''समझौता संस्कृति व्यापक रूप से प्रचलित, मृतक का जीवन इतना सस्ता नहीं है जिसे दो व्यक्तियों के बीच निगोशिएट किया जा सके'': इलाहाबाद हाईकोर्ट
यह देखते हुए कि केस लड़ने वाले पक्षों के बीच 'समझौता संस्कृति' अब तेजी से प्रचलित हो रही है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि,
''मृतक का जीवन इतना सस्ता नहीं है, जिसे दो व्यक्तियों के बीच निगोशिएट किया जा सके।''
न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की। इस मामले में आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए,304बी,120बी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत केस दर्ज किया गया था।
संक्षेप में मामला
मामला एक महिला से संबंधित है, जिसने अपनी शादी के डेढ़ माह बाद ही आवेदक-पति के घर पर अपनी जान गंवा दी थी।
इस मामले के संबंध में प्राथमिकी 18 जुलाई 2019 को मृतक महिला की मां की शिकायत पर मृतका के पति (अदालत के समक्ष आवेदक) और उसके परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दर्ज की गई थी।
प्राथमिकी में आरोप लगाए गए कि वे मोटरसाइकिल, एक सोने की चेन और अतिरिक्त दहेज के रूप में 1 लाख रुपये की मांग कर रहे थे। यह मांग पूरी न होने पर उन्होंने मृतका को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था और अंत में 17 जुलाई 2019 को उसकी हत्या कर दी।
शिकायतकर्ता मां व मृतका के पिता का बयान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किया गया,जिसमें स्पष्ट रूप से एफआईआर में लगाए गए आरोपों का समर्थन किया गया है।
गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान, आवेदक/ पति /अभियुक्त के वकील ने अदालत का ध्यान 17 जुलाई 2019 को हुए कथित पंचनामा व कुछ तस्वीरें की तरफ आकर्षित किया,जिनसे पता चलता है कि मृतक के पिता ने 2 लाख रुपये स्वीकार किए हैं और आरोपियों को उन पर लगाए गए सभी आरोपों से छूट दे दी है।
इस पर, अदालत ने नाराजगी व्यक्त की और कहा,
''यह कुछ नहीं है,बल्कि पक्षकारों के बीच हुए समझौता का परिणाम है। लाॅ कोर्ट को उक्त समझौते में पार्टी नहीं बनाया जा सकता है।''
मामले की परिस्थितियों के मध्यनजर न्यायालय ने कहा कि,
''यह न्याय के हित में आवश्यक है कि झूठे सबूत देकर जो अपराध किया गया है, उसकी जांच होनी चाहिए।''
इसके अलावा, अदालत ने निर्देश दिया कि सीआरपीसी की धारा 340 के तहत शिकायतकर्ता सविता देवी(मृतक-महिला की मां) को नोटिस जारी किया जाए ताकि वह व्यक्तिगत रूप से या अपने वकील के माध्यम से उपस्थित होकर जवाब दे सकें कि क्यों न उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए?
अन्त में, न्यायालय ने निर्देश दिया कि शिकायतकर्ता का जवाब 20 फरवरी 2021 तक कार्यालय को प्राप्त हो जाना चाहिए।
इस मामले को आगे की सुनवाई और तर्कों के लिए 24 फरवरी 2021 को फिर से सूचीबद्ध किया गया है।
केस का शीर्षक - रितेश चव्हाण बनाम यू.पी राज्य, आपराधिक मिश्रित जमानत आवेदन संख्या - 32538/2020
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