, दोबारा सुलह की कोई संभावना नहीं है और वे तलाक लेने के अपने संकल्प में दृढ़ हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने सभी मुद्दों का निपटारा करते हुए 10 जून 2020 को एक एमओयू (समझौता ज्ञापन) भी तैयार किया है। ऐसे में अब उनकी नाबालिग बेटी की कस्टडी के संबंध में भी कोई विवाद नहीं है।

पीठ ने कहा कि,''उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए, इस न्यायालय का मानना है कि अतिरिक्त जिला जज के लिए यह एक उपयुक्त मामला था कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं के पक्ष में अपने अधिकार का प्रयोग करते और प्रतीक्षा अवधि से छूट दे देते।''

इसी के साथ पीठ ने 6 अगस्त 2020 के उस आदेश को रद्द कर दिया,जिसके तहत वैधानिक प्रतीक्षा अवधि को समाप्त करने या उससे छूट देने से इनकार कर दिया गया था।

आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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