दिल्ली कैंट रेप केस: हाईकोर्ट ने क्राइम ब्रांच को जांच पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के कैंट इलाके में नौ साल की बच्ची से कथित गैंगरेप और हत्या के मामले में हुई जांच पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी।
हाईकोर्ट ने यह निर्देश पीड़िता के माता-पिता द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
अपनी याचिका में पीड़िता के पिता ने अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच और प्रशासनिक कार्रवाई में कथित चूक और एफआईआर दर्ज करने में देरी की न्यायिक जांच की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति योगेश खन्ना को राज्य द्वारा अवगत कराया गया कि मामला अपराध शाखा को स्थानांतरित कर दिया गया है और पीड़ित के माता-पिता को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जा रही है।
इसके अतिरिक्त, यह भी बताया गया कि एक एसआईटी का गठन पहले ही किया जा चुका है, जिसकी निगरानी डीसीपी और दिल्ली पुलिस के संयुक्त आयुक्त कर रहे हैं।
यह भी बताया गया कि दो आरोपी व्यक्तियों ने अपराध स्वीकार कर लिया है और आईपीसी के तहत बलात्कार और हत्या के आरोप और पोक्सो अधिनियम और एससी / एसटी अधिनियम के तहत अन्य आरोपों को एफआईआर में जोड़ा गया है।
इसे देखते हुए कोर्ट ने अब तक की गई जांच पर प्रतिवादियों से स्थिति पर रिपोर्ट मांगी है।
इसके बाद कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट को मामले की अगली सुनवाई आठ नवंबर तक जमा करना होगा।
कथित प्रशासनिक खामियों की न्यायिक जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना के संबंध में प्रतिवादियों ने प्रस्तुत किया कि चूंकि मामले में जांच प्रारंभिक चरण में है, इसलिए जांच समाप्त होने के बाद ही उपरोक्त प्रार्थना पर विचार किया जाना चाहिए।
दक्षिण पश्चिम दिल्ली में दिल्ली छावनी के पास एक श्मशान घाट के एक पुजारी और तीन कर्मचारियों ने नौ साल की बच्ची के साथ कथित तौर पर बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी थी।
याचिका में कहा गया कि खेल रही नाबालिग पीड़िता पीने के पानी के लिए श्मशान के अंदर गई थी। बाद में जब पीड़िता की मां ने अपनी बेटी की तलाश की तो आरोपितों ने उसे बताया कि पीड़िता की मौत करंट लगने से हुई है।
याचिका में आरोप लगाया गया कि आरोपी व्यक्तियों ने नाबालिग पीड़िता के माता-पिता को 20,000 रुपये देकर रिश्वत देने की भी कोशिश की।
याचिका में आगे कहा गया,
"न्यायिक व्यवस्था में अटूट आस्था रखने वाले याचिकाकर्ता जब आरोपी व्यक्तियों की पेशकश को मानने के लिए राजी नहीं हुए तो आरोपितों ने बेटी के शव को जबरन जलती चिता में फेंक दिया।"
पीड़िता के माता-पिता ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस का प्राथमिक ध्यान मामले को रफा-दफा करना था। मामले में समझौता करने के लिए पुलिस द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया गया और उन पर दबाव डाला गया।
याचिका में कहा गया,
"एफआईआर दर्ज करने में देरी और वह भी हल्के अपराधों के तहत ही इंगित करता है कि पुलिस याचिकाकर्ताओं को न्याय नहीं देना चाहती है।"
यह कहते हुए कि सच्चाई का पता केवल एसआईटी जांच के माध्यम से ही लगाया जा सकता है, याचिका में निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर मांगे जाने की प्रार्थना की है:
- घटना स्थल से महज एक किलोमीटर की दूरी पर ही थाना, फिर पुलिस देरी से मौके पर क्यों पहुंची?
- एफआईआर दर्ज करने में क्यों हुई देरी? मामले में समझौता करने के लिए याचिकाकर्ताओं को थाने में प्रताड़ित और धमकी क्यों दी गई?
- पुलिस अपराध की जगह और अहम सबूतों को बचाने में नाकाम क्यों रही?
- याचिकाकर्ताओं और उसके गवाहों को सुरक्षा देने में प्रशासन क्यों विफल रहा?
- पुलिस आरोपी व्यक्तियों की गिरफ्तारी के शुरुआती नौ दिनों में जांच के उद्देश्य से पुलिस हिरासत में लेने में विफल क्यों रही?
दिल्ली पुलिस ने नाबालिग की मां के बयान के आधार पर चार आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। पीड़िता की माँ ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटी के साथ पहले बलात्कार किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई। बाद में उनकी सहमति के बिना उसका अंतिम संस्कार किया गया।
आरोपी व्यक्तियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 304, 376, 341, 506, 201 और 34, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा के 6, और एससी / एसटी अधिनियम के तीन के तहत धारा सहित मामला दर्ज किया गया।
हाल के एक निर्देश में दिल्ली की एक अदालत ने सीआरपीसी की धारा 357ए के तहत आवेदन करने के बाद पीड़ित परिवार को 2.5 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दिया था।
केस शीर्षक: सुनीता और अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और अन्य।