"जांच एजेंसी पूरक बयान दर्ज करके दोष को कवर नहीं कर सकती": दिल्ली कोर्ट ने दंगों के मामले में गंभीर अपराध में गिरफ्तार 10 आरोपियों को डिस्चार्ज किया
दिल्ली की एक अदालत ने यह देखते हुए कि जांच एजेंसी पूरक बयान दर्ज करके मामले में दोष को कवर नहीं कर सकती है, उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में दस आरोपियों को डिस्चार्ज (उन्मोचन) कर दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने मोहम्मद शाहनवाज, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मोहम्मद फैसल, राशिद @ मोनू और मोहम्मद नाम के आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया।
उक्त आरोपियों को आम आमदी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के साथ घर आदि को नष्ट करने के इरादे से आग या विस्फोटक पदार्थ को इस्तेमाल करने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 436 के तहत गिरफ्तार किया गया था।
हालांकि, कोर्ट ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को एफआईआर में अन्य अपराधों की जांच करने का निर्देश दिया, क्योंकि वे मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
अदालत ने कहा,
"मुझे डर है कि जांच एजेंसी शिकायतकर्ता (ओं) के पूरक बयान दर्ज करके उक्त दोष को कवर नहीं कर सकती है, अगर आईपीसी की धारा 436 की सामग्री पुलिस को की गई उनकी प्रारंभिक लिखित शिकायतों में नहीं है।"
इसमें कहा गया,
"यह न्यायालय इस तथ्य से अवगत है कि सांप्रदायिक दंगों के मामलों पर अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ विचार किया जाना है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सामान्य ज्ञान को छोड़ दिया जाना चाहिए। इस स्तर पर भी रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के उपयोग के लिए विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।"
एफआईआर 138/2020 को 04.03.2020 को एक बृजपाल द्वारा की गई लिखित शिकायत पर दर्ज की गई थी।
इसमें उसने कहा था कि उसकी किराए की दुकान को कथित तौर पर 25.02.2020 को रात लगभग 9.30 बजे दंगाइयों ने लूट लिया था।
इस प्रकार आरोपी व्यक्तियों का मामला था कि उन्हें जांच एजेंसी द्वारा मामले में झूठा फंसाया गया और एफआईआर दर्ज करने में लगभग आठ दिनों की "अस्पष्टीकृत देरी" हुई।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि दोनों शिकायतकर्ताओं ने अपनी-अपनी लिखित शिकायतों में न तो किसी आरोपी व्यक्ति का विशेष रूप से नाम लिया और न ही उन्हें कोई विशिष्ट भूमिका सौंपी गई।
रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए न्यायालय का विचार था कि:
"उक्त शिकायतकर्ता ने अपनी उक्त दुकान में 25.02.2020 को यानि घटना की तारीख को दंगाइयों द्वारा आग या विस्फोटक पदार्थ द्वारा शरारत करने के संबंध में एक भी शब्द नहीं कहा है। यहां तक कि अपने पूरक बयान (ओं) दिनांक 04.03.2020 और 09.04.2020 में भी नहीं कहा है। उसने दंगाई भीड़ द्वारा अपनी दुकान में आग लगाने के संबंध में एक भी शब्द नहीं कहा।"
दूसरे शिकायतकर्ता के बयान के संबंध में अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि उसने उल्लेख किया कि 25 फरवरी, 2020 में उसने दुकान के शटर को तोड़ते हुए देखा और दंगाइयों द्वारा लूट लिया।
तदनुसार अदालत ने कहा:
"यह न्यायालय यह समझने में सक्षम नहीं है कि वह 24.02.2020 को पुलिस को उक्त शिकायत (शिकायतों) को कैसे प्राथमिकता दे सकता है, जब वह खुद 25.02.2020 को अपनी दुकानों का दौरा कर चुका था, जिसका अर्थ है कि 25.02.2020 को दुकानों पर जाने से पहले 25.02.2020 उसे उसके साथ हुई दुर्घटना के बारे में पता नहीं था।"
यह देखते हुए कि कुछ सवाल हैं जिनका जांच एजेंसी को ट्रायल के दौरान जवाब देना है, अदालत ने कहा:
"यह न्यायालय आगे यह समझने में सक्षम नहीं है कि 24.02.2020 को हुई एक घटना को 25.02.2020 को हुई घटना के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, जब तक कि इस आशय के स्पष्ट सबूत न हों कि दंगाइयों की एक ही गैरकानूनी भीड़ उक्त दोनों तारीखों पर काम कर रही थी। इस संबंध में विशिष्ट गवाह होने चाहिए।"
तदनुसार, न्यायालय ने आरोपियों को गंभीर अपराध से मुक्त करते हुए सीएमएम को निर्देश दिया कि वह या तो मामले की स्वयं सुनवाई करे या किसी अन्य सक्षम न्यायालय/एमएम को सौंपे। साथ ही आरोपी को 28 सितंबर को सीएमएम के समक्ष पेश होने का भी निर्देश दिया।
शीर्षक: राज्य बनाम मो. शाहनवाज व अन्य।
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