जमानत की संभावना पर राय बनाए बिना डिटेनिंग अथॉरिटी पहले से ही हिरासत रखे गए व्यक्ति को निवारक हिरासत में नहीं ले सकती: मणिपुर हाईकोर्ट

Update: 2023-02-02 10:37 GMT

Manipur High Court 

मणिपुर हाईकोर्ट ने कहा कि निरोधक प्राधिकरण को निवारक निरोध कानूनों के तहत शक्ति का प्रयोग करने से पहले यह देखना होगा कि डिटेन्यू जो पहले से ही हिरासत में है, उसने जमानत याचिका दायर की है या नहीं।

डिटेन्यू पहले से ही अन्य दो मामलों में ही न्यायिक हिरासत में था। उसको अक्टूबर 2022 में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 3(2) के तहत जिला मजिस्ट्रेट, थौबल द्वारा हिरासत में लिया गया।

चीफ जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस अहंथेम बिमोल सिंह की खंडपीठ ने विवादित आदेश के खिलाफ डिटेन्यू की पत्नी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट की अनुमति देते हुए कहा:

"इस बारे में कोई राय बनाए बिना कि क्या ऐसे व्यक्ति के ज़मानत पर रिहा होने की उचित संभावना है, हिरासत में लेने वाला अधिकारी उसे इस आधार पर निवारक हिरासत में नहीं रख सकता है कि वह रिहा होने के बाद प्रतिकूल गतिविधियों को फिर से शुरू करेगा। वर्तमान मामले में हिरासत में लेने वाले अधिकारी कानून की इस आवश्यकता के प्रति पूरी तरह से अनभिज्ञ प्रतीत होते हैं।”

अदालत ने देखा कि याचिकाकर्ता के पति द्वारा अन्य दो मामलों के संबंध में दायर की गई जमानत याचिका के संबंध में न तो आदेश में और न ही हिरासत के आधार का कोई उल्लेख है।

बेंच ने रेखा बनाम तमिलनाडु राज्य, (2011) 5 SCC 244 पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो व्यक्ति पहले से ही हिरासत में है, उसकी रिहाई की संभावना होगी। अगर उसने जमानत याचिका दायर की है, जो कि है लंबित है। ऐसे मामले में हिरासत में लेने वाला अधिकारी यथोचित निष्कर्ष निकाल सकता है कि ऐसे व्यक्ति के जमानत पर रिहा होने की संभावना है।

इसलिए अदालत ने विवादित आदेश रद्द कर दिया और मौजूदा मामले में हिरासत में लिए गए व्यक्ति को रिहा कर दिया।

केस टाइटल: थियम प्रिया देवी बनाम मणिपुर राज्य और 2 अन्य।

कोरम: चीफ जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस अहंथम बिमोल सिंह

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