दिल्ली हाईकोर्ट ने फ्लाइट चेक-इन बैगेज में ज़िंदा कारतूस ले जाने के लिए आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत दर्ज एफआईआर रद्द की

Update: 2022-03-25 03:32 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक एनआरआई के खिलाफ शस्त्र अधिनियम के तहत दर्ज एफआईआर रद्द कर दी। उक्त आरोपी इस साल फरवरी में दिल्ली से दुबई की यात्रा कर रहा था, जब फ्लाइट चेक-इन के दौरान उसके बैग में दो ज़िंदा कारतूस पाए गए।

जस्टिस आशा मेनन ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिकाकर्ता-आरोपी द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए कहा,

"इस बात का कोई प्रथम दृष्टया सबूत नहीं है कि गोला-बारूद रखने में उसकी कोई दुर्भावना रही हो। यात्रियों की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं था। वह उक्त  सामग्री अपने पास होने के प्रति सचेत नहीं था।"

अभियोजन पक्ष के अनुसार, याचिकाकर्ता यह साबित करने में असमर्थ है कि वह कारतूसों के बारे में नहीं जानता था।

दूसरी ओर याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पास इन दोनों कारतूसों के बारे में जानकारी नहीं थी और किसी भी हथियार के अभाव में किसी भी खतरे के उद्देश्य के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था।

सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों पर भरोसा करते हुए तर्क दिया गया कि वर्तमान जैसे मामलों में, जहां कोई "सचेत कब्जा" नहीं, अदालतें एफआईआर रद्द कर रही हैं।

हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि अधिराज सिंह यादव बनाम राज्य सहित विभिन्न निर्णयों में न्यायालय की समन्वय पीठों ने, जहां अभियुक्तों के कब्जे में एक या दो जिंदा कारतूस पाए गए हैं, उनमें यह विचार किया कि आपराधिक मन या आरोपी की वास्तविक या दुर्भावनापूर्ण होनी चाहिए। अभियोजन पक्ष की "सचेत कब्जे की याचिका" का समर्थन करते हुए इस तरह के किसी भी सबूत के अभाव में याचिकाकर्ता को राहत देने से इनकार करने का कोई कारण नहीं होगा।

इस प्रकार, परिस्थितियों की समग्रता में न्यायालय ने देखा कि चूंकि तथ्यों और रिकॉर्ड से कोई दुर्भावना स्पष्ट नहीं है, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत वर्तमान मामले में प्रयोग करने की आवश्यकता है।

इसमें कहा गया,

"राज्य के अतिरिक्त सरकारी वकील ने स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता के पास पंजाब में उसे जारी एक वैध शस्त्र लाइसेंस है। बरामद किये गए  कारतूस लाइसेंसी हथियार से संबंधित हैं।"

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अजय पाल तुशीर पेश हुए। राज्य की ओर से अधिवक्ता करण धल्ला और मिजबा के साथ अतिरिक्त सरकारी वकील अवि सिंह पेश हुए।

केस शीर्षक: करमजीत सिंह बनाम राज्य (दिल्ली का एन.सी.टी.)

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