सिविल सेवा परीक्षा 2023: दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रारंभिक उत्तर कुंजी प्रकाशित करने की मांग वाली याचिका पर यूपीएससी से प्रारंभिक आपत्तियां दर्ज करने को कहा

Update: 2023-07-03 11:23 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को संघ लोक सेवा आयोग से विभिन्न सिविल सेवा उम्मीदवारों की ओर से दायर याचिका पर अपनी प्रारंभिक आपत्तियां दर्ज करने को कहा।

याचिका में सिविल सेवा परीक्षा 2023 की प्रारंभिक परीक्षा की उत्तर कुंजी अंतिम परिणाम घोषित होने के बाद प्रकाशित करने के संघ लोक सेवा निर्णय (यूपीएससी) के फैसले को चुनौती दी गई है।

हालांकि, जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने इस स्तर पर याचिका पर नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और मामले को 26 जुलाई को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि वह प्रारंभिक परीक्षा को चुनौती देने और परीक्षा फिर से आयोजित करने की दो प्रार्थनाओं पर दबाव नहीं डाल रहे हैं।

एडवोकेट राजीव कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका 17 सिविल सेवा उम्मीदवारों की ओर से दायर की गई है। उन्होंने यूपीएससी द्वारा 12 जून को जारी प्रेस नोट को चुनौती दी है। नतीजों की घोषणा से संबंधित प्रेस नोट में यूपीएससी ने यह भी कहा कि प्रीलिम्स की उत्तर कुंजी पूरी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही प्रकाशित की जाएगी।

याचिकाकर्ताओं द्वारा मुख्य प्रार्थनाएं छोड़ने के बाद, यह प्रस्तुत किया गया कि विवादित प्रेस नोट को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यूपीएससी उम्मीदवारों को उत्तर कुंजी उपलब्ध नहीं करा रहा है। याचिका में फैसले को मनमाना बताया गया है और यूपीएससी को तत्काल प्रभाव से उत्तर कुंजी प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

वकील ने यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट के पास सिविल सेवा उम्मीदवारों की शिकायत पर फैसला करने का अधिकार क्षेत्र है।

दूसरी ओर, यूपीएससी की ओर से पेश वकील नरेश कौशिक ने याचिका की विचारणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति जताई और कहा कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम हाईकोर्ट को भर्ती प्रक्रिया के संबंध में विवाद का फैसला करने से रोकता है।

उन्होंने कहा कि विवादित प्रेस नोट भी भर्ती का एक हिस्सा है और इस प्रकार, हाईकोर्ट के पास याचिका पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

आगे यह प्रस्तुत किया गया कि उम्मीदवारों के पास केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क करने का मूल उपाय है, जहां उम्मीदवारों का एक अन्य समूह पहले ही क्वालिफाइंग पार्ट II (सीएसएटी) परीक्षा के लिए कट-ऑफ को 33% से घटाकर 23% करने की मांग कर चुका है।

याचिका में कहा गया है,

“छात्रों को उनके द्वारा दी गई परीक्षा की उत्तर कुंजी प्रदान नहीं करना, इसके लिए एक विशेष टाइम विंडो प्रदान किए जाने के बावजूद उम्मीदवारों के अभ्यावेदन पर विचार नहीं करना और असंगत रूप से अस्पष्ट प्रश्न पूछना, उम्मीदवारों की क्षमता का परीक्षण करना है। केवल अनुमान के आधार पर उत्तर देना न केवल मनमाना है बल्कि निष्पक्षता, तर्क और तर्कसंगतता के सभी सिद्धांतों की अवहेलना है।''

केस टाइटल: हिमांशु कुमार बनाम यूपीएससी और अन्य।

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