''एफआईआर तुरंत क्यों नहीं दर्ज की गई'': दिल्ली हाई कोर्ट ने ढाई साल की बच्ची से रेप के आरोपी को जमानत दी

Update: 2021-01-29 14:54 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एफआईआर दर्ज करने में 8 घंटे की देरी का हवाला देते हुए ढाई साल की बच्ची से बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत दे दी।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि,

'' पीड़िता ढाई वर्ष की है, जिसके कारण उसका बयान दर्ज नहीं किया गया था, हालांकि, अभियोजन के मामले की मैरिट पर टिप्पणी किए बिना और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एफआईआर दर्ज करने में 8 घंटे की देरी है,इस अदालत का विचार है कि याचिकाकर्ता जमानत का हकदार है।''

बेंच ने इस बात पर भी विचार किया कि अगर एक छोटी बच्ची के साथ ऐसा जघन्य अपराध हुआ है तो तुरंत एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई। आदेश में कहा गया है कि,

''इस अदालत ने सीसीटीवी फुटेज को देखा है और उक्त सीसीटीवी फुटेज में, पीड़िता के पिता इमारत के बाहर थे। शिकायतकर्ता ने इमारत में प्रवेश किया और एक मिनट के भीतर, वह याचिकाकर्ता को पकड़कर बाहर लाते हुए दिखाई दे रहा है। यदि ऐसा जघन्य अपराध हुआ था और वो भी ढाई साल की बच्ची के साथ,तो तुरंत एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई?''

खंडपीठ ने आरोपी शिव चंदर की जमानत अर्जी पर यह फैसला सुनाया है,जिसे आईपीसी की धारा 376एबी के और पाॅक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत आरोपी बनाया गया है। उस पर आरोप है कि उसने कथित तौर पर पीड़िता को ओरल सेक्स करने के लिए प्रेरित किया और उसकी पैंट की जिप खुली हुई थी।

एफआईआर के अनुसार, इस घटना को देखने के बाद बहुत से पड़ोसी इकट्ठा हो गए थे और याचिकाकर्ता को पीट दिया था, जो कथित रूप से नशे की हालत में था, जिसके बाद याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया गया था।

बेंच ने हालांकि रिकॉर्ड पर रखी सामग्री के कुछ विरोधाभासों का उल्लेख किया और आरोपी को जमानत पर रिहा करने के लिए अपना झुकाव व्यक्त किया। पीठ ने कहा कि,

''एफआईआर दर्ज करवाने में 8 घंटे की देरी है और याचिकाकर्ता के एमएलसी में पिटाई और नशे का कोई संकेत नहीं था। अगर पड़ोसियों ने याचिकाकर्ता को पीटा था और वह नशे की हालत में था, तो उक्त तथ्य एमएलसी में आने चाहिए थे, लेकिन उक्त एमएलसी में किसी भी प्रकार की चोट का कोई संकेत नहीं है। जो यह दर्शाता है कि कोई सार्वजनिक पिटाई नहीं हुई थी,जैसा कि एफआईआर में कहा गया है।

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इसप्रकार, उसे ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 15000 रूपये के निजी मुचलके व एक जमानतदार लाने की शर्त पर रिहा कर दिया जाए।''

कानून को जानें

सुप्रीम कोर्ट ने काफी सारे अपने निर्णयों में कहा है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के पंजीकरण में एक लंबे समय की देरी को भी माफ किया जा सकता हैै अगर गवाह का आरोपियों को गलत तरीके से फंसाने का कोई उद्देश्य नहीं है।

इस तरह के एक मामले में, एक डिवीजन बेंच ने कहा था,

''शिकायत दर्ज करके कानून को गति देने में देरी आमतौर पर न्यायालयों द्वारा संदेह से देखी जाती है क्योंकि अभियुक्त के खिलाफ मनघडंत साक्ष्य जुटाए जाने की संभावना होती है। ऐसे मामलों में अभियोजन पक्ष को संतोषजनक ढंग से एफआईआर के पंजीकरण में देरी के बारे में समझाना आवश्यक हो जाता है। लेकिन ऐसे मामले भी हो सकते हैं जिनमें एफआईआर दर्ज करने में देरी अपरिहार्य हो और उस पर विचार किया जाना चाहिए। यहां तक कि अगर अभियुक्त को झूठे तरीके से फंसाने का कोई मकसद नहीं है, तो लंबे समय तक देरी को भी माफ किया जा सकता है।''

एक अन्य मामले में, तीन न्यायाधीशों वाली बेंच ने कहा था,

''आम तौर पर, अदालत अभियोजन पक्ष द्वारा सबूतों के गढ़ने की संभावना के कारण पहली सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में हुई देरी के आधार पर अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज कर सकती है। हालांकि, अगर देरी संतोषजनक ढंग से समझाई गई है, तो अदालत इस तरह की देरी को ज्यादा महत्व दिए बिना मैरिट के आधार पर मामले में अपना फैसला सुनाएगी। न्यायालय यह निर्धारित करने के लिए बाध्य है कि क्या देरी के लिए बताया गया कारण मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए पर्याप्त रूप से प्रशंसनीय है। यदि शिकायतकर्ता विश्वसनीय है और उसके पास आरोपियों को झूठे तरीके से फंसाने के लिए कोई मकसद नहीं है तो ऐसी देरी को माफ किया जा सकता है।''

केस का शीर्षकः शिव चंदर बनाम एनसीटी आॅफ दिल्ली

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