दिल्ली दंगे: अदालत ने "असंगत तहकीकात" पर सवाल उठाया, जिसमें घायल शिकायतकर्ता को ही आरोपी बना दिया गया
दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दंगों के मामले में इन्वेस्टिगेशन या तहकीकात पर सवाल उठाया है, जहां साजिद नाम के शिकायतकर्ता व्यक्ति को ही तहकीकात के बाद आरोपी के रूप में पेश किया गया।
साजिद ने आरोप लगाया कि 25 फरवरी, 2020 को उसे गोली लगी थी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा,
"उत्सुकतावश तहकीकात के दौरान साजिद को आरोपी बनाया गया। प्राथमिक कारणों में से एक यह है कि चूंकि उसे दंगों के दौरान गोली का सामना करना पड़ा, इसलिए उसे दंगाई भीड़ का हिस्सा माना जा सकता है। इस तर्क से हर घायल व्यक्ति दंगों के मामले में आरोपी बनाया जा सकता है।"
उन्होंने कहा,
"...तहकीकात इस बात पर सवाल उठाती है कि कैसे अभियोजन पक्ष ने एक तरफ 6 आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 के तहत आरोप लगाया, जो घायल साजिद की हत्या का प्रयास है, जिसे इस मामले में दंगा करने के अपराध के लिए आरोपी के रूप में भी दिखाया गया है।"
यह देखते हुए कि साजिद मुख्य गवाहों और उन अभियुक्त व्यक्तियों में से एक है, जिन्हें अभियोजन पक्ष के अनुसार मुकदमे का सामना करना पड़ा है, अदालत ने कहा कि गोली की चोट को साबित किए बिना हत्या के प्रयास के आरोप को साबित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा,
''...लेकिन साजिद उस मामले में गवाह के तौर पर कैसे पेश होगा, जिसमें वह खुद आरोपी है।''
कोर्ट ने यह जोड़ा,
"तहकीकात के ये पहलू इस हद तक असंगत हैं कि अगर साजिद को इस मामले में आरोपी बताया जाता है तो उसे गवाह नहीं बनाया जा सकता है। तब वह एक गवाह के रूप में होगा, जो अभियोजन पक्ष की ओर से गवाही देगा और साथ ही वह आरोपी होगा जो खुद से जिरह करता है।"
एफआईआर साजिद की शिकायतकर्ता के आधार पर आईपीसी की धारा 143, 144, 145, 147, 148, 149, 307 और धारा 188 के तहत दर्ज की गई।
साजिद ने आरोप लगाया कि 25 फरवरी, 2020 को दंगाई भीड़ से बचने की कोशिश करते हुए कुछ लोग उसके पीछे भागे। इसके बाद उसे पीछे से कोई चीज आकर लगी। बाद में उसे अस्पताल ले जाया गया और बताया गया कि उसे गोली लगी है।
तहकीकात के दौरान, साजिद की तहकीकात की गई। उसे दंगों में चोट लगी थी, इसलिए यह निष्कर्ष निकाला गया कि वह दंगाइयों की भीड़ का हिस्सा था।
मार्च, 2020 में कांस्टेबल ने सभी छह आरोपी व्यक्तियों को दंगाइयों की भीड़ का हिस्सा बताते हुए बयान दिया। उनमें से पांच को अवैध रूप से इकट्ठा होने के सिद्धांत पर गिरफ्तार किया गया, जबकि एक अन्य आरोपी की बाद में कांस्टेबल द्वारा पहचान कर ली गई।
चार्जशीट पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा:
"ऐसा लगता है कि तहकीकात का पूरा ध्यान 06 आरोपी व्यक्तियों की संलिप्तता को दिखाने के लिए रहा है, जो दंगाइयों में शामिल थे, जिसके कारण साजिद को गोली लगी।"
अदालत का विचार था कि हत्या के प्रयास को अपराध साबित करने के उद्देश्य से अभियोजन पक्ष को यह दिखाना है कि साजिद को गोली लगी थी।
कोर्ट ने कहा,
"आईपीसी की धारा 307 उस तरह से लागू नहीं किया जा सकता जैसा अभियोजन पक्ष बनाना चाहता है। यदि अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि सभी 07 आरोपी व्यक्ति उनकी उपस्थिति के कारण दंगाइयों की भीड़ का हिस्सा थे तो मामले में आईपीसी की धारा 307 को आकर्षित नहीं किया जा सकता है।"
न्यायाधीश ने आगे कहा कि चूंकि केवल उस कांस्टेबल का बयान बचा है जिसने दावा किया कि उसने सभी आरोपियों की पहचान दंगों में भाग लेने वाले के रूप में की थी। उन सभी पर आईपीसी की धारा 307 के तहत आरोप नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि यह तर्क दिया जा सकता है कि सभी आरोपी व्यक्तियों ने दंगों में भाग लिया था।
अदालत ने आदेश दिया,
"इसलिए, जिस तरह से तहकीकात की गई है और आरोप पत्र तैयार किया गया मेरा मानना है कि मामले में आईपीसी की धारा 307 नहीं लागू की गई। इस प्रकार, यह मामला विशेष रूप से सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय नहीं है।"
तदनुसार, हत्या के प्रयास के आरोप के सभी सात आरोपियों को बरी करते हुए अदालत ने अन्य अपराधों के लिए आरोप तय करने के उद्देश्य से मामले को वापस नामित मजिस्ट्रेट अदालत में भेज दिया।