कलकत्ता हाईकोर्ट ने ग्रुप सी कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभ से काटी गई अधिक आहरित राशि को वापस करने का निर्देश दिया

Update: 2023-04-01 10:40 GMT

Calcutta High Court

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में समूह 'सी' के एक कर्मचारी को उसकी सेवानिवृत्ति के बाद वसूल की गई अधिक निकासी राशि का भुगतान करने का राज्य सरकार को निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने कहा, नियोक्ताओं की ओर से की गई उक्त वसूली सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंजाब राज्य और अन्य बनाम रफीक मसीह (2015) 4 एससीसी 344 में निर्धारित अनुपात का उल्लंघन है।

पंजाब राज्य और अन्य बनाम रफीक मसीह में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नियोक्ताओं की ओर से हुई वसूली निम्नलिखित स्थितियों में कानून में अस्वीकार्य है-

"(i) क्लास III और क्लास IV सर्विस (या ग्रुप सी और ग्रुप डी सर्विस से संबंधित कर्मचारियों से वसूली।

(ii) सेवानिवृत्त कर्मचारियों से वसूली, या ऐसे कर्मचारी जो वसूली के आदेश के एक वर्ष के भीतर सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

(iii) ………

(iv) ………… ..

(v) किसी भी अन्य मामले में, जहां न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि यदि कर्मचारी से वसूली की जाती है, तो यह अन्यायपूर्ण या कठोर या इस हद तक मनमाना होगा, जो समान संतुलन से कहीं अधिक नियोक्ता के वसूली के अधिकार की ओर झुका होगा।”

याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल राज्य लघु सिंचाई निगम लिमिटेड (WBSMICL) का समूह-'सी' कर्मचारी था। वह 31 मार्च, 2019 को अपनी सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे और उनके सेवानिवृत्ति लाभों का भुगतान 25 अक्टूबर, 2019 को किया गया।

याचिकाकर्ता को देय और भुगतान योग्य सेवानिवृत्ति लाभों से प्रतिवादियों ने 8,43,465/- रुपये की कटौती इस आधार पर की थी कि याचिकाकर्ता ने अधिक आहरण किया है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने इस आधार पर अधिक राशि की वसूली को चुनौती दी कि वह समूह 'सी' का कर्मचारी था और अतिरिक्त राशि की वसूली सेवानिवृत्ति के बाद की गई थी, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा रफीक मसीह के मामले में निर्धारित अनुपात का उल्लंघन है।

WBSMICL के लिए पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि वेतन निर्धारण/वेतन में वृद्धि 'अनंतिम' थी और 'अधिक निकासी', यदि कोई हो, की तुरंत वसूली की जा सकती है, जैसा कि 14 जुलाई, 2010 को प्रबंध निदेशक, WBSMICL द्वारा जारी परिपत्र के तहत प्रदान किया गया है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता समूह 'सी' का कर्मचारी था और अधिक आहरित राशि की वसूली सेवानिवृत्ति के बाद की गई थी, इसलिए, याचिकाकर्ता का मामला रफीक मसीह के मामले में निर्धारित अनुपात के अंतर्गत आता है।

अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता को किया गया अधिक भुगतान/अधिक निकासी याचिकाकर्ता की ओर से की गई किसी गलत बयानी के कारण नहीं था।

अदालत ने कहा,

"उपरोक्त चर्चाओं के आलोक में, यह न्यायालय पाता है कि याचिकाकर्ता जो 31 मार्च, 2019 को सेवानिवृत्त हो गया, उसे 8,43,465/- रुपये की उक्त राशि का भुगतान नहीं किया जाता है तो उसे अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। अधिक निकासी के कारण कटौती से याचिकाकर्ता को पहले ही कठिनाई हो चुकी है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को सेवानिवृत्त संबंध‌ित देय राशि के देर से भुगतान के कारण बहुत अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा।"

इस प्रकार, अदालत ने 25 अक्टूबर, 2019 के विवादित आदेश को रद्द कर दिया और प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि एक अप्रैल, 2019 से भुगतान की तारीख तक 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 843,465/- रुपये की उक्त राशि का भुगतान छह सप्ताह के भीतर किया जाए।

केस टाइटल: बिश्वनाथ पॉल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य।

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