महिला की सहमति से खींची गई अश्लील तस्वीरों/वीडियो का भी दुरुपयोग नहीं कर सकतेः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया
एक बलात्कार के आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि भले ही यौन संबंधी सुस्पष्ट फोटो या अश्लील तस्वीर और वीडियो एक महिला की सहमति से खींची गई हों, लेकिन पीड़िता और आरोपी के बीच संबंध बिगड़ जाने के बाद उनके दुरुपयोग को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
न्यायमूर्ति सौरभ लावानिया की खंडपीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे मामलों में, माता-पिता और मौलिक अधिकारों के रक्षक होने के नाते, अदालत प्रभावित पीड़ितों के अधिकारों व सम्मान की रक्षा के लिए आगे आएगी, जिनमें ज्यादातर महिलाएं शामिल होती हैं।
इसके अलावा, यह देखते हुए कि उक्त सामग्री का उपयोग अपराधियों द्वारा अन्य यौन कृत्यों को करने के लिए विषय (पीड़ित) को ब्लैकमेल करने या संबंध जारी रखने के लिए मजबूर करने या संबंध समाप्त करने के लिए उन्हें दंडित करने के लिए किया जा सकता है, अदालत ने कहा कि,
''... यौन संबंधी सुस्पष्ट तस्वीर या वीडियो विषय की जानकारी और सहमति के साथ एक अंतरंग संबंध के एक साथी द्वारा बनाए जा सकते हैं, या उसकी जानकारी के बिना भी बनाया जा सकता है, हालांकि, अगर इनको बदला लेने या उत्पीड़न के रूप में उपयोग किया जाता है तो निश्चित रूप से यह संबंधित की गरिमा को विकृत/क्षतिग्रस्त करेंगे और इस प्रकार के मामलों में न्यायालय अपनी आँखें बंद नहीं कर सकता है और माता-पिता और मौलिक अधिकारों के रक्षक होने के नाते, न्यायालय को विषय के अधिकार की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए और न्यायालय को संबंधित व्यक्ति के साथ सख्ती से व्यवहार करना चाहिए।''
संक्षेप में मामला
प्राथमिकी के अनुसार पीड़ित महिला ने आरोप लगाया है कि जमानत याचिकाकर्ता 2012-2020 की अवधि के बीच उसके द्वारा बनाई गई अश्लील वीडियो क्लिप और तस्वीरों के आधार पर शिकायतकर्ता/पीड़ित के साथ बलात्कार करता रहा।
आरोप है कि उसने वर्ष 2012 में पहली बार शिकायतकर्ता के साथ बलात्कार किया और उसकी अश्लील वीडियो क्लिप भी बनाएं और उसी के आधार पर उसके साथ लगातार बलात्कार किया गया।
दूसरी ओर, जमानत आवेदक, जिस पर भारतीय दंड संहिता की धारा- 354क, 354ख, 354ग और 354घ, 376, 509, 323, 452, 504, 506 के तहत मामला दर्ज किया गया है, ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि पीड़िता-महिला व उसके बीच वर्ष 2012 से फरवरी, 2020 तक आपसी संबंध रहे हैं।
हालांकि, उसने प्रस्तुत किया कि जब 2017 में पीड़िता को नायब तहसीलदार के रूप में चुना गया, तो उसकी शादी किसी अन्य व्यक्ति के साथ तय कर दी गई और उसके बाद, उसने संबंध जारी रखने से इनकार किया, जबकि आवेदक उससे शादी करने के लिए तैयार था।
बलात्कार के आरोपों से इनकार करते हुए, जमानत आवेदक ने विशेष रूप से तर्क दिया कि यह आपसी सहमति से बना संबंध था और वे लिव इन रिलेशनशिप में थे।
न्यायालय की टिप्पणियां
रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से पता चलता है कि जमानत याचिकाकर्ता ने पीड़िता से संबंधित अश्लील संदेश और तस्वीरें उसकी मां व बहन को भेजकर पीड़िता की प्रतिष्ठा को खराब करने की कोशिश की थी।
कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता/पीड़ित ने प्राथमिकी के तथ्यों के साथ-साथ आवेदक के उस आचरण को भी सही ठहराया है, जो पीड़िता की बहन को अश्लील तस्वीरें और संदेश भेजने से संबंधित है।
इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय ने कहा कि,
''कोई भी व्यक्ति खासकर कोई महिला अपने चरित्र के ग्रे शेड्स बनाना और प्रदर्शित करना नहीं चाहेगी। वर्तमान मामले जैसे मामलों में, कोई भी आरोपी गुप्त रूप से महिला की शील को भंग कर देगा और साइबर स्पेस में उसका बिना किसी बाधा के दुरुपयोग करेगा। निस्संदेह, ऐसा कृत्य शोषण और ब्लैकमेलिंग के खिलाफ महिला की सुरक्षा के व्यापक हित के विपरीत होगा, जैसा कि वर्तमान मामले में प्रथम दृष्टया हुआ है।''
महत्वपूर्ण रूप से, यह रेखांकित करते हुए कि प्रत्येक मनुष्य का आंतरिक मूल्य, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए और यह कि प्रत्येक मनुष्य की अपने अस्तित्व के आधार पर गरिमा है, न्यायालय ने कहा किः
''मानव गरिमा आत्म-मूल्य की भावना है। इसलिए, गरिमा अपने आप में गर्व की भावना है जो एक इंसान के पास है। यह सचेत भाव उन्हें महसूस कराता है कि वे अन्य मनुष्यों से आदर और सम्मान पाने के पात्र हैं। कई विद्वानों का तर्क है कि अगर कोई इंसान अपमानजनक या समझौता करने वाली स्थिति में है तो यह उनकी गरिमा के लिए एक बड़ा खतरा है।''
अंत में, आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए, अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वह न केवल मानवीय गरिमा की रक्षा करे, बल्कि उस दिशा में सकारात्मक कदम उठाकर उसे सुगम बनाए।
केस का शीर्षकः गुरुविंदर सिंह बनाम यू.पी. राज्य व अन्य
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