वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत संक्षिप्त कार्यवाही के आधार पर महिला को वैवाहिक घर से नहीं निकाला जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-11-15 11:00 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम (Senior Citizens Act) , 2007 के तहत संक्षिप्त कार्यवाही के आधार पर एक पत्नी को उसके वैवाहिक घर से बाहर नहीं किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की खंडपीठ ने एक विधवा और उसके बेटे का बचाव करते हुए उस आदेश को रद्द कर दिया है,जिसके तहत इस महिला व उसके बेटे को ससुराल से बेदखल करने का निर्देश दिया गया था।

न्यायालय ने 'एस वनिथा बनाम उपायुक्त, बेंगलुरु शहरी जिला, सिविल अपील संख्या 3822/2020' के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिसंबर 2020 में दिए गए एक फैसले का उल्लेख किया और माना किः

''वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 और पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम, 2005 को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए और वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 के तहत संक्षिप्त कार्यवाही के आधार पर पत्नी को उसके वैवाहिक घर से बाहर नहीं किया जा सकता है।''

महत्वपूर्ण रूप से, 'एस वनिथा मामले (सुप्रा)' में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 का घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम के तहत एक साझा घर में एक महिला के निवास के अधिकार पर कोई अधिभावी प्रभाव नहीं है।

संक्षेप में मामला

याचिकाकर्ता खुशबू शुक्ला ने फरवरी 2013 में गौरव शुक्ला से शादी की थी। वर्ष 2015 में उसने एक बेटे को जन्म दिया। शुरुआत में, वह अपने पति के साथ अपने पति के माता-पिता के साथ रहती थी, हालांकि बाद में वह एक दूसरे घर के भूतल पर अलग रहने लगे। यह दूसरा घर भी उसके पति के माता-पिता का ही है।

दुर्भाग्य से, जुलाई 2019 में, याचिकाकर्ता के पति की मृत्यु हो गई और उसके बाद, उसके ससुराल वालों ने दहेज की मांग सहित उसे परेशान करना शुरू कर दिया। जिसके लिए उसने कई एफ.आई.आर भी दर्ज करवाई हैं।

उसने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसने घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 (पीडब्ल्यूडीवी अधिनियम, 2005) की धारा 12 और 13 के तहत भी अपने ससुरालवालों के खिलाफ शिकायत दायर की थी और जब उक्त कार्यवाही चल रही थी, तो उसके ससुराल वालों ने वरिष्ठ नागरिक नियमों, 2014 के नियम 21 और 22 के तहत एक मामला दायर कर दिया,जिसमें उसे उस घर से बेदखल करने की मांग की गई,जिसमें वह रह रही थी।

उस मामले में उप-मंडल मजिस्ट्रेट, सदर, लखनऊ ने विधवा महिला और उसके नाबालिग बच्चे के खिलाफ बेदखली का आक्षेपित आदेश पारित कर दिया।

इसके बाद उसने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। जहां शुरूआत में हाईकोर्ट ने उनको अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी, लेकिन इस अंतरिम राहत को आगे नहीं बढ़ाया गया,इसलिए उसका सामान सड़क पर फेंक दिया गया और सितंबर 2021 में उसे जबरदस्ती घर से निकाल दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियां

शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि उप-मंडल मजिस्ट्रेट, सदर, लखनऊ ने वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ता को बेदखल करने का आदेश 'एस वनिथा (सुप्रा)' मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए कानून का उल्लंघन करते हुए दिया है।

याचिकाकर्ता घर को नुकसान पहुंचा रही है और उनके कब्जे में हस्तक्षेप कर रही है,इस संबंध में निजी प्रतिवादियों (ससुराल वालों) की तरफ से दी गई दलीलों के बारे में अदालत ने कहा कि,

''याचिकाकर्ता द्वारा एक स्पष्ट बयान दिया गया है कि वह न तो भूतल के ऊपर रहने वाले व्यक्तियों के जीवन या गतिविधियों में हस्तक्षेप कर रही है और न ही उनमें से कोई याचिकाकर्ता का किरायेदार है या उसके द्वारा वहां रखा गया है। वही निजी प्रतिवादियों द्वारा विशेष रूप से ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है,जो यह बता सके कि कैसे याचिकाकर्ता संपत्ति को नुकसान पहुंचा रही है? आक्षेपित आदेश में ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया है कि याचिकाकर्ता ने भूतल के अलावा किसी अन्य मंजिल पर अवैध तरीके से कब्जा कर लिया है या उसने भूतल के ऊपर की मंजिल के किसी भी व्यक्ति की आवाजाही में बाधा डाली है। ऐसा भी कोई निष्कर्ष नहीं है कि याचिकाकर्ता ने किसी भी तरह से संपत्ति को कोई नुकसान पहुंचाया है। इस तरह के किसी भी निष्कर्ष के अभाव में, आक्षेपित आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए था।''

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने जोर देकर कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं आया है,जो यह बताता हो कि याचिकाकर्ता निजी प्रतिवादियों के जीवन में किसी भी तरह से नुकसान या हस्तक्षेप कर रही है।

कोर्ट ने कहा कि इसके विपरीत, उसे बेदखल करने से उसके सिर पर छत नहीं रही है और उसे बहुत असुविधा हुई है।

अंत में कोर्ट ने आदेश दिया है कि मकान के भूतल का कब्जा याचिकाकर्ता को सौंप दिया जाए। साथ ही अदालत ने निजी प्रतिवादियों को निर्देश दिया है कि वह उक्त संपत्ति में निवास के दौरान याचिकाकर्ता और उसके बेटे के जीवन में किसी भी तरह से कोई परेशानी पैदा न करें या हस्तक्षेप ना करें।

केस का शीर्षक - श्रीमती खुशबू शुक्ला बनाम जिलाधिकारी, लखनऊ व अन्य

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