किसी चश्मदीद या स्वतंत्र गवाह की उम्मीद नहीं कर सकते क्योंकि अपराधी अकेले में बच्चों पर हमला करते हैंः मद्रास हाईकोर्ट ने POCSO के आरोपी की सजा बरकरार रखी

Update: 2021-10-26 10:55 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया है कि एक आरोपी को केवल पीड़ित बच्चे की गवाही के आधार पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया जा सकता है, अगर यह गवाही 'ठोस, सुसंगत, भरोसेमंद है और न्यायालय के आत्मविश्वास को प्रेरित करती है।'

न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन ने कहा,

''इस तरह के मामलों में हम किसी प्रत्यक्षदर्शी या स्वतंत्र गवाह की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। अक्सर अपराधी बच्चे के अकेलेपन और बच्चों की उम्र की मासूमियत का फायदा उठाने की कोशिश करके अपराध करेगा। यह कानून का तय प्रस्ताव है कि जब पीड़ित का साक्ष्य ठोस, सुसंगत और विश्वास योग्य हो और न्यायालय के विश्वास को प्रेरित करता हो तो केवल पीड़ित के साक्ष्य के आधार पर ही आरोपी को दोषी करार दिया जा सकता है,बशर्ते एकमात्र गवाह के बयान से असहमत होने या उस पर अविश्वास करने का कोई कारण न हो।''

कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट की धारा 10 (बच्चे पर गंभीर यौन हमला करने के लिए सजा) और 12 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत एक व्यक्ति की सजा को चुनौती देने वाली आपराधिक अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है। इस मामले में निचली अदालत ने ग्यारह साल की पीड़ित बच्ची के यौन शोषण के मामले में उसे दो लाख रुपये मुआवजा देने का भी आदेश दिया था।

अभियोजन पक्ष ने प्रस्तुत किया कि आरोपी पीड़ित बच्ची का पड़ोसी था और उसने उस समय बच्ची से छेड़छाड़ करने की कोशिश की,जब वह अपने घर में अकेली थी। आगे यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी ने उसका हाथ खींच लिया और पीड़ित बच्ची को अपने निजी अंग दिखाए। बच्ची ने अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताया तो उसके बाद शिकायत दर्ज कराई गई।

मुकदमे के दौरान, आरोपी ने तर्क दिया कि कथित घटना के समय वह कहीं और था। हालांकि, अदालत ने किसी भी दस्तावेजी सबूत के अभाव में इस तरह के तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

अनुपस्थिति की दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,

''लेकिन, यह देखा गया है कि अपीलकर्ता अपने बचाव को साबित करने के लिए कोई वैध दस्तावेजी सबूत पेश करने में विफल रहा है। हालांकि उसने कहा है कि 23.05.2019 को वह पलानी गया था और 25.05.2019 को ही वह वालपराई लौटा था, परंतु अपीलकर्ता वालपराई और पलानी के बीच स्थित चेक पोस्ट में की गई कोई प्रविष्टि या कोई वैध ट्रिप शीट प्रस्तुत करने में विफल रहा है। इसलिए, यदि अपीलकर्ता / अभियुक्त प्रासंगिक सम य पर वालपराई में नहीं था, तो उसे अपने बचाव को साबित करने के लिए कोई वैध दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत करना चाहिए था, चूंकि उसने अपने बचाव में घटना के समय अनुपस्थित होने की विशेष दलील थी और वह उसे साबित करने में विफल रहा है। इसलिए, अपीलकर्ता/आरोपी द्वारा ली गई अनुपस्थिति की दलील स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि यह कानून के तहत तय तरीके से साबित नहीं हुई है।''

इसके अलावा, चूंकि पेनिट्रेटिव(गहराई तक जाने वाला) यौन हमले का कोई आरोप नहीं था, इसलिए अदालत ने कहा कि बच्ची पर इस तरह की कोई भी चोट लगने का चिकित्सकीय सबूत दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

तद्नुसार न्यायालय ने निचली अदालत के दोषसिद्धि के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि बच्ची की गवाही सुसंगत है और आत्मविश्वास को प्रेरित करती है।

कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि,

''वर्तमान मामले में, पीड़ित बच्ची को छोड़कर कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है, जो घटना के समय 11 वर्ष की थी और उसने घटना व अपीलकर्ता द्वारा किए गए अपराध के तरीके के बारे में स्पष्ट रूप से बताया है। उसकी गवाही सुसंगत, भरोसेमंद और विश्वसनीय है। इस न्यायालय को पीड़ित बच्ची के साक्ष्य पर अविश्वास करने या उसे खारिज करने का कोई कारण नहीं मिला है।''

केस का शीर्षकः के रुबन बनाम राज्य

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