'स्पष्ट है कि पुलिस ने अपराधी की मदद की': कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी पुलिसकर्मी की जमानत रद्द की

Update: 2021-05-28 12:30 GMT

यह देखते हुए कि ''यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि पुलिस कैसे जघन्य अपराध करने वाले आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के बजाय उसे आराम से घुमने की अनुमति देती है, जबकि वह खुद पुलिस स्टेशन में उपलब्ध था''कर्नाटक हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया है कि वह रेप के आरोपी पुलिस सब इंस्पेक्टर विश्वनाथ बिरदार को गिरफ्तार करे।

न्यायमूर्ति एचपी संदेश की एकल पीठ ने 19 दिसंबर, 2020 को अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, दक्षिण कन्नड़, मंगलुरु द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हुए कहा, ''पुलिस अधिकारियों का कार्य एक व्यक्ति को आराम से घुमने की अनुमति देने के अलावा और कुछ नहीं है, वह भी एक पुलिस अधिकारी को,जिसने यौन उत्पीड़न का एक गंभीर अपराध किया है। आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज करने के अलावा पुलिस विभाग के अधिकारियों ने खुद आरोपी को कानून के चंगुल से छुड़ाने में मदद की है। यह बहुत स्पष्ट है कि पुलिस अधिकारियों ने एक अपराधी की मदद की है।''

अदालत ने मामले की जांच को स्थानीय पुलिस से सीओडी को भी स्थानांतरित कर दिया है और आदेश की तारीख से चार महीने के भीतर अंतिम रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया है। वहीं जिला पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया गया है कि वह पुलिस निरीक्षक संदेश, पुलिस उप-निरीक्षक पवन और अन्य अधीनस्थों के खिलाफ उनकी ओर से की गई चूक के लिए जांच शुरू करें और तीन महीने के भीतर अदालत में रिपोर्ट दायर की जाए।

मामले की पृष्ठभूमिः

पीड़िता के अनुसार, उसने अगस्त 2020 के महीने में चामराजपेट पुलिस स्टेशन में अपना लैपटॉप खोने की शिकायत की थी। मामले की जांच कर रहे प्रतिवादी नंबर 6 (बिरदार) ने याचिकाकर्ता का फोन नंबर एकत्र किया और मामले की जांच के बहाने रात में याचिकाकर्ता को फोन करना और मैसेज करना शुरू कर दिया। उसने याचिकाकर्ता से 12 लाख रुपये की आर्थिक सहायता मांगी, जिसे उसने ठुकरा दिया। फिर उसने व्यक्त किया कि वह उससे प्यार करता है जिसे उसने प्रोत्साहित नहीं किया।

फिर 08.11.2020 को, उसने उसे फोन किया और मिलने का अनुरोध किया और फिर वे दोनों मिले, दोपहर का भोजन किया और उसने उससे शादी करने का अनुरोध किया और फिर रात 8 बजे शिकायतकर्ता को अपने माता-पिता से मिलवाने के लिए अपने घर ले गया। प्रतिवादी नंबर 6 ने उससे धर्मस्थाला पर शादी करने का प्रस्ताव रखा।

याचिकाकर्ता की ओर से किए गए इंतजाम के बाद वह दोनों शादी के लिए धर्मस्थाला गए थे। 10.11.2020 को, वे धर्मस्थाला पहुंचे और उन्होंने गंगोत्री में एक कमरा बुक किया और उस समय प्रतिवादी नंबर 6 ने उससे संभोग करने का प्रयास किया। याचिकाकर्ता ने इसका विरोध किया। हालांकि, उसने उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथ यौन संबंध बनाए और उसके साथ बलात्कार किया। बाद में किसी न किसी बहाने उसने शादी करने से मना कर दिया और फिर पीड़िता को बताया कि वह पहले से शादीशुदा है।

प्रतिवादी नंबर 6 से यह सुनकर याचिकाकर्ता हैरान रह गई और उसने खुद को ठगा हुआ महसूस किया और धर्मस्थाला पी.एस. में शिकायत दर्ज करने का फैसला किया परंतु उस समय आरोपी ने उससे कहा कि वह कोई शिकायत दर्ज न करे। आरोप है कि जब उसने थाने में एक मिस्टर पवन-पीएसआई से शिकायत की तो शिकायत दर्ज कराने के लिए थाने के अंदर पुलिस ने उसके साथ मारपीट की।

