तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने पर आवेदक के खिलाफ आरोप पत्र दायर करना प्रथम दृष्टया कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोगः इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (02 दिसंबर) को तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में भाग लेने के आरोप में आवेदक-अभियुक्त (मोहम्मद साद) के खिलाफ एक मामले में आगे की आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाते हुए कहा कि धारा 307 के तहत आवेदक के खिलाफ आरोप पत्र दायर करना प्रथम दृष्टया कानून की शक्ति का दुरुपयोग है।
जस्टिस अजय भनोट की खंडपीठ आवेदक-अभियुक्त की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अदालत के समक्ष दलील दी कि भले ही जांच के दौरान एकत्र साक्ष्यों और एफआईआर को जस का तस लिया जाए तो भी आवदेक के खिलाफ किसी अपराध का खुलासा नहीं किया गया है।
आरोप
आवेदक के वकील ने न्यायालय के समक्ष कहा कि प्राथमिकी में अभियोजन पक्ष का दावा है कि आवेदक ने नई दिल्ली में तब्लीगी जमात द्वारा आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम का दौरा किया था।
अभियोजन पक्ष की प्राथमिकी और साथ ही आरोप पत्र में कहानी यह है कि आवेदक और अन्य आरोपी अलग-अलग तारीखों पर घर लौटे। फिरभी , उन्होंने अपने आगमन की सूचना प्रशासन को नहीं दी और स्वैच्छिक रूप से क्वारंटीन नहीं किया। उन्होंने खुद की चिकित्सकीय जांच नहीं करवाई।
यह आरोप लगाया गया कि उन्हें जानकारी थी कि कोरोना वायरस को महामारी घोषित किया जा चुका है, फिर भी वो दिल्ली गए। दिल्ली में जमात के कार्यक्रम मे में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित थे। साथ ही, यह भी कहा गया कि उन्होंने अपनी दिल्ली यात्रा को छुपाया और जानबूझकर लापरवाही और निंदनीय कृत्य किए।
आवेदक के खिलाफ धारा 307 और 270 आईपीसी के तहत आरोप पत्र दायर किया गया। जांच करने पर, आवेदक ने COVID नेगेटिव पाया गया था।
महत्वपूर्ण रूप से, आवेदक के वकील ने दलील दी कि यद्यपि मूल चार्जशीट धारा 269, 270 आईपीसी के तहत तैयार की गई थी और अदालत में प्रस्तुत भी की गई थी। फिर भी उसे वापस ले लिया गया और सीओ के आदेश पर धारा 307 आईपीसी के तहत एक नई चार्जशीट दायर की गई थी।
आदेश
सामग्री के अध्ययन के बाद यह देखते हुए कि धारा 307 आईपीसी की तहत आवेदक को आरोपित करना कानून की शक्ति का दुरुपयोग है, न्यायालय ने एसएसपी को मामले में व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने निर्देश दिया, "सीओ भी व्यक्तिगत हलफनामे दायर करेंगे, जिसमें यह बताएंगे कि जांच के दौरान दौरान एकत्रित सामग्री से रिकॉर्ड में मौजूद तथ्यों से कैसे धारा 307 आईपीसी का आरोप बनता है, और अपने निर्देशन में कराए गए संशोधन का औचित्य देंगे।"
अगले आदेश तक, कोर्ट ने निर्देश दिया, 2020 की अपराध संख्या 40 (राज्य बनाम मोहम्मद साद) 2020 की मामला अपराध संख्या 0208, 307, 270 आईपीसी के तहत, पुलिस स्टेशन कोतवाली, जिला मऊ में किशोर न्याय बोर्ड, मऊ की अदालत में लंबित सभी आपराधिक कार्यवाहियों पर रोक लगाई जाती है।
इस मामले को आगे की सुनवाई के लिए 15 दिसंबर 2020 को पोस्ट किया गया है।
गौरतलब हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को निर्देश दिया था कि कानपुर, गोरखपुर, प्रयागराज, वाराणसी और लखनऊ जोन में तब्लीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ लंबित मामलों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ को हस्तांतरित कर दिया जाए।
इसी तरह आगरा और मेरठ जोन में लंबित मामलों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मेरठ को हस्तांतरित किया जाना चाहिए। बरेली जोन में लंबित मामलों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, बरेली को हस्तांतरित किया जाए।
विशेष रूप से, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने, तब्लीगी जमात से जुड़े आठ विदेशियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए स्पष्ट किया था कि कर्नाटक हाईकोर्ट की शर्त कि वे अगले दस वर्षों तक भारत का दौरा नहीं करेंगे, उनके वीजा आवेदनों को तय करते समय विचार नहीं किया जाएगा।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और संजीव खन्ना की खंडपीठ ने 16 नवंबर को दिए अपने फैसले में कहा था कि क्या अपीलकर्ता और अन्य ऐसे ही व्यक्तियों को भारत आने के लिए वीजा के लिए आवेदन करना है।
"... आवेदन(ओं) के गुण पर विचार किया जाएगा, वह भी 13.10.2020 को उक्त फैसले के पैराग्राफ (i)में दिए गए निर्देशों और अपीलकर्ता और 8 अन्य लोगों द्वारा दायर हलफनामा/ अंडरटेकिंग से से प्रभावित हुए बिना।"
केस टाइटिल- मो साद बनाम उत्तर प्रदेश और अन्य [एप्लीकेशन यू / एस 482 नंबर 17176 ऑफ 2020]
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