COVID-19 मास्क के लिए अनुपालन शुल्क अधिवक्ताओं के लिए सामान्य रूप से अधिक हो सकता है, इगो का इश्यू नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के निजी वाहन में अकेले यात्रा करते समय भी COVID-19 प्रोटोकॉल के हिस्से के रूप में मास्क पहनने के आदेश को चुनौती देने वाली 4 अधिवक्ताओं की याचिकाओं को खारिज करते हुए जोरदार शब्दों में कहा, "एक वर्ग के रूप में अधिवक्ताओं के कारण उनके कानूनी प्रशिक्षण का एक उच्च कर्तव्य है कि विशेष रूप से महामारी जैसी परिस्थितियों का अनुपालन करें। मास्क पहनने को अहम् मुद्दा नहीं बनाया जा सकता है।"
न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि उनके कानूनी प्रशिक्षण के कारण अधिवक्ताओं और वकीलों से उम्मीद की जा रही है कि वे "सवाल करने" की बजाय महामारी को रोकने के उपायों की सहायता करेंगे।
कोर्ट ने कहा,
"अधिवक्ताओं और वकीलों का अनुपालन आम जनता को अनुपालन के लिए ज्यादा प्रोत्साहित करेगा। अधिवक्ताओं और वकीलों का कर्तव्य अधिक परिमाण देगा। विशेष रूप से महामारी अधिनियम, 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, के तहत जारी निर्देशों, उपायों और दिशानिर्देशों के प्रवर्तन के लिए महामारी के संदर्भ में।"
व्यक्तिगत यात्रा में मास्क पहनने के आदेश को चुनौती देते हुए विभिन्न अधिवक्ताओं द्वारा दायर की गई 4 समान याचिकाओं पर फैसला सुनाते समय कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की। जबकि एड एडवोकेट सौरभ शर्मा ने जुर्माने की राशि को चुनौती दी। प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने के लिए उन पर 500 रूपये की जुर्माना लगाया गया था। एक अन्य याचिकाकर्ता एडवोकेट सुदेश कुमार ने शिकायत की कि गाड़ी चलाते समय मास्क से मुंह और नाक ढंकने के बावजूद उन पर जुर्माना लगाया गया।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने खुद इस तरह के कोई निर्देश जारी नहीं किए है और इस विषय पर एक कानून के अभाव में इस तरह के जुर्माना लगाना गैर-कानूनी और मनमाना है।
हालांकि, सुनवाई के दौरान मंत्रालय ने कहा कि स्वास्थ्य संविधान के तहत राज्य का विषय है और इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय दिल्ली सरकार का होगा।
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