अन्वय नाइक सुसाइड मामले में अर्नब गोस्वामी के खिलाफ दायर चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया

Update: 2020-12-16 13:07 GMT

बुधवार को अलीबाग स्थित न्यायिक मजिस्ट्रेट ने वर्ष 2018 के अन्वय नाइक केस में रायगढ़ पुलिस द्वारा रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्नब गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दायर आरोपपत्र पर संज्ञान ले लिया है। 

गोस्वामी के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता अबद पोंडा ने इस तथ्य के बारे में स्वंय बॉम्बे हाई कोर्ट को सूचित किया।

गोस्वामी की तरफ से एक याचिका दायर कर मांग की गई थी कि मजिस्ट्रेट को इस मामले में सज्ञंान लेने से रोक दिया जाए। इसी याचिका पर न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ के समक्ष सुनवाई चल रही थी। इसी दौरान पोंडा ने पीठ को सूचित किया कि उन्हें एक संदेश मिला है कि मजिस्ट्रेट ने आरोप पत्र पर संज्ञान ले लिया है।

उसके बाद, पोंडा ने चार्जशीट को रिकॉर्ड पर लाने के लिए रिट याचिका में संशोधन करने के लिए अनुमति देने की मांग की।

पीठ ने दर्ज किया कि आरोप पत्र पर संज्ञान ले लिया गया है। साथ ही, पोंडा के अनुरोध को स्वीकार करते हुए, पीठ ने मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि वह गोस्वामी की तरफ से अपने अधिवक्ता के माध्यम से दायर किए जाने वाले एक औपचारिक आवेदन पर विचार करते हुए उनको चार्जशीट की कॉपी और मामले के दस्तावेज जल्दी से प्रदान कर दें।

पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई 6 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी है।

4 दिसंबर को रायगढ़ पुलिस ने अलीबाग की एक अदालत के समक्ष गोस्वामी और दो अन्य लोगों के खिलाफ 1,914 पन्नों की लंबी चार्जशीट दायर की थी क्योंकि यहीं पर इंटिरीअर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद की मौत के मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। तीनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना), 109 (उकसाने की सजा) और 34 (सामान्य इरादे के साथ कई लोगों द्वारा किया गया कृत्य) के तहत आरोप लगाया गया है।

इसके बाद, उन्होंने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की थी कि मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया जाए कि वह आरोपपत्र पर संज्ञान न लें। अपने आवेदन में, गोस्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित 27 नवंबर के फैसले का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों को देखते हुए प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं बनता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए, पोंडा ने कहा कि ''न्यायमूर्ति चंद्रचूड का फैसला मेरा सबसे अच्छा तर्क है।''

पीठ ने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया है कि उनकी टिप्पणियों की प्रकृति प्रथम दृष्टया है। इसके अलावा,यह टिप्पणी एफआईआर चरण में की गई थी और अब मामला चार्जशीट के स्तर पर है।

पीठासीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा कि,

''सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां प्रथम दृष्टया हैं, निर्णय में यह स्पष्ट किया गया है। निर्णय केवल कानून पर बाध्यकारी है न कि तथ्यों पर। एससी ने यह स्पष्ट किया है कि तथ्यात्मक अवलोकन प्रारंभिक हैं।''

न्यायमूर्ति शिंदे ने एससी के फैसले का हवाला देते हुए कहा, ''इससे पहले, इस पर स्पष्टता का अभाव था कि क्या अनुच्छेद 226 के तहत अंतरिम जमानत दी जा सकती है। लेकिन अब यह ऐतिहासिक फैसला आया है कि अनुच्छेद 226 के तहत भी नियमित जमानत भी दी जा सकती है। यह फैसला हमारा मार्गदर्शन करेगा।''

पोंडा ने स्पष्ट किया कि वह उच्चतम न्यायालय के फैसले के आधार पर चार्जशीट को ऑटोमैटिक तरीके से रद्द'' करने की मांग नहीं कर रहे थे, लेकिन फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए।

इसी समय, पोंडा ने पीठ को सूचित किया कि मजिस्ट्रेट ने मामले में संज्ञान ले लिया है।

इस मामले के सिलसिले में गोस्वामी को रायगढ़ पुलिस ने 4 नवंबर को गिरफ्तार किया था और उन्हें दो