दिल्ली मुख्यमंत्री आवास नवीनीकरण: हाईकोर्ट ने कारण बताओ नोटिस का सामना कर रहे पीडब्ल्यूडी अधिकारियों को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क करने को कहा

Update: 2023-09-21 09:25 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को छह पीडब्ल्यूडी अधिकारियों को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आधिकारिक आवास पर किए गए नवीनीकरण कार्य में नियमों के कथित घोर उल्लंघन पर दिल्ली सरकार के सतर्कता विभाग द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस को चुनौती देने के लिए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क करने का निर्देश दिया।

चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा कि कारण बताओ नोटिस को चुनौती देने वाली एकल न्यायाधीश के समक्ष पीडब्ल्यूडी अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाएं एल. चंद्र कुमार बनाम संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर सुनवाई योग्य नहीं हैं।

अदालत ने कहा,

“… याचिका स्वयं सुनवाई योग्य नहीं है और एकल न्यायाधीश के समक्ष रिट याचिका प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, की धारा 19 के तहत प्रदान किए गए अनुसार मूल आवेदन दाखिल करके केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क करने की स्वतंत्रता के साथ उत्तरदाताओं नंबर 1 से 6 तक का निपटारा किया जाता है।“

खंडपीठ ने दिल्ली सरकार की उस अपील का निपटारा कर दिया, जिसमें पिछले सप्ताह एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में निर्देश दिया गया कि छह पीडब्ल्यूडी अधिकारियों के खिलाफ किसी भी प्राधिकारी द्वारा कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा।

दिल्ली सरकार ने इस मामले में प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए कहा कि रिट याचिका बिल्कुल भी सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि पीडब्ल्यूडी अधिकारी केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं। उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती देने के लिए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क करना चाहिए।

याचिका का निपटारा करते हुए खंडपीठ ने कहा कि वादियों के लिए ऐसे मामलों में भी सीधे हाईकोर्ट से संपर्क करना खुला नहीं है, जहां वे संबंधित न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र की अनदेखी करके वैधानिक कानूनों के दायरे पर सवाल उठाते हैं।

अदालत ने कहा,

“...तथ्य यह है कि एल. चंद्र कुमार (सुप्रा) में संविधान पीठ- प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम के अनुच्छेद 323 ए पर चर्चा करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि न्यायाधिकरण क्षेत्रों के संबंध में प्रथम दृष्टया अदालतों की तरह काम करना जारी रखेंगे, जिस कानून के लिए उनका गठन किया गया है।''

हालांकि, खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि उसने दिल्ली सरकार की अपील की विचारणीयता के मुद्दे को छोड़कर मामले की योग्यता के आधार पर कुछ भी नहीं देखा।

एकल न्यायाधीश के समक्ष तथ्यात्मक पृष्ठभूमि और मामला

17 अगस्त को अदालत ने अधिकारियों की याचिका पर नोटिस जारी किया और सतर्कता निदेशक, सतर्कता और लोक निर्माण विभाग के विशेष सचिव के माध्यम से दिल्ली सरकार से जवाब मांगा।

पीडब्ल्यूडी और दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशक ने तब निर्देशों पर कहा कि 12 अक्टूबर तक पीडब्ल्यूडी अधिकारियों के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा।

पीडब्ल्यूडी अधिकारियों द्वारा नया आवेदन दायर किया गया, जिसमें अदालत को दिए गए आश्वासन के उल्लंघन में दिल्ली सरकार या उसके राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण को उनके खिलाफ विभागीय या आपराधिक कार्रवाई का आदेश देने से रोकने की मांग की गई।

पीडब्ल्यूडी अधिकारियों का मामला था कि 19 जून को कारण बताओ नोटिस सतर्कता विभाग द्वारा जारी किया गया, जो अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने के लिए न तो अधिकृत है और न ही सक्षम है।

उन्होंने तर्क दिया कि अधिकारी, पीडब्ल्यूडी अधिकारी होने के नाते किसी भी अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में सतर्कता विभाग के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी नहीं है।

अपनी याचिका में पीडब्ल्यूडी अधिकारियों ने कहा कि कारण बताओ नोटिस उपराज्यपाल और सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के बीच राजनीतिक झगड़े का नतीजा है। उन्हें इस मामले में बलि का बकरा बनाया गया है।

इसमें आगे कहा गया कि लगाए गए नोटिस में पीडब्ल्यूडी अधिकारियों को गलत तरीके से अलग और निशाना बनाया गया, इस तथ्य के बावजूद कि उनके द्वारा सभी कार्य संबंधित पीडब्ल्यूडी मंत्री के निर्देशों के तहत मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास के लिए किए गए, न कि उनका निजी आवास पाने के लिए।

याचिका में कहा गया,

“आक्षेपित नोटिस से याचिकाकर्ता के खिलाफ पूर्वाग्रह की बू आती है। याचिकाकर्ता ने किसी भी नियम, क़ानून या कार्यालय आदेश का उल्लंघन नहीं किया। याचिकाकर्ता द्वारा जीएनसीटीडी के सीएम के आधिकारिक बंगले के संबंध में किया गया कार्य पूरी तरह से और अपने आधिकारिक कर्तव्यों के अनुरूप है। याचिकाकर्ता ने माननीय पीडब्ल्यूडी मंत्री, जीएनसीटीडी के निर्देशों का पालन किया और उनकी सतर्क निगरानी में लगातार अपने कर्तव्यों का पालन किया।''

केस टाइटल: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एवं अन्य बनाम एसएच. अशोक कुमार राजदेव एवं अन्य

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