"मशहूर ह‌स्‍तियों को ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने में सावधानी बरतनी चाहिए, जिन्हें गलत समझा जा सकता है": पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने युवराज सिंह को जातिसूचक टिप्पणी मामले में संरक्षण प्रदान किया

Update: 2021-02-27 04:00 GMT

हरियाणा सरकार को नोटिस जारी करते हुए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने गुरुवार (25 फरवरी) को क्रिकेटर युवराज सिंह को पिछले साल इंस्टाग्राम चैट के दौरान एक अन्य क्रिकेटर के खिलाफ उनकी कथित जातिवादी टिप्पणी के लिए दर्ज एक मामले में क्रिकेटर कठोर कार्रवाई के खिलाफ अंतरिम संरक्षण प्रदान किया है।

न्यायमूर्ति अमोल रतन सिंह की खंडपीठ युवारज की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इस मामले के संबंध में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी।

न्यायाधीश ने फैसले में कहा, "प्रत्येक व्यक्ति और विशेष रूप से 'सेलेब्रिटीज़' को किसी भी शब्द के उपयोग में सावधानी बरतनी चाहिए, जिसका गलत अर्थ निकाला जा सकता है।"

मामला

युवराज सिंह के ‌खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए (शत्रुता को बढ़ावा देना) और 153 बी (राष्ट्रीय-एकीकरण के पक्षपातपूर्ण दावे) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम) 1989 के तहत हांसी के रजत कलसन की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी। उन्होंने उक्त एफआईआर को रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

याचिका के अनुसार, एफआईआर 14 फरवरी को दर्ज की गई थी। जबकि युवराज अपनी "अनुचित टिप्पणी" के लिए अप्रैल 2020 में माफी मांग चुके थे।

दलील

युवराज की ओर से पेश वकील ने कहा कि, जिस व्यक्ति के संदर्भ में कथित जातिवादी टिप्पणी की गई है (हालांकि इससे इनकार किया गया है), वह अनुसूचित जाति का नहीं है और इसलिए, इसे जातिवादी टिप्पणी नहीं कहा जा सकता है ।

उन्होंने आगे कहा कि यह टिप्पणी संबंधित व्यक्ति (युजवेंद्र चहल) के संदर्भ में की गई थी, जिसने अपने पिता से एक शादी समारोह में डांस करवाया था (जिसे चुनौती दी गई है), और इसलिए, टिप्पणी किसी व्यक्ति के संदर्भ में की गई थी, जो उसके सा‌थ नशे में धुत था, उसके बाद, आगे कहा गया कि भांग भी एक नशीला पदार्थ है और उसी संदर्भ में याचिकाकर्ता द्वारा 'भंगी' शब्द का इस्तेमाल किया गया था।

अदालत के समक्ष विशेष रूप से यह निवेदन किया गया कि इस शब्द का उद्देश्य किसी भी समुदाय या किसी व्यक्ति की भावनाओं को आहत करना नहीं था, बल्कि युवराज द्वारा अपने मित्रों और सहयोगियों के लिए एक अनुकूल टिप्पणी थी, जो "सम्मानित दलित समुदाय" का हिस्सा नहीं हैं।

गौरतलब है कि, युवराज के वकील ने अदालत को बताया कि रजत नामक व्यक्ति ने जून, 2020 में उनसे उनके मैनेजर के माध्यम से सिंह से संपर्क किया, ताकि 'इस मुद्दे को बंद करने का साधन' मिल सके।

हालांकि, शिकायतकर्ता के वकील ने आरोपों से इनकार किया और स्पष्ट रूप से कहा कि याच‌िककर्ता को नहीं जानता है और इसलिए शिकायतकर्ता की ओर से पैसे की मांग करने के लिए उन्हें फोन करने का सवाल ही नहीं उठता।

शिकायतकर्ता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि युवराज द्वारा कथित रूप से इस्तेमाल किया शब्द हरियाणा सरकार द्वारा अधिसूचित अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध जाति को संदर्भित करता है और इसलिए, उनके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला वाक्यांश पूरे समुदाय को शामिल करेगा, और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है 1989 के अधिनियम के पूर्वोक्त प्रावधान का कोई उल्लंघन नहीं है।

अवलोकन

इस मामले पर विचार करने के बाद, न्यायालय ने कहा कि वह जांच को रोकने के लिए अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं करेगा।

हालांकि, अदालत ने आगे टिप्पणी की, "इस तथ्य को देखते हुए कि इस स्तर पर प्रथम दृष्टया कम से कम, प्रश्नगत शब्द की दो व्याख्याओं मौजूद है, जैसे कि क्या इसका उपयोग किसी विशेष समुदाय (या किसी समुदाय के संदर्भ में) किया गया था या एक व्यक्ति जो नशे में धुत था के संदर्भ में किया गया था, साथ ही संबंधित व्यक्ति (युजवेंद्र चहल) शिकायतकर्ता के वकील के अनुसार, अनुसूचित जाति से संबंधित नहीं है, याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी....।"

कोर्ट ने आगे कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 एक ऐसा कानून है, जो समाज के उस वर्ग के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है, जिसे युगों से प्रताड़ित माना जाता है।

"स्वाभाविक रूप से उक्त अधिनियम के प्रावधानों के किसी भी उल्लंघन से कड़ाई से न‌िपटना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज के ऐसे वर्गों के प्रति भलाई की भावना पैदा हो..प्रत्येक व्यक्ति और विशेष रूप से 'मशहूर हस्तियों' को किसी भी शब्द के उपयोग में सावधानी बरतनी चाहिए, जिसका गलत अर्थ निकाला जा सकता है

हालांकि, अंतिम रूप से, यह देखते हुए कि युवराज के वकील का विशिष्ट तर्क यह है कि याचिकाकर्ता द्वारा इस्तेमाल किया गया शब्द नशे में धुत व्यक्तियों के संदर्भ में था, न्यायालय ने निर्देश दिया,

"यहां अंतरिम निर्देश दिया जाता है, जो उस संबंध में एक राजपत्रित अधिकारी द्वारा जांच के परिणाम और उसके अनुसार दायर किए जाने वाले उत्तर के अधीन है।"

केस टाइटिल - युवराज सिंह बनाम हरियाणा राज्य और अन्य [CRM-M-9035 of 2021(O & M)]

वरिष्ठ अधिवक्ता पुनीत बेल और अधिवक्ता परमदीप सैनी, युवराज सिंह की ओर से पेश हुए। राज्य के लिए एएजी सुरेंद्र सिंह और शिकायतकर्ता के लिए अधिवक्ता अर्जुन श्योराण ने बहस की।

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