20 हजार रुपये से अधिक नकद लेनदेन धारा 138 एनआई एक्ट मामले में लेन-देन को रद्द नहीं करता: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि आयकर अधिनियम की धारा 269 एसएस का उल्लंघन लेनदेन को शून्य नहीं बनाता है और यह कानूनी रूप से रिकवरी योग्य ऋण कहा जा सकता है। आयकर अधिनियम की धारा 269 एसएस यह निर्धारित करती है कि यदि लेनदेन राशि 20,000 रुपये से अधिक है, तो ऐसा लेनदेन चेक या डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से किया जाएगा।
अभियुक्त गजानन ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बेलगाम के फैसले को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिन्होंने मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा पारित सजा के आदेश की पुष्टि की थी।
मजिस्ट्रेट कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया और 1,28,000 रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई थी।
याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया था कि आयकर अधिनियम की धारा 269एसएस के अनुसार, यदि लेनदेन राशि 20,000 रुपये से अधिक है तो ऐसा लेनदेन चेक या डिमांड ड्राफ्ट के जरिए किया जाएगा। चूंकि शिकायतकर्ता ने चेक या डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से कथित ऋण राशि का भुगतान नहीं किया है, कथित लेनदेन को कानूनी रूप से रिकवरी योग्य ऋण नहीं कहा जा सकता है।
जस्टिस जी बसवराज की सिंगल जज पीठ ने तर्क को खारिज करते हुए कहा,
"आयकर अधिनियम की धारा 269एसएस का उल्लंघन, कथित लेनदेन को शून्य नहीं बनाता है। संबंधित अधिकारी शिकायतकर्ता के खिलाफ आयकर अधिनियम की धारा 269 का अनुपालन न करने के लिए आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं। केवल उसी आधार पर, यह न्यायालय नीचे के न्यायालयों द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।"
अदालत ने आगे कहा,
"मूल धारा 276डीडी में सजा देने के मामले में कारावास की अवधि भी निर्धारित की गई थी, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता था। लेकिन बाद में धारा 271D के आने से कारावास की सजा को हटा दिया गया और धारा 269एसएस के प्रावधानों का पालन करने में विफलता को केवल ऋण या जमा की जाने वाली या स्वीकार की जाने वाली राशि के बराबर जुर्माने के दंड के साथ देखा जा सकता है।"
पीठ ने यह भी कहा कि धारा 269एसएस को वित्त अधिनियम 1984 के तहत आयकर अधिनियम में एक अप्रैल.1984 को जोड़ा गया था, लेकिन यह एक जुलाई 1984 से प्रभावी हुआ।
इसे खामियों को दूर करने और करदाताओं द्वारा झूठे और नकली स्पष्टीकरण देने की प्रथा को समाप्त करने, किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति से अकाउंट पेयी चेक या अकाउंट पेयी बैंक ड्राफ्ट के अलावा किसी अन्य माध्यम से ऋण या जमा लेने या स्वीकार करने से, यदि ऐसे ऋण या जमा की राशि, या ऐसे ऋण या जमा की कुल राशि 10,000 रुपये या अधिक हो, पर रोक लगाने के लिए डाला गया था। 10,000 रुपये की राशि को बाद में एक अप्रैल 1989 से 20,000 रुपये के रूप में संशोधित किया गया था।
इसके अलावा पीठ ने आरोपी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि शिकायतकर्ता 15 लाख रुपये की राशि के भुगतान को साबित करने में विफल रहा है।
अंत में, अदालत ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को 'बेतुका' करार देते हुए खारिज कर दिया कि शिकायतकर्ता ने, वाणिज्यिक कर अधिकारी होने के नाते, अभियुक्तों पर मैसर्स गजानन ग्लास और प्लाइवुड के बिजनेस के कर के भुगतान के उद्देश्य से एक-एक लाख रुपये के 15 हस्ताक्षरित ब्लैंक चेक जारी करने के लिए जोर दिया था।
केस टाइटल: गजानन बनाम अप्पासाहेब सिद्दामल्लप्पा कावेरी।
केस नंबर : क्रिमिनल रिविजन पेटिशन नं. 2011 2013
साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (कर) 483