एकपक्षीय नियुक्त आर्बिट्रेटर द्वारा पारित अवॉर्ड नॉन-एस्ट, यह एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत याचिका की सुनवाई के लिए बाधा नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि एकतरफा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा पारित अवॉर्ड नॉन-एस्ट (non-est) है, इसलिए यह एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत याचिका की सुनवाई के लिए बाधा नहीं हो सकता।
जस्टिस संजीव नरूला की पीठ ने कहा कि अवॉर्ड पारित करने से नॉन-एस्ट कार्यवाही पवित्र नहीं हो जाती और केवल यह तथ्य कि याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 14 के तहत एकतरफा नियुक्ति को चुनौती नहीं दी थी, यह उसे स्वतंत्र मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए कोर्ट से अपील करने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है।
तथ्य
पार्टियों ने छह सितंबर, 2014 को एक बिल्डर एग्रीमेंट किया, जिसके तहत याचिकाकर्ता 'खरीदार' था और प्रतिवादी 'डेवलपर' था। एग्रीमेंट का क्लॉज 20 ऑर्बिट्रेशन क्लॉज था। समापन में विलंब और भुगतान न होने के कारण दोनों पक्षों में विवाद हो गया।
ऑर्बिट्रेशन क्लॉज ने प्रतिवादी को एकतरफा एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त करने का अधिकार दिया। जिसके बाद प्रतिवादी ने 21 नवंबर 2017 को एक नोटिस के जरिए एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया और विवाद को उसे संदर्भित किया।
याचिकाकर्ता ने मध्यस्थ की नियुक्ति पर आपत्ति जताई और मध्यस्थ के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए। नतीजतन, मध्यस्थ ने खुद को मामले से अलग कर लिया और पार्टियों को पारस्परिक रूप से वैकल्पिक मध्यस्थ को नियुक्त करने का निर्देश दिया।
नौ अक्टूबर, 2018 को प्रतिवादी ने एकतरफा रूप से दूसरा/स्थानापन्न मध्यस्थ नियुक्त किया। मध्यस्थ की एकतरफा नियुक्ति से व्यथित याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 11 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि प्रतिवादी का प्रबंध निदेशक एकमात्र मध्यस्थ के रूप में कार्य नहीं कर सकता है, हालांकि वह मध्यस्थ नियुक्त कर सकता है।
हाईकोर्ट के निर्णय से व्यथित याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की, जिसे याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर करने की स्वतंत्रता के साथ निस्तारित किया गया।
तदनुसार, याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका दायर की और पर्किन्स ईस्टमैन [1] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर हाईकोर्ट ने पुनर्विचार याचिका की अनुमति दी और मामले को नए सिरे से तर्क के लिए सूचीबद्ध किया।
आपत्ति
प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधारों पर याचिका के सुनवाई योग्य होने पर आपत्ति जताई-
-हाईकोर्ट के आदेश से दूसरे मध्यस्थ की नियुक्ति की पुष्टि हुई, इसलिए आगामी कार्यवाही और निर्णय भी वैध है।
-सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थ कार्यवाही पर कभी कोई रोक नहीं लगाई गई थी, इस प्रकार, नियुक्ति की पुष्टि के बाद भी वही कानूनी रूप से जारी रहा।
-मध्यस्थ की एकतरफा नियुक्ति के खिलाफ अपील ए एंड सी एक्ट की धारा 14 के तहत है और याचिकाकर्ता ने उस पर अपील नहीं की है बल्कि अधिनियम की धारा 11 के तहत एक आवेदन दायर किया है।
-अंतिम निर्णय पारित कर दिया गया है और याचिकाकर्ता के लिए अधिनियम की धारा 34 के तहत अवॉर्ड को चुनौती देना उचित विकल्प था, हालांकि याचिकाकर्ता ने निर्धारित समय अवधि में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया, इसलिए अवॉर्ड अंतिम और बाध्यकारी हो गया है।
विश्लेषण
न्यायालय ने कहा कि किसी भी स्पष्ट समझौते के अभाव के विपरीत, याचिकाकर्ता को अधिनियम की धारा 11 (6) के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष मध्यस्थ की नियुक्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, नॉन-एस्ट ऑर्बिट्रल प्रोसिडिंग के अंतिम निर्णय में परिणत होने के बावजूद...।
कोर्ट ने प्रतिवादी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि एकतरफा मध्यस्थ की नियुक्ति पहले के आदेश की पुष्टि करती है, इसलिए बाद की कार्यवाही भी मान्य होगी। न्यायालय ने माना कि न्यायालय के पहले के आदेश को वापस ले लिया गया था, इसलिए, प्रतिवादी एक अवैध मध्यस्थता कार्यवाही को पवित्रता देने के लिए उस आदेश पर भरोसा नहीं कर सकता है।
अदालत ने आगे कहा कि एक अवॉर्ड पारित करने से नॉन-एस्ट प्रोसिडिंग पवित्रता नहीं हो जाती और केवल यह तथ्य कि याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 14 के तहत एकतरफा नियुक्ति को चुनौती नहीं दी है, यह स्वंतंत्र मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के अधिकार से उसे वंचित नहीं कर सकता है।
तदनुसार, न्यायालय ने याचिका को अनुमति दी और मध्यस्थ नियुक्त किया।
केस टाइटल: गीता पोद्दार बनाम सत्या डेवलपर्स प्रा. लिमिटेड
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 838