'जब एजेंसी सुनवाई में देरी करती है तो जमानत का विरोध न हो:' अदालत ने ED निदेशक से यह सुनिश्चित करने को कहा
'दिल्ली वक्फ बोर्ड घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी को जमानत देते हुए दिल्ली की अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को करीब पांच महीने की देरी के लिए फटकार लगाई।
राउज एवेन्यू कोर्ट के स्पेशल जज जितेंद्र सिंह ने कहा,
"राज्य और उसकी एजेंसी से समान रूप से स्वतंत्रता के समर्थक होने की उम्मीद की जाती है। अपनी ऊर्जा और संसाधनों को तेजी से सुनवाई के लिए लगाने के बजाय ऐसा लगता है कि अभियोजन एजेंसी का पूरा जोर आरोपी को बिना सुनवाई के हिरासत में रखने पर है।"
न्यायाधीश ने आरोपी कौसर इमाम सिद्दीकी को जमानत दे दी जो पिछले साल 24 नवंबर से जेल में है। न्यायालय ने कहा कि जब ED के पास जमानत का विरोध न करके अभियुक्त के शीघ्र सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने (जैसा कि ऊपर बताया गया है ( सुनवाई में देरी का कारण बनने) के लिए अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने का अवसर था तो उसने पूरी ताकत और प्रबलता के साथ जमानत का विरोध करना चुना।
न्यायालय के अनुसार यह जावेद गुलाम नबी शेख मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आदेश की अवहेलना थी, जिसमें यह माना गया कि किसी अभियुक्त के शीघ्र सुनवाई के मौलिक अधिकार की रक्षा करने में विफलता के मामले में राज्य या अभियोजन एजेंसी अभियुक्त की जमानत की याचिका का विरोध नहीं करेगी। आदेश देने से पहले न्याय के हित में यह होगा कि ED की कानूनी शाखा का ध्यान जावेद गुलाम नबी शेख (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के संबंध में आकर्षित किया जाए, जैसा कि इस आदेश के पैराग्राफ 7.11 में उल्लेख किया गया।
योग्य निदेशक से अपेक्षा की जाती है कि वह एलडी को उचित निर्देश जारी करेंगे। अदालत ने कहा कि एसपीपी को जमानत याचिका का विरोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि ED के आचरण के कारण सुनवाई में देरी हुई। इसके अलावा न्यायाधीश ने कहा कि मामला आरोप तय करने के चरण तक भी नहीं पहुंचा। 24 मई को दिए गए आदेश के अनुसार अप्रमाणित दस्तावेजों की प्रति प्रदान करने के बजाय ED ने उक्त आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख करना पसंद किया। विडंबना यह है कि उस कार्यवाही में स्थगन प्राप्त करने के बाद 15.10.2024 को याचिका वापस ले ली गई।
जज ने कहा कि मामला उसी स्थिति में वापस चला गया, जहां 27.05.2024 को था। घटनाओं के अनुक्रम से यह कहा जा सकता है कि अभियोजन एजेंसी द्वारा प्राप्त एकमात्र परिणाम कार्यवाही को पूरे 5 महीने तक रोकना था, जबकि आरोपी जेल में इंतजार करते रहे। इस महीने की शुरुआत में जज ने मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक अमानतुल्ला खान को रिहा करने का आदेश दिया। यह तब हुआ जब न्यायालय ने CrPC की धारा 197 (1) के तहत अपेक्षित मंजूरी के अभाव में PMLA के तहत खान के खिलाफ ED की पूरक चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया।
मामले में आरोप लगाया गया कि अमानतुल्लाह खान ने दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में काम करते हुए मानदंडों और सरकारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए विभिन्न लोगों की अवैध रूप से भर्ती की।
ED ने आरोप लगाया कि खान ने दिल्ली वक्फ बोर्ड में कर्मचारियों की अवैध भर्ती से नकदी में अपराध की बड़ी आय अर्जित की। अपने सहयोगियों के नाम पर अचल संपत्ति खरीदने के लिए इसका निवेश किया।
ED ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।