लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार एक 'विशाल समस्या', शासन में आम आदमी का विश्वास खत्म कर रहा: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2023-05-10 12:15 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने गृह विभाग में अतिरिक्त कार्यालय अधीक्षक के पद पर पदोन्नति पर विचार करने की मांग वाली एक कर्मचारी की याचिका खारिज कर दी। कर्मचारी रिश्वतखोरी के आरोपों के संबंध में अनुशासनात्मक जांच का सामना कर रहा है।

याचिका खारिज करते हुए जस्टिस विनीत कुमार माथुर ने कहा:

"ऐसे मामलों में, ऐसे व्यक्तियों पर कोई दया नहीं दिखाई जा सकती है जो गंभीर कदाचार में लिप्त हैं और आज सरकारी विभागों में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने के लिए उनसे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।"

याचिकाकर्ता को शुरू में गृह मामलों के विभाग में अवर श्रेणी लिपिक (एलडीसी) के पद पर नियुक्त किया गया था और उसके बाद 30.06.2015 के आदेश द्वारा उच्च श्रेणी लिपिक (यूडीसी) के पद पर पदोन्नत किया गया था। 20.07.2020 के आदेश द्वारा उसे यूडीसी के पद पर प्रोन्नति के बाद वर्ष 2020-21 की रिक्तियों के विरूद्ध सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर प्रोन्नत किया गया।

20.07.2020 के आदेश में उल्लेख किया गया कि सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर याचिकाकर्ता की पदोन्नति 01.11.2020 से प्रभावी की जाएगी।

इसी बीच 06.08.2020 को उकसे खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी। उन्हें गिरफ्तार किया गया और उसके बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था। बाद में उन्हें निलंबित कर दिया गया और उनके खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू कर दी गई।

जिसके बाद जब प्रतिवादी-विभाग ने वर्ष 2022-23 के दौरान रिक्तियों के लिए सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद के लिए पदोन्नति की कवायद शुरू की तो याचिकाकर्ता की स्थिति को वरिष्ठता सूची में 'वरिष्ठ सहायक' के रूप में दिखाया गया।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील एडवोकेट सुशील सोलंकी ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता को 20.07.2020 के आदेश के तहत पहले ही पदोन्नत किया गया था, इसलिए वर्ष 2022-23 की रिक्तियों हेतु सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर प्रोन्नति हेतु तैयार की गई वरिष्ठता सूची में याची का नाम 'वरिष्ठ सहायक' के रूप में दर्शाना मनमाना एवं अवैध है।

प्रतिवादियों की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि 20.07.2020 के आदेश का केवल अवलोकन करने से पता चलता है कि पदोन्नति आदेश 01.11.2020 प्रभावी होना था। उन्होंने आगे तर्क दिया कि 20.07.2020 के आदेश के पारित होने के बाद, याचिकाकर्ता को एक आपराधिक मामले में शामिल पाया गया और उसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उसे निलंबन के तहत भी रखा गया था और उसके खिलाफ अनुशासनात्मक जांच चल रही है, इसलिए वर्तमान में याचिकाकर्ता के पास कार्रवाई का कोई कारण नहीं है।

याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज करते हुए कि वह पहले ही पदोन्नत हो चुका है और 22-07-2020 से प्रभावी सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर शामिल हो गया है, जस्टिस माथुर ने कहा कि याचिकाकर्ता को 22.07.2020 से प्रभावी सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्यभार ग्रहण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी क्योंकि पदोन्नति 01.11.2020 से प्रभावी होनी थी।

जस्टिस माथुर ने आगे कहा कि विभाग द्वारा वर्ष 2022-23 की रिक्तियों को भरने के लिए जो पदोन्नति की कवायद की गई है, वह सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर विचार करने के लिए है और चूंकि याचिकाकर्ता सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर शामिल या पदोन्नत नहीं हुआ था, अब तक विभाग द्वारा तैयार की गई वरिष्ठता सूची में उनका नाम 'वरिष्ठ सहायक' के रूप में दर्शाना जायज है।

जस्टिस माथुर ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता एक बहुत ही गंभीर कदाचार के लिए अनुशासनात्मक जांच का सामना कर रहा है और उसे निलंबित कर दिया गया है, और इस प्रकार अदालत के लिए यह विचार करना समयपूर्व है कि जांच का भाग्य क्या होगा?

अदालत ने आगे कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों का ईमानदार लोक सेवकों पर मनोबल गिराने वाला प्रभाव पड़ता है और लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार एक "विशाल समस्या" बन गया है।

उक्त टिप्प‌णियों के साथ कोर्ट ने रिट याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल: मदन लाल बनाम राजस्थान राज्य और अन्य एसबी सिविल रिट पीटिशन नंबर 8952/2022

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