बच्चों को कोचिंग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट ने कोचिंग सेंटरों को स्कूलों से जोड़ने की नीति की मांग करने वाली जनहित याचिका खारिज की
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को वह जनहित याचिका खारिज कर दी, जिसमें दिल्ली सरकार को कोचिंग सेंटरों को स्कूलों और कॉलेजों से जोड़ने के लिए नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा कि अदालत दिल्ली सरकार को ऐसी नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकती। इस प्रकार, उसे मामले में प्रार्थना के अनुसार राहत देने का कोई कारण नहीं मिला।
खंडपीठ ने कहा कि कोचिंग वैकल्पिक है, अनिवार्य नहीं। किसी भी बच्चे को कोचिंग सेंटरों में जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा,
“अन्यथा भी हम राज्य सरकार को कोचिंग सेंटरों को स्कूलों और कॉलेजों के साथ जोड़ने और उनके साथ साझेदारी करने के लिए नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकते। हमें जनहित याचिका में की गई प्रार्थना के अनुसार राहत देने का कोई कारण नहीं मिला। इसे खारिज किया जाता है।”
खंडपीठ ने गिरीश कुमारी गुप्ता की याचिका खारिज कर दी, जो मामले की सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं हुईं।
गुप्ता की शिकायत है कि देश में बड़ी संख्या में कोचिंग सेंटर मौजूद हैं, इसलिए दिल्ली सरकार को उन्हें स्कूलों और कॉलेज संस्थानों से जोड़ने के लिए नीति बनानी चाहिए।
दिल्ली सरकार के सरकारी वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि कानून बनाने के लिए सरकार को कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता। ऐसे कोचिंग सेंटरों को स्कूलों और कॉलेजों से जोड़ना संभव नहीं है, जैसा कि जनहित याचिका में प्रार्थना की गई।
अदालत ने कहा,
"इस अदालत की सुविचारित राय में कोचिंग वैकल्पिक है, अनिवार्य नहीं... किसी भी बच्चे को कोचिंग सेंटरों में जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।"
केस टाइटल: गिरीश कुमारी गुप्ता बनाम यूओआई और अन्य।