जमानत रद्द करने की मांग करते हुए पीड़िता ने दलील दी

पीड़िता व्यक्तिगत रूप से पेश हुई और दलील दी कि याचिकाकर्ता, जो परिस्थितियों की शिकार थी, को न्याय के लिए आवाज उठाने की गलती के लिए पुलिस अधिकारियों के हाथों मानसिक आघात से गुजरना पड़ा है। अधिकारियों ने उसके मूल अधिकारों का उल्लंघन किया गया है और सक्षम अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि वह चरित्र हनन, यातना और पीड़ा की शिकार हुई है, जो किसी और के साथ नहीं होना चाहिए। इसलिए, उसने प्रतिवादी नंबर 6 को दी गई जमानत को रद्द करने और मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सीओडी को केस स्थानांतरित करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया क्योंकि वह किसी ऐसे व्यक्ति के हाथों किसी निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं कर सकती है, जो उसके साथ मारपीट में लिप्त हैं और जीवन के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।

आरोपी की तरफ से दिए गए तर्क

पहले तो यह कहा गया कि अग्रिम जमानत रद्द करने पर अदालत विशेष परिस्थितियों में ही सीआरपीसी की धारा 482 लागू कर सकती है। दूसरा, यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता को दूसरों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की आदत है।

न्यायालय का निष्कर्ष

मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए अदालत ने कहा, ''जिला पुलिस अधीक्षक ने स्थानीय पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए जाने के बावजूद भी स्थानीय पुलिस को मामले में जांच करने की अनुमति दी। जब इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर और अन्य स्टाफ के खिलाफ विशिष्ट आरोप लगाए गए थे तो जिला पुलिस अधीक्षक को निष्पक्ष जांच के लिए जांच अधिकारी को बदलना चाहिए था,परंतु ऐसा नहीं किया गया है।''

इसके अलावा, ''जब ये आरोप लगाए गए और केआईएमएस अस्पताल के दस्तावेज से यह पता चलता है कि उसके साथ मारपीट की गई है और इतना ही नहीं जब उसने आईजीपी और डीजीपी सहित पुलिस को शिकायत दर्ज कराते समय यह सारी बातें बताई थी तब भी उनमें से किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि एक महिला ने पुलिस अधिकारी द्वारा उसका यौन शोषण करने और पुलिस थाने में उसको प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए शिकायत की थी।''

अदालत ने कहा कि ''सिर्फ इसलिए कि उसने उन लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है जिनके कहने पर उसे प्रताड़ित किया गया था और यह भी कि एक महिला के अकेलेपन का फायदा उठाकर उसका यौन उत्पीड़न किया गया था, उसे आदतन शिकायतकर्ता के रूप में ब्रांडेड नहीं किया जा सकता है।''

अदालत यह भी कहा कि,''पूरा पुलिस तंत्र इस नतीजे पर पहुंचा हैं कि उसका चरित्र खराब है। परंतु उसके चरित्र को खराब मानते हुए क्या एक पल के लिए यह सोचा गया कि वह व्यक्ति, जो लोगों की रक्षा करने के लिए बाध्य है, अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सकता है।''

यह प्रस्तुत करने पर कि आरोपी को निलंबित कर दिया गया है, अदालत ने कहा, ''केवल इसलिए कि प्रतिवादी नंबर 6 को निलंबित कर दिया गया है, यह नहीं कहा जा सकता है कि पुलिस द्वारा निष्पक्ष जांच की गई है।''

अदालत ने यह भी माना कि आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान पुलिस की तरफ से अदालत के समक्ष रिकॉर्ड पेश नहीं किया गया। न्यायमूर्ति संदेश ने कहा, ''न्यायाधीश भी अग्रिम जमानत पर विचार करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई सामग्री नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने न्यायाधीश के समक्ष रिकॉर्ड पेश नहीं करने में कामयाबी हासिल की है,जिनसे यह पता चलता कि वह यौन उत्पीड़न की शिकार है।''

हाईकोर्ट ने यह भी कहा, ''न्यायाधीश को इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए था कि पुलिस अधिकारी अपनी निहित शक्तियों का दुरुपयोग करके यौन उत्पीड़न में लिप्त रहा है, वह भी उस महिला का, जिसने अपने खोए हुए लैपटाप के लिए पुलिस से मदद की गुहार लगाई और मामले की जांच की मांग की थी। प्रतिवादी नंबर 6 के पक्ष में अग्रिम जमानत देते समय न्यायाधीश द्वारा इन कारकों पर ध्यान नहीं दिया गया।''

अंत में, अदालत ने कहा, ''मेरी राय है कि यह एक उपयुक्त मामला है जहां यह न्यायालय ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, जो कि उन प्रासंगिक कारकों को देखे बिना दी गई थी, जिन्हें जमानत के आवेदन पर विचार करते समय पर ध्यान में रखा जाना चाहिए था।''

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