''अदालत अधिवक्ताओं के लिए फीस तय नहीं कर सकती'': बॉम्बे हाईकोर्ट ने कंगना रनौत मामले में बीएमसी द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता को दी फीस को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

Update: 2021-02-08 12:00 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को अभिनेत्री कंगना रनौत के मामले में बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) का प्रतिनिधित्व करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता अस्पी चिनॉय को नियुक्त करने और उनको भुगतान की गई ''मोटी फीस'' को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। कंगना ने पिछले साल उनके बंगले में बीएमसी द्वारा किए गए विध्वंस कार्य को चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति मनीष पितले की खंडपीठ ने ऐक्टिविस्ट शरद यादव की याचिका को खारिज करते हुए कहा, ''केवल इसलिए कि हम शांति से सुनवाई कर रहे हैं, पूरी दुनिया में जो कुछ भी उपलब्ध है, उसका तर्क यहां नहीं दिया जा सकता है।''

पीठ ने आगे कहा कि अधिवक्ताओं की नियुक्ति और उनके लिए देय शुल्क का फैसला अदालत के दायरे में नहीं था।

न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, ''वरिष्ठ अधिवक्ताओं और एडवोकेट आॅन रिकॉर्ड द्वारा क्या  फीस ली जानी चाहिए, यह अदालत द्वारा तय नहीं किया जा सकता है?''

याचिकाकर्ता द्वारा चिनॉय का वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम रद्द करने की मांग पर न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, ''हम नहीं समझ नहीं पा रहे हैं कि इस तरह की याचिकाएं क्यों दायर की जाती हैं और इसके पीछे क्या इरादे हैं?''

रनौत ने 9 सितंबर, 2020 को बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था, जब बीएमसी ने पाली हिल पर एक बंगले के अंदर स्थित उनके कार्यालय के कुछ हिस्सों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया था। बीएमसी का प्रतिनिधित्व करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता अस्पी चिनॉय को नियुक्त किया गया था।

यादव ने चिनॉय की नियुक्ति और उन्हें 82.5 लाख रुपये की मोटी फीस का भुगतान करने के बीएमसी के फैसले को चुनौती दी थी, खासकर जब बीएमसी को इस मामले में कोई राहत नहीं दी गई थी। उन्होंने इस मामले में एफआईआर दर्ज करने और सीबीआई द्वारा मामले की जांच करवाने की मांग भी की थी।

बीएमसी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल सखारे ने कहा कि एक वकील की नियुक्ति विभाग का निर्णय था। उन्होंने कहा कि बीएमसी को पहले किए गए एक कथित अवैध विध्वंस के लिए पुनर्निर्माण लागत का भुगतान करने का आदेश दिया गया है,जो वरिष्ठ वकील को नियुक्त करने का निर्णय लेने से पहले का था।

सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा कि वे सलाहकार क्षेत्राधिकार में नहीं बैठे हैं, लेकिन याचिकाकर्ता हमेशा बीएमसी से संपर्क कर सकता है कि वह अपने वकीलों को किए जाने वाले भुगतान पर कैप रखे।

यादव की तरफ से दलील दी गई थी कि बीएमसी केस हार गई है और इसलिए चिनॉय को शुल्क वापस करना चाहिए। इस दलील के बारे में अदालत ने यह जानना चाहा कि मामले के परिणाम के लिए वकील की उपस्थिति कैसे गलत हो सकती है?

जस्टिस शिंदे ने कहा कि,

''मान लीजिए कि आपको बीएमसी ने नियुक्त किया और आपने उन्हें अपनी फीस बताई। जिसके बाद आप मामले में पेश हुए और पूरी कोशिश की लेकिन अदालत ने सिविक बाॅडी के खिलाफ एक आदेश पारित कर दिया तो क्या आपको इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?''

इसके बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

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