कलकत्ता हाईकोर्ट ने पोलिश छात्र को दिए गए 'भारत छोड़ो' नोटिस को किया रद्द, एंटी- सीएए प्रोटेस्ट में कथित भागीदारी के चलते किया गया था जारी

Update: 2020-03-19 03:00 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने ,बुधवार कोे विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ),कोलकाता की तरफ से एक पोलिश छात्र को जारी 'लीव इंडिया' नोटिस को रद्द कर दिया है,जो कथित रूप से एक एंटी- सीएए प्रोटेस्ट में भाग लेने के कारण जारी किया गया था। यह बात पीटीआई की रिपोर्ट में कही गई है।

न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह पोलैंड के नागरिक, जो जादवपुर विश्वविद्यालय में पढ़ता है, को दिए गए नोटिस को लागू न करें या अमल में न लाएं।

6 मार्च को, अदालत ने नोटिस की कार्यवाही या अमल करने पर रोक लगा दी थी, जिसमें पोलैंड के नागरिक को 9 मार्च से पहले भारत छोड़ने के लिए कहा गया था।

जादवपुर विश्वविद्यालय के तुलनात्मक साहित्य विभाग में मास्टर डिग्री के लिए दाखिला लेने वाले पोलैंड के छात्र कामिल सिडक्जइनस्की को 14 फरवरी को एफआरआरओ, कोलकाता की तरफ से 'भारत छोड़ो' का नोटिस जारी किया था।

पोलैंड के नागरिक की प्रार्थना या अनुरोध का विरोध करते हुए, केंद्र सरकार ने अदालत में कहा कि एक छात्र वीजा धारक होने के नाते, एक विदेशी भारतीय संसद द्वारा पारित कानून को चुनौती नहीं दे सकता है।

केंद्र सरकार के वकील फिरोज एडुलजी ने कहा कि एक विदेशी संविधान के अनुच्छेद 19 को चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि यह उस पर लागू नहीं होता है।

एडुलजी ने आगे कहा कि एक फील्ड रिपोर्ट के आधार पर एफआरआरओ ने यह नोटिस जारी किया था।

हाईकोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में,सिडक्जइनस्की ने प्रार्थना की थी कि अधिकारियों को नोटिस को अमल में लाने से रोकने के लिए एक निरोधक आदेश जारी किया जाए। इस नोटिस में उसे प्राप्त होने के 14 दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है। साथ ही अधिकारियों को उसे निर्वासित करने से भी रोका जाए।

नोटिस में, पोलैंड के इस छात्र पर आरोप लगाया गया है कि वह सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त है और इस तरह वीजा नियमों का उल्लंघन कर रहा हैै, जिसे छात्र ने अस्वीकार कर दिया है या गलत बताया है।

छात्र के वकील जयंत मित्रा ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि 19 दिसंबर, 2019 को, वह आउटिंग पर गया हुआ था। उसी समय उसे जादवपुर विश्वविद्यालय के अन्य छात्रों के साथ शहर के न्यू मार्केट क्षेत्र में एक कार्यक्रम में जाने के लिए राजी किया गया था या ले जाया गया था।

अदालत को यह भी बताया गया कि छात्र ने यह सब अनजाने में और जिज्ञासा के चलते किया था। मित्रा ने प्रस्तुत किया कि यह भी मालूम हुआ है कि यह आयोजन एक शांतिपूर्ण विरोध था, जो विभिन्न वर्गों के लोगों द्वारा आयोजित किया गया था।

उन्होंने दावा किया कि छात्र जल्द ही दूसरों से अलग हो गया था और एक दर्शक के रूप में किनारे पर खड़ा हो गया था। छात्र ने दावा किया कि उससे एक व्यक्ति ने कुछ सवाल पूछे और उसकी तस्वीर भी क्लिक की और बाद में उसे मालूूम हुआ कि वह एक बंगाली दैनिक का फोटो जर्नलिस्ट था, जहाँ उसकी फोटो और उससे संबंधित कुछ खबर प्रकाशित हुई थी। मित्रा ने दावा किया कि रिपोर्ट में कुछ बयानों को गलत तरीके से बताया गया था।

मित्रा ने अदालत के समक्ष दावा किया कि नोटिस, जो 24 फरवरी को छात्र को मिला था और जिसमें उसे एफआरआरओ के पास जाने के लिए कहा गया था, वह मनमाना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत था। वहीं सभी व्यक्तियों को संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी था।

उन्होंने कहा कि यह भारत के दायित्वों के अनुरूप नहीं है और यह मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948) और नागरिक व राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (1966) के तहत उल्लिखित सिद्धांतों का अपमान या अनादर भी है, जो सभी व्यक्तियों पर लागू होते हैं।

मित्रा ने दलील दी कि यह छात्र, पोलैंड में श्जेजीन ( Szczecin)नामक जगह का निवासी है और वह 2016 से भारत में पढ़ाई कर रहा है। जादवपुर विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम में दाखिला लेने से पहले ही वह छात्रवृत्ति पर विश्व-भारती विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त कर चुका है। वह जादवपुर विश्वविद्यालय में अंतिम सेमेस्टर में है और उसकी परीक्षाएं अगस्त तक पूरी होने वाली हैं।

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