'एक व्यक्ति जो दिल्ली में प्रैक्टिस करने जा रहा हो, वह बिहार में नहीं रह सकता' : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, बीसीडी को एनरॉलमेंट के लिए आवासीय सबूत मांगने का अधिकार
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (बीसीडी) को एनरॉलमेंट प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन करने का निर्देश जारी नहीं कर सकता क्योंकि यह एक नीतिगत फैसला है।
हालांकि बेंच ने एनरॉलमेंट प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन बनाये जाने की कुछ विधि छात्रों की याचिका पर यथाशीघ्र निर्णय लेने के लिए बार काउंसिल को कहा है।
काउंसिल ने कोर्ट को अवगत कराया कि जुलाई 2020 तक 5000 वकीलों ने आंशिक ऑनलाइन प्रक्रिया के जरिये एनरॉलमेंट कराये हैं और याचिकाकर्ता स्नातकों को भी अस्थायी तौर पर एनरॉल किया जा चुका है। इसके बाद न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह की एकल पीठ ने कहा, "काउंसिल ने ऑनलाइन एनरॉलमेंट के लिए पहले से ही पर्याप्त कदम उठाये हैं।"
आंशिक ऑनलाइन सिस्टम के तहत, यद्यपि एनरॉलमेंट फॉर्म ऑनलाइन उपलब्ध था और फीस भुगतान की प्रक्रिया भी ऑनलाइन थी, लेकिन उम्मीदवारों को एनरॉलमेंट प्रक्रिया पूरी करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होना जरूरी था।
विभिन्न याचिकाओं में से एक याचिका बिहार के लॉ ग्रेजुएट द्वारा कोविड महामारी के दौरान दायर की गयी थी, जिसमें कोविड के कारण दिल्ली आने में असमर्थता का हवाला देते हुए ऑल इंडिया बार एक्जामिनेशन (एआईबीई) 2020 के संचालन से पहले काउंसिल में ऑनलाइन एनरॉलमेंट की मांग की गयी थी। याचिकाकर्ताओं ने तत्काल राहत की मांग की थी क्योंकि संबंधित परीक्षा में शामिल होने के लिए बार काउंसिल से एनरॉलमेंट पूर्व शर्त थी।
इस संदर्भ में, काउंसिल के वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि उम्मीदवारों को अस्थायी एनरॉलमेंट मंजूर किया जा चुका है और वे इस बार ऑल इंडिया बार एक्जामिनेशन में बैठ सकते हैं।
कोर्ट के समक्ष खुद ही पेश हो रहे याचिकाकर्ता, अभिषेक आनंद उन लॉ ग्रेजुएट्स में से एक थे। उन्होंने दिल्ली में रिहाइश का प्रमाण या रेंट एग्रीमेंट पेश करने की बार काउंसिल की अनिवार्यता को समाप्त करने की भी मांग की। अपनी अर्जी के समर्थन में उन्होंने कोर्ट को सूचित किया था कि एडवोकेट एक्ट की धारा 25 में स्थान को भी शामिल किया गया है, जहां आवेदक प्रैक्टिस करने का प्रस्ताव करता है और इसलिए आवासीय प्रमाण या रेंट एग्रीमेंट उपलब्ध कराने की अनिवार्यता गैर तार्किक है।
हालांकि न्यायमूर्ति सिंह ने याचिकाकर्ता की यह दलील स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस धारा की व्याख्या उस स्थान पर आवास के रूप में की जानी चाहिए जहां वह सामान्य तौर पर प्रैक्टिस करने का प्रस्ताव करता है और इसमें कुछ भी अतार्किक नहीं है। उन्होंने अधिवक्ता अधिनियम की धारा 28 पर भी भरोसा जताया जिसके तहत बार काउंसिल वकीलों के एनरॉलमेट के लिए शर्तों के नियमन के लिए अधिकृत है।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"जो लोग दिल्ली में प्रैक्टिस करने जा रहे हैं, वे बिहार में नहीं रह सकते। क्या वे हर रोज बिहार से कोर्ट आएंगे और जाएंगे?"
कोर्ट ने हालांकि काउंसिल से एनरॉलमेंट प्रक्रिया को यथासंभव पारदर्शी और सुविधाजनक बनाने के लिए उपयुक्त कदम उठाने पर विचार करने को कहा। कोर्ट ने ऑनलाइन फॉर्म उपलब्ध कराने एवं दस्तावेज को ऑनलाइन स्वीकार करने, ऑनलाइन भुगतान की सुविधा देने के साथ - साथ एनरॉलमेंट प्रक्रिया पूरी करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने से छूट देने के लिए जरूरी कदम उठाने को भी कहा है।
आनंद की याचिका पिछले वर्ष दिसम्बर में दायर की गयी थी और उस वक्त मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति नवीन चावला ने बार काउंसिल ऑफ दिल्ली को नोटिस भी जारी किया था तथा कोविड 19 महामारी के दौरान लॉ ग्रेजुएट के एनरॉलमेंट की प्रक्रिया के लिए ऑनलाइन व्यवस्था नहीं किये जाने को लेकर उसे कड़ी फटकार लगायी थी।
कोर्ट ने पूछा था,
"जब कोविड 19 की महामारी के दौरान सब कुछ डिजिटल हो रहा है तो हम इस दलील को कैसे मान लें कि बीसीडी के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू करने में कठिनाई हो सकती है?"