सामूहिक बलात्कार पीड़िता को धमकी देने के आरोपी को पुलिस ने "तत्काल" रिहा किया, कलकत्ता हाईकोर्ट ने पूछा-ऐसा क्यों किया?
कलकत्ता हाईकोर्ट ने राजारघाट में वैदिक गांव के कथित सामूहिक बलात्कार मामले की पीड़िता को अपना मामला वापस लेने की धमकी देने के आरोपी एक व्यक्ति को "तत्काल रिहा" करने की पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई पर निराशा व्यक्त की है।
जस्टिस अजय कुमार गुप्ता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने संबंधित थाने के प्रभारी अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने और स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है कि उपरोक्त कार्रवाई क्यों की गई।
पीड़िता ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि नवंबर, 2022 में पार्टी में चार लोगों ने शराब में नशीला पदार्थ मिला कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया।
विशाल पेरिवाज की पहचान पीड़िता द्वारा अदालत में उस व्यक्ति के रूप में की गई थी जिसने उसे वहां धमकी दी थी, जहां ट्रायल कोर्ट ने जांच अधिकारी को उसे लेक पुलिस स्टेशन को सौंपने का निर्देश दिया था। उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 195ए (झूठे सबूत देने के लिए किसी भी व्यक्ति को धमकी देना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया था और उसे 17 मई को हिरासत में भेज दिया गया था।
हालांकि, अदालत के झटके के बाद, उसे जल्द ही निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया।
कोर्ट ने कहा,
“हम 7 वर्ष तक के कारावास के साथ दंडनीय अपराधों से जुड़े मामलों में विचाराधीन कैदियों को रिहा करने के संबंध में अर्नेश बनाम बिहार राज्य में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के प्रति सचेत हैं, जो सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई और अन्य में दोहराए गए हैं।
इसके अलावा, ऐसे मामलों में जमानत देने के अपवादों में से एक गवाहों को धमकाना/भयभीत करना है। ट्रायल जज ने उक्त आरोपी द्वारा दी गई धमकी के संबंध में एक कमजोर गवाह द्वारा व्यक्त की गई आशंका को नोट किया था और जांच अधिकारी को उसे हिरासत में लेने का निर्देश दिया था।
7 साल तक के अपराधों से जुड़े मामलों में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41 (बी) (ii) (डी) के अनुसार एक आरोपी की गिरफ्तारी और हिरासत के लिए एक गवाह को धमकी, प्रलोभन देना एक वैध आधार है।
ऐसे मामलों में पुलिस दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41-ए का सहारा लेना और/या ऐसे आरोपी को निजी मुचलके पर रिहा करना न्यायोचित नहीं होगा, खासकर जब कमजोर गवाह की जांच की जा रही हो।”
कोर्ट ने उक्त व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि क्यों न उसकी जमानत रद्द कर दी जाए। न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि अगले आदेश तक उक्त व्यक्ति पुलिस हिरासत में रहेगा और इलेक्ट्रॉनिक रूप से या अन्यथा पीड़िता या उसके परिवार के सदस्यों से संपर्क नहीं करेगा।
केस टाइटल: In Re : माधव अग्रवाल और अन्य बनाम राज्य
कोरम: न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची