सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलाः कर्नाटक हाईकोर्ट ने गवाह संरक्षण योजना के क्रियान्वयन का निर्देश दिया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर एक सक्षम प्राधिकारी का गठन करने के लिए एक आदेश जारी करने का निर्देश दिया, जिसे गवाह संरक्षण योजना, 2018 में निर्धारित किया गया है और सुप्रीम कोर्ट ने जिसका अनुमोदन किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर, 2018 को महेंद्र चावला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में, गवाह संरक्षण योजना, 2018 को मंजूरी दी थी, जिसे भारत सरकार ने तैयार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उक्त योजना को लागू करने का निर्देश दिया था।
चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के मद्देनजर दायर एक स्वतः संज्ञान याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त निर्देशों में उच्च न्यायलयों के मुख्य न्यायधीशों को संसद सदस्यों (सांसदों) और विधानसभा सदस्यों (विधायकों) के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के निस्तारण को को तर्कसंगत बनाने के एक्शन प्लान बनाने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने कहा, "विशेष अदालत के समक्ष लंबित मामलों में कोई विवाद नहीं हो सकता, प्रमुख राजनीतिक हस्तियां अभियुक्त होंगी। संभावना है कि अभियोजन पक्ष के कुछ गवाह आघात योग्य हो सकते हैं। हम इसलिए इस विचार के हैं कि विशेष अदालत के समक्ष लंबित मामलों में अभियोजन पक्ष के गवाह के संबंध में गवाह संरक्षण योजना को लागू करना आवश्यक है। "
अदालत ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए-
* राज्य सरकार पहले बेंगलुरु शहरी जिले के लिए सक्षम प्राधिकारी का गठन करने के लिए औपचारिक आदेश जारी करे और बाद में सभी जिलों के लिए। जहां तक बेंगलूरु शहरी क्षेत्र के लिए सक्षम प्राधिकारी का गठन करने का सवाल है, यह दो सप्ताह में किया जाए।
* योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राज्य गवाह संरक्षण कोष स्थापित किया जाए। उक्त कोष को दो सप्ताह में स्थापित किया जाए।
* राज्य सरकार ने उक्त योजना के प्रावधानों की ओर सभी जांच अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करे। उक्त अधिकारियों को उक्त योजना के क्रियान्वयन के लिए हर संभव कदम उठाने का निर्देश दें।
* विशेष अदालत (सांसद / विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की सुनवाई कर रही) के समक्ष लंबित मामलों में सभी गवाहों को, जांच अधिकारियों के नोटिस में लाने के लिए एक निर्देश जारी किया जाए कि उनकी सुरक्षा योजना उपलब्ध है और वे प्राधिकरण के सदस्य सचिव को निर्धारित प्रपत्र पर एक आवेदन कर सकते हैं।
* प्रत्येक जांच अधिकारी को सूचित किया जाना चाहिए कि यह मूल्यांकन करना उसका कर्तव्य है कि क्या अभियोजन पक्ष का गवाह विभिन्न कारकों के कारण असुरक्षित हो सकता है और क्या गवाह के लिए कोई खतरा है। वह प्रत्येक गवाह के मामले में अपना दिमाग इस्तेमाल करेगा और जहां भी आवश्यक होगा वह गवाह संरक्षण के लिए आवेदन करेगा।
* यहां तक कि एक विशेष अदालत की अध्यक्षता करने वाले जज को अपने दिमाग लगाना होगा, चाहे किसी भी अभियोजन पक्ष के गवाह को सुरक्षा की आवश्यकता हो। यहां तक कि अगर जज की राय है कि गवाह के संरक्षण के लिए गवाह द्वारा कोई आवेदन नहीं किया गया है, और गवाह को सुरक्षा की जरूरत है, वह उक्त योजना के तहत सुरक्षा उपाय करने के लिए राज्य को निर्देश जारी कर सकता है।
* न्यायाधीश सक्षम अधिकारी से तत्काल उपाय करने का अनुरोध भी कर सकता है। यदि एक मौखिक या लिखित आवेदन किया जाता है, तो न्यायाधीश को निर्देश जारी करने के लिए बाध्य किया जाता है।
* गवाहों की जांच से पहले जांच अधिकारी से यह पता लगाना कि क्या उनमें से किसी को भी उक्त योजना के तहत सुरक्षा की आवश्यकता है, विशेष अदालत का कर्तव्य है।
पीठ ने एक बार फिर राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह विशेष अदालत के समक्ष अभियोजकों की नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को रिकॉर्ड पर रखे। यह कहा गया, "यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि विशेष अदालत के समक्ष काम करने के लिए एक बहुत ही सक्षम अभियोजक को नियुक्त किया जाए जो विशेष अदालत के समक्ष अभियोजन की प्रकृति को संभालने में सक्षम हो।"
पीठ ने राज्य सरकार से यह भी आग्रह किया कि वह हाईकोर्ट द्वारा सांसद और विधायक के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए दूसरा विशेष न्यायालय गठित करने के अनुरोध पर शीघ्रता से निर्णय ले। पीठ ने कहा "हमें उम्मीद और भरोसा है कि प्रशासनिक पक्ष पर हाईकोर्ट द्वारा किए गए अनुरोध के अनुसार दूसरे विशेष न्यायालय पर अंतिम निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया है।"
मामले में एमिकस क्यूरिया के रूप में उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सोंधी ने अदालत को बताया कि 36 मामलों के अलावा, जिसमें कर्नाटक राज्य अभियोजन एजेंसी है, 136 मामले ऐसे हैं, जिनमें सीबीआई, एसएफआईओ और लोकायुक्त जैसी एजेंसियां अभियोजन एजेंसियां हैं। जिसके बाद अदालत ने राज्य सरकार को सभी अभियोजन एजेंसियों के साथ समन्वय करने और उनके द्वारा नियुक्त अभियोजकों का नाम रिकॉर्ड करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने अब इस मामले को 18 दिसंबर को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया है।