क्या अदालत आपसी सहमति से तलाक की याचिका को सिर्फ इसलिए खारिज कर सकती है क्योंकि पति और पत्नी एक ही परिसर में रह रहे हैं? कर्नाटक हाईकोर्ट ने जवाब दिया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि सिर्फ इसलिए कि अलग हो चुके जोड़े एक ही छत के नीचे रह रहे हैं, अदालत आपसी सहमति से विवाह को भंग करने की उनकी याचिका को केवल इसी आधार पर खारिज नहीं कर सकती है।
जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की सिंगल जज बेंच ने एक जोड़े द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और फैमिली कोर्ट के 15-10-2022 के आदेश को रद्द कर दिया और जज से समझौता याचिका और मध्यस्थ की रिपोर्ट के संदर्भ में जल्द से जल्द निर्णय पारित करने का अनुरोध करते हुए मामले को फैमिली कोर्ट में वापस भेज दिया।
मामले में एक दूसरे से अलग हो चुके जोड़े ने आपसी सहमति से अपनी शादी को खत्म करने की डिक्री के लिए याचिका दायर की थी। मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा गया था। दो जनवरी, 2023 को एक रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश की गई, जिसमें सेटलमेंट का दावा किया गया।
पार्टियों ने तब एक समझौता याचिका भी दायर की, जिसमें सुलहकर्ता के समक्ष तय किए गए सामाधान की बात कही गई थी। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने इस आधार पर शादी को खत्म करने की याचिका को खारिज कर दिया कि पति-पत्नी एक ही छत के नीचे रह रहे हैं।
जस्टिस दीक्षित ने कहा,
"यह तथ्य कि पति-पत्नी एक ही परिसर में रह रहे हैं, ऐसे आदेश देने का आधार नहीं हो सकता था। ..ऐसे त्रुटिपूर्ण तर्क न्यायालय को चकित करते हैं।”
अदालत ने कहा कि इस तरह के तथ्य यकीनन पति-पत्नी की अच्छी संस्कृति को दिखा सकते हैं, जो अन्यथा आपस में झगड़ते रहते हैं।
कोर्ट ने कहा,
"पक्षों को राहत देने से इनकार करने के लिए निचली कोर्ट द्वारा निर्दिष्ट कारण स्पष्ट रूप त्रुटि का गठन करता है।"
केस टाइटल: श्रीमती दिव्या गणेश नल्लूर और अन्य और निल
केस नंबर: रिट पीटिशन नंबर 24429/2022
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 220