मृतक की ऐसी संपत्ति पर उसके बच्चे कोई दावा नहीं कर सकते, जो संपत्ति मृतक को उसके जीवनकाल में विरासत में नहीं मिली थीः गुवाहाटी हाईकोर्ट
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने माना है कि मृतक की ऐसी संपत्ति पर उसके बच्चे कोई दावा नहीं कर सकते, जो संपत्ति मृतक को उसके जीवनकाल में विरासत में नहीं मिली थी। संपत्ति पर रहने का मतलब यह नहीं है कि संपत्ति उन लोगों को हस्तांतरित हो गई जो उस संपत्ति पर रह रहे हैं।
जस्टिस नेल्सन सेलो ने देखा,
"श्री के वनलालमानसावमा को अपने जीवनकाल में भूमि और संपत्ति का उत्तराधिकार नहीं मिला ... यदि ऐसा है, तो याचिकाकर्ताओं के पास दिवंगत की बेटी होने के आधार पर उक्त संपत्ति के लिए दावा करने का कोई आधार नहीं हो सकता है।"
मामला
याचिकाकर्ता के. रोछिंगा (दिवंगत) की पोती हैं, जो संपत्ति के मूल मालिक थे। याचिकाकर्ताओं के पिता के वनलालमालसावमा (दिवंगत) को उनकी मृत्यु यानी 06.05.2014 तक संपत्ति में रहने की अनुमति दी गई थी। संपत्ति याचिकाकर्ताओं के दादा के नाम पर बनी रही।
अतः प्रतिवादी संख्या एक और दो (याचिकाकर्ता के पिता के भाई) ने एक टाइटल सूट के साथ सिविल जज से संपर्क किया, जिसमें स्वर्गीय वनलालमानसावमा द्वारा छोड़ी गई उक्त संपत्ति और अन्य संपत्तियों की घोषणा का दावा किया गया था ।
इस टाइटल सूट के लंबित रहने के दरमियान मामले को लोक अदालत में भेजा गया और परिणामस्वरूप, संबंधित पक्षों द्वारा दिनांक 26.09.2015 को एक समझौता आदेश आया। लोक अदालत के निस्तारण आदेश से मौजूदा रिट याचिका के याचिकाकर्ता व्यथित थे क्योंकि इसने याचिकाकर्ताओं के लिए उनके दिवंगत पिता द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर कोई हिस्सा नहीं छोड़ा था।
प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि एक निजी व्यक्ति के खिलाफ एक रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि लोक अदालत के निस्तारण आदेश के खिलाफ रिट केवल सीमित आधार पर स्वीकार्य है जैसा कि पंजाब और अन्य बनाम जालौर सिंह और अन्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया गया है।
हाईकोर्ट ने पाया कि जालौर सिंह (सुप्रा) में उल्लिखित आधार इस मामले में आकर्षित नहीं होते हैं क्योंकि लोक अदालत का आदेश पक्षों के बीच आपसी समझौते के बाद पारित किया गया था, और संबंधित पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था।
इस प्रकार, लोक अदालत ने न तो अपने अधिकार क्षेत्र को पार किया और न ही ऐसी शक्तियों का प्रयोग किया, जो उसमें निहित नहीं थी। हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं पाया कि याचिकाकर्ता उक्त संपत्ति में अपने पिता के जीवित रहने के समय से रह रहे थे।
कोर्ट ने कहा, इसलिए, "जब तक वे चाहें तब तक उन्हें मुख्य भवन में शांतिपूर्वक रहने की अनुमति दी जानी चाहिए।"
कोर्ट ने आगे नोट किया कि भले ही याचिकाकर्ताओं ने यह प्रोजेक्ट करने का प्रयास किया है कि प्रतिवादी संख्या एक और दो ने उनके दिवंगत पिता द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों के संबंध में धोखाधड़ी की है या उनका गलत प्रतिनिधित्व किया है, हालांकि, तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता को भी दिवंगत पिता द्वारा छोड़े गए धन में से हिस्सा दिया गया था।
कोर्ट ने कहा,
"प्रतिवादी संख्या एक और दो ने अपने टाइटल सूट में स्वर्गीय के वनलालमलसामा द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों की घोषणा उनके नाम पर करने की भी मांग की। इसलिए, यह धोखाधड़ी या गलत बयानी का मामला नहीं है जैसा कि उनके द्वारा पेश किए जाने की मांग की गई है।"
केस शीर्षक: सुश्री ओलिविया लालदिनमावी खियांगते और 2 अन्य बनाम के वनलल्टलुआंगा और 3 अन्य।
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (गौ) 18
केस नंबरः WP(C) 85 of 2019
जज: जस्टिस नेल्सन सेलो