दोषी का निर्धारण, मुआवजा देने के लिए आवश्यक नहीं; राज्य नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए बाध्यः पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करे, बुधवार को मुंगेर मां दुर्गा पूजा गोलीबारी घटना में पिछले साल अक्टूबर में मारे गए 18 साल के लड़के के पिता को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपए प्रदान किया है।
यह आदेश महत्वपूर्ण है, क्योंकि क्षतिपूर्ति फायरिंग की घटना की जांच लंबित होने के बावजूद दी गई है।
जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की एकल पीठ ने कहा कि मुआवजा देने के उद्देश्य से, यह जानना कि गोलीबारी के पीछे कौन था, जो लड़के के दुर्भाग्यपूर्ण निधन का कारण बना, यह अप्रासंगिक है, क्योंकि यह राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के प्राणों की रक्षा करे।
आदेश में कहा गया है, "एक नागरिक के जीवन की रक्षा करने की जिम्मेदारी राज्य की थी ... चाहे याचिकाकर्ता का बेटा पुलिस द्वारा फायरिंग के परिणामस्वरूप मरा या भीड़ में किसी बदमाश की गोली से उसकी मौत हो गई हो, यह बहुत ही साधारण कारण से प्रासंगिक नहीं होगा कि किसी भी मामले में राज्य याचिकाकर्ता के बेटे के जीवन की रक्षा करने में विफल रहा, जो मां दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के जुलूस में एक दर्शक था।"
पृष्ठभूमि
मुंगेर में दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दरमियान अक्टूबर 2020 में हुई गोलबारी की घटना हुई थी।
अधिकारियों के अनुसार, जुलूस के दरमियान कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हुई और जुलूस में शामिल लोग गैर-कानूनी और अनियंत्रित भीड़ में बदल गए, पथराव शुरू कर दिया और सुरक्षा बलों पर गोलियां चला दीं।
दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने दावा किया कि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में मुंगेर पुलिस ने भीड़ पर गोलीबारी करने के मामले में बिहार पुलिस मैनुअल में तय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया, और उन्होंने भक्तों पर अंधाधुंध और क्रूर गोलीबारी की।
उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मियों ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए किसी भी वैकल्पिक विधि का सहारा नहीं लिया। इस घटना के कारण याचिकाकर्ता के बेटे की मृत्यु हो गई और लगभग 30 लोग घायल हो गए।
याचिकाकर्ता ने मौजूदा रिट याचिका सीबीआई द्वारा घटना की स्वतंत्र जांच की मांग के लिए दायर की।
दलीलें
याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) की आंतरिक रिपोर्ट को रखा, जिसमें कहा गया था कि मुंगेर पुलिस ने गोली चलाने की शुरुआत की थी।
उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के राजनीतिक रसूख और कनेक्शन के कारण जांच आगे नहीं बढ़ी।
उन्होंने कहा कि एक आई-वॉश के रूप में, नए एसपी के नेतृत्व में आठ पुलिस कर्मियों की एक टीम गठित की गई और एसआईटी को कई बिंदुओं पर जांच करने के लिए निर्देश जारी किए गए, हालांकि पर्यवेक्षण प्राधिकरण यानी डीआईजी, मुंगेर के उन निर्देशों की अवहेलना की।
एसआईटी ने बहुत ही घटिया और खानापूर्ती किस्म की जांच के आधार पर कागज पर केवल एक 'विशेष रिपोर्ट' बना दिया।
याचिकाकर्ता ने अदालत को आगे बताया कि मामला सीआईडी, बिहार पुलिस को स्थानांतरित कर दिया गया है।
हालांकि, चूंकि तत्कालीन एसपी राज्य में सत्तारूढ़ दल के प्रमुख के खास थे, इसलिए इस बात की उचित आशंका है कि सीआईडी (जो राज्य सरकार के अधीन है) स्वतंत्र रूप से मामले की जांच नहीं कर पाएगी।
यह भी आरोप लगाया गया कि जिला पुलिस द्वारा अवैध शराब के मामलों में मामले के मुख्य गवाहों को फंसाया जा रहा है।
निष्कर्ष
शुरुआत में, बेंच ने पाया कि याचिकाकर्ता ने सीआईडी के खिलाफ रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं रखा है ताकि उसकी जांच की विश्वसनीयता पर एक सवाल उठाया जा सके।
आदेश में कहा गया, "इस अदालत ने प्रथम दृष्टया पाया है कि मुंगेर पुलिस और मामले की जांच के उद्देश्य से गठित एसआईटी ने सामान्य दिशा में काम नहीं किया है, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में, जहां सीआईडी अब इस मामले की जांच कर रही है, यह अदालत, किसी भी तरह की संगीन सामग्री के अभाव में, याचिकाकर्ता की दलील को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि 'सीआईडी' द्वारा पुलिसकर्मियों के खिलाफ स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से मामले की जांच करने की संभावना नहीं है।
किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण द्वारा सीआईडी को प्रभावित करने वाली किसी सामग्री कोर्ट के समक्ष नहीं रखा गया है।"
इस प्रकार, यह कहते हुए कि इस स्तर पर जांच का हस्तांतरण आवश्यक नहीं है, खंडपीठ ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने विवेकाधीन क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से इनकार कर दिया।
साकिरी वासु बनाम उत्तर प्रदेश, एआईआर 2008 एससी 907 पर भरोसा किया गया।
इसके अलावा, मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए, राज्य को एसपी मुंगेर सहित एसआईटी के सभी आठ सदस्यों को तीन दिनों के भीतर किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए कहा गया है।
मुआवजे के मुद्दे पर, अदालत ने पाया कि अब तक सामने आए तथ्यों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता का बेटा जुलूस में निहत्था था, और उस पर कोई आरोप नहीं था कि वह किसी गैरकानूनी काम में लिप्त था।
इस प्रकार, कोर्ट ने राज्य के उत्तरदाताओं को मुआवजे के रूप में याचिकाकर्ता को एक महीने के भीतर 10 लाख रुपए भुगतान का निर्देश दिया।
केस टाइटिल: अमर नाथ पोद्दार बनाम बिहार राज्य और अन्य