कोर्ट के साथ धोखाधड़ी करके प्राप्त की गई बच्चे की कस्टडी अमान्य घोषित करने योग्य: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-10-09 06:29 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय मूल के एक केन्याई नागरिक को बच्चे की कस्टडी सौंपने के आदेश को वापस ले लिया है। कोर्ट ने उक्त आदेश को "अवैध" और "अमान्य" घोषित कर दिया है। कोर्ट ने पाया कि आदेश पाने के लिए ‌केन्याई नागर‌िक धोखाधड़ी की और भौतिक तथ्यों को छुपाकर "अशुद्ध हाथों" से कोर्ट से संपर्क किया था। (स्मृति मदन कंसाग्रा बनाम पेरी कंसाग्रा)

यह देखते हुए कि प‌िता ने बच्चे की कस्टडी पाने के बाद उसे केन्या ले जाने के लिए अदालत की और से तय शर्तों का उल्लंघन किया है, कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह बच्चे की कस्टडी को सुरक्षित करे और उसे मां को सौंपने के लिए कार्यवाही शुरू करे।

कोर्ट ने केंद्र सरकार और केन्या स्‍थ‌ित भारतीय दूतावास को भी मां की मदद करने और बच्चे के पिता पेरी कंसाग्रा के खिलाफ स्वत: अवमानना ​​का मामला दर्ज करने का आदेश दिया। कोर्ट ने पेरी कंसाग्रा को 16 नवंबर को उसके सामने पेश होने का निर्देश दिया है।

साथ ही रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि कंसाग्रा की ओर से जमा की गई रकम में से 25 लाख रुपये मुकदमेबाजी की लागत के रूप में उसकी पत्नी को दिया जाए।

जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, "यह मूलभूत है कि अदालत में आने वाले पक्ष को साफ हाथों से आना चाहिए, खासकर बच्‍चों की कस्टडी के मामलों में। कोई भी कपटपूर्ण आचरण जिसके आधार पर अदालत के आदेश के तहत नाबालिग की कस्टडी प्राप्त की जाती है, वह भरोसे के तत्व को नकार देगा और समाप्त कर देगा, जो संबंधित व्यक्ति में न्यायालय ने जताया है। जहां भी नाबालिग की हिरासत माता-पिता या संबंधित पक्षों के बीच विवाद का मामला है, माता-पिता के अधिकार क्षेत्र में नाबालिग की प्राथमिक हिरासत न्यायालय के पास है, जो किसी व्य‌‌क्ति को तब सौंपी जा सकती है, जब वह न्यायालय की नजर में सबसे उपयुक्त व्यक्ति होगा। धोखाधड़ी के आचरण और डिजाइन के साथ न्यायालय से ऐसी कस्टडी प्राप्त करने के लिए शुरू की गई कोई भी कार्रवाई न्यायालय की प्रक्रिया पर धोखाधड़ी होगी"।

मामला

अक्टूबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट की 3-जजों की पीठ ने 2:1 बहुमत से माना था कि भारतीय मूल के पिता, जो उस समय केन्या में रह रहे थे, बच्चे की कस्टडी के हकदार थे। जहां जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने बेटे की कस्टडी पिता को दी था, वहीं जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा था कि मां कस्टडी की हकदार है।

बहुमत ने एक शर्त लगाई कि पिता को बच्चे को केन्या ले जाने के लिए दो सप्ताह के भीतर संबंधित केन्याई अदालत से "मिरर ऑर्डर" प्राप्त करना चाहिए। बाद में, मां ने एक आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि पिता ने केन्याई उच्च न्यायालय से कथित तौर पर जाली या गलत मिरर ऑर्डर देकर कस्टडी प्राप्त की है।

यह भी आरोप लगाया गया कि उसने न केवल मां को बच्चे से मिलने का अधिकार देने के निर्देशों का पालन करने से इनकार कर दिया, बल्‍कि केन्या के संविधान के अनुच्छेद 23(3) (डी) के तहत नाबालिग से संबंधित कथित और अप्रवर्तनीय निर्णयों और आदेशों के माध्यम से नाबालिग के मौलिक अधिकारों से इनकार, उल्लंघन और/या धमकी देने के आधार पर भारतीय अधिकार क्षेत्र और/या कानूनों और/या निर्णयों को अवैध घोष‌ित करने के लिए केन्याई अदालत का दरवाजा खटाखटाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हर मोड़ पर पेरी द्वारा कोर्ट को दी गई अंडरटेकिंग का न केवल खुले तौर पर उल्लंघन किया गया था, बल्कि अब भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में खुद को प्रस्तुत करने के बावजूद, भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने वाला एक स्टैंड लिया गया है।

बेंच ने कहा, "ये घटनाक्रम न केवल पेरी द्वारा अपनाई गई उद्दंड और आपत्तिजनक मुद्रा को दिखाते हैं, बल्कि प्रथम दृष्टया अंतरिम आवेदनों में की गई मां की प्रस्तुतियों का समर्थन करते हैं ... यह मानने के लिए ठोस सामग्री और कारण मौजूद है कि पेरी ने इस अदालत से अपने पक्ष में आदेश पारित कराने और बेटे की कस्टडी की अनुमति पाने के लिए सुनियोजित साजिश की।

कोर्ट ने मामले में निम्नलिख‌ित निर्देश जारी किए-

-केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), नई दिल्ली को अपने निदेशक के माध्यम से पेरी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही दर्ज करके उचित कार्यवाही शुरू करने और आदित्य की हिरासत को सुरक्षित करने और स्मृति को सौंपने का निर्देश दिया जाता है।

-सचिव, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली और केन्या में केन्या स्‍थ‌ित भारतीय दूतावास को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि बेटे की कस्टडी हासिल करने के लिए मां को हर संभव सहायता और साजो-सामान प्रदान किया जाए।

-पेरी द्वारा बेटे की स्थायी हिरासत के लिए जिला अदालत, साकेत में दायर संरक्षकता याचिका और इसके परिणामस्वरूप उच्च न्यायालय की कार्यवाही को खारिज किया जाता है।

-कस्टडी के आदेश को वापस लेने के बाद पेरी के पास बेटे की कस्टडी को शुरू से से अवैध और आमान्य घोष‌ित की जाती है।

केस शीर्षक: स्मृति मदन कंसाग्रा बनाम पेरी कंसाग्रा

कोरम: जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी

सिटेशन : एलएल 2021 एससी 555

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