झूठी गवाही मामले में कोटक महिंद्रा बैंक के लीगल मैनेजर को मिली 3 महीने कैद की मिली सजा

Update: 2025-03-19 10:15 GMT
झूठी गवाही मामले में कोटक महिंद्रा बैंक के लीगल मैनेजर को मिली 3 महीने कैद की मिली सजा

मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट, एग्मोर ने कोटक महिंद्रा बैंक को दोषी ठहराया और बैंक पर अदालत में झूठे साक्ष्य देने के लिए 1,50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने बैंक के लीगल मैनेजर को 3 साल की साधारण कैद और 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा भी सुनाई।

मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एन कोथंडाराज ने 12 मार्च, 2025 को आदेश पारित करते हुए बैंक और लीगल मैनेजर को आईपीसी की धारा 193 [झूठे साक्ष्य] और धारा 209 [अदालत में बेईमानी से झूठा दावा करना] के तहत दोषी ठहराया। अदालत ने धारा 913 के तहत अपराध के लिए बैंक पर 1,00,000 रुपये का जुर्माना और 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया। धारा 209 के तहत अपराध के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।

प्रबंधक ने प्रस्तुत किया कि उसकी सेल्वाराज के साथ कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी और उसने केवल बैंक से प्राप्त जानकारी के आधार पर हलफनामा दायर किया। इस प्रकार उसने न्यूनतम सजा की मांग की। तथ्यों और सामग्रियों पर विचार करते हुए अदालत ने धारा 193 और 204 के तहत अपराधों के लिए 5,000 रुपये के जुर्माने के साथ 3 महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि धारा 193 और धारा 209 के तहत कारावास एक साथ चलना था।

यह मामला बैंक द्वारा मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष दिए गए झूठे हलफनामे से संबंधित है, जिसमें कहा गया कि उसने सेल्वाराज नामक व्यक्ति से अतिरिक्त राशि नहीं ली है। सेल्वाराज ने 1.5 करोड़ रुपये का बैंक लोन लिया। जब उसने ऋण को बंद करने का इरादा किया तो उसे 1.7 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करने के लिए कहा गया, जिसका विधिवत भुगतान किया गया। हालांकि, जब सेल्वाराज ने अपने खातों का विवरण मांगा तो बैंक ने इनकार कर दिया और उसे उपलब्ध नहीं कराया, जिसके कारण उसे बैंकिंग लोकपाल से संपर्क करना पड़ा। लोकपाल ने उनका आवेदन खारिज कर दिया।

इसके बाद सेल्वराज ने 2012 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि बैंक ने अपने हलफनामे में दावा किया कि सेल्वराज को कोई राशि बकाया नहीं है और भुगतान योग्य नहीं है, लेकिन बाद में उसने सेल्वराज के अकाउंट में 14,30,510 रुपये की राशि जमा कर दी। इस प्रकार सेल्वराज ने आवेदन दायर किया, जिसमें बैंक पर अदालत में झूठे साक्ष्य दाखिल करने का मुकदमा चलाने की मांग की गई। चूंकि हलफनामा बैंक के कानूनी प्रबंधक द्वारा दायर किया गया, इसलिए उसके खिलाफ कार्यवाही भी शुरू करने की मांग की गई।

इसके बाद हाईकोर्ट ने जांच को सुविधाजनक बनाने के लिए पुलिस निरीक्षक, बैंक धोखाधड़ी जांच विंग, मध्य चेन्नई को पक्ष बनाया। 22 फरवरी, 2023 के आदेश द्वारा हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि झूठे साक्ष्य देने के लिए बैंक, मैनेजर और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए। शिकायतकर्ता की ओर से डिप्टी रजिस्ट्रार, आपराधिक पक्ष का साक्ष्य दर्ज किया गया।

अदालत ने नोट किया कि हालांकि बैंक ने लीगल मैनेजर के माध्यम से दायर अपने जवाबी हलफनामे में सेल्वराज के इस दावे का विशेष रूप से खंडन किया कि 2012 में बैंक ने सेल्वराज के खिलाफ 14,30,510 रुपये की राशि का भुगतान नहीं किया। 28,26,294 रुपए अधिक वसूले जाने के बाद बैंक ने ऑडिट के बाद 14,30,510 रुपए की राशि बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर दी थी। इस प्रकार, कोर्ट ने पाया कि बैंक झूठे साक्ष्य देने का दोषी है।

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