(COVID-19) सीआरपीसी की धारा 167(2) के नियम (2) के तहत पाबंदी के बाद भी मजिस्ट्रेट असाधारण परिस्थितयों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अभियुक्त की पहली रिमांड अधिकृत कर सकता हैः कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि मजिस्ट्रेट COVID-19 के मद्देनजर असाधारण परिस्थितियों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पहली बार किसी आरोपी की रिमांड को अधिकृत कर सकता है।
न्यायालय ने आदेश में कहा है:
"... एक बहुत ही असाधारण मामले में, जहां विद्वान मजिस्ट्रेट का विचार है कि एक गंभीर आशंका है कि अभियुक्त नॉवेल कोरोना वायरस (COVID 19) से संक्रमित हो सकता है और इसलिए, स्वास्थ्य अभ्यास का अनुकरण करने के उद्देश्य से, अभियुक्तों को पहली बार शारीरिक रूप से कोर्ट के समक्ष पेश किए जाने से बचा जाना चाहिए। वह, विशेष रूप से निदृष्ट कारणों के लिए, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अभियुक्तों की पेशी को अधिकृत कर सकते हैं "।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने कहा कि आवश्यक नहीं है कि यह स्पष्ट रूप से तय किया जाए कि फैसले के तहत कौन से मामले कवर किए जाएंगे। इसका कारण यह है कि यह प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगा।
पीठ ने कहा-
"ऐसा ही एक बहुत ही असाधारण मामला हो सकता है, जहां अभियुक्त कंटेनमेंट जोन या रेड जोन का निवासी हो या अभियुक्त में COVID 19 के लक्षण मौजूद हों, या वह COVID 19 से संक्रमित हो। ऐसी असाधारण परिस्थितियों में एक विद्वान मजिस्ट्रेट की ओर से किया गया फैसला कानूनी रूप से वैध हो सकता है, और यह सर्वोच्च न्यायालय की ओर से अनुच्छेद 142 के तहत जारी किए गए पूर्वोक्त निर्देशों के पैराग्राफ 6 (1) में दिए गए कथानक के आधार पर होगा।
कोर्ट ने यह नियम एक सुओ मोटो पिटिशन पर दिया, जिसके तहत एक जून से ट्रायल अदालतों में शुरू हुए आंशिक कामकाज के दौरान पेश आए विभिन्न कानूनी और तकनीकी मुद्दों को उठाया गया था।
अदालत ने अपने फैसले को सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक सुओ मोटो रिट पिटिशन में 6 अप्रैल को दिए आदेश के आधार पर दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ही शुरू किया था (इन रिप्लाई: COVID 19 महामारी के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कामकाज के लिए दिशानिर्देश)।
धारा 167 (2), प्रावधान (बी) सीआरपीसी लागू नहीं
इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता सीवी नागेश ने सूओ-मोटू याचिका में एमिकस क्यूरि के रूप में हाईकोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर कहा, संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड (2) की आवश्यकता है कि गिरफ्तारी और पुलिस हिरासत में लिए प्रत्येक व्यक्ति को गिरफ्तारी के चौबीस घंटे के भीतर निकटम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाए। सीआरपीसी की धारा 167 की आवश्यकता भी यही है। उन्होंने कहा सीआरपीसी की धारा 167 की उप-धारा (2) के लिए प्रोविसो के क्लॉज (बी) में स्पष्ट किया गया कि किन मामलों में अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के समक्ष इलेक्ट्रॉनिक वीडियो लिंकेज के माध्यम से पेश किया जा सकता है। मजिस्ट्रेट के सामने अभियुक्त की पेशी
शारीरिक रूप से होना चाहिए, जब मजिस्ट्रेट पुलिस की कस्टडी में अपनी हिरासत को अधिकृत करता है। कि पुलिस कस्टडी रिमांड का विस्तार भी आरोपी के शारीरिक रूप से पेश होने पर ही दिया जा सकता है। केवल न्यायिक कस्टडी रिमांड के विस्तार के मामले में, अभियुक्त की पेशी इलेक्ट्रॉनिक वीडियो लिंकेज के माध्यम से किया जा सकता है।
इस संबंध में अदालत ने कहा:
"सीआरपीसी की धारा 167 की उप-धारा (2) के प्रोविसो (बी) के तहत कानून के स्पष्ट प्रावधान के बावजूद कि पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत और पुलिस हिरासत के बाद के विस्तार के संबंध में पहले रिमांड का आदेश रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने व्यक्तिगत रूप से आरोपियों को पेश करके ही प्राप्त किया जा सकता है, कुछ बहुत ही असाधारण मामलों में, जहां वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पहले रिमांड की अनुमति दी जाती है, सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिनांक 6 अप्रैल, 2020 को दिए गए निर्देशों के पैराग्राफ 6 के क्लॉज (i)के तहत कवर किया जाएगा। इसलिए, इसे वैध माना जाएगा।"
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति की पहल पर बनाए गए 'वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई के लिए नियम ' पर भी भरोसा किया है।
नियम 11.1: न्यायालय, अपने विवेकानुसार, वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अभियुक्त को हिरासत में लेने का अधिकार दे सकता है, सीआरपीसी के तहत एक आपराधिक मुकदमे में चार्ज फ्रेम कर सकता है। हालांकि, पहले उदाहरण में, लिखित में दर्ज किए गए कारणों और असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, न्यायिक रिमांड या या पुलिस रिमांड को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से नहीं दिया जा सकता है।"
एमिकस क्यूरी ने नियम 11.1 पर कहा कि यह नियम सीआरपीसी की धारा 167 की उपधारा (2) के प्रोविसो के क्लाज (बी) के विपरीत है, और सीआरपीसी की धारा 167 की उपधारा (2) के प्रोविसो का क्लाज (बी) ही लागू होगा।
हालांकि, पीठ ने कहा:
"नियम 11.1 का दूसरे भाग पर, सामान्य स्थति में, इस आधार खारिज किया जा सकता है कि यह व्यक्त वैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन कारण कमजोर है। हालांकि, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुनवाई नियमों को न्यायालय ने COVID 19 की महामारी के दौरान आसाधारण परिस्थितियों में बनाया है। इसलिए, बहुत ही असाधारण मामले में, जहां विद्वान मजिस्ट्रेट का विचार होगा कि आरोपी नॉवेल कोरोनावायरस (COVID 19) से संक्रमित हो सकता है और इसलिए.. न्यायालय के समक्ष पहली बार अभियुक्त की शारीरिक पेशी से बचा जाना चाहिए।..."
पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि पिछले तीन हफ्तों में राज्य में नोवेल कोरोनावायरस (COVID 19) के संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है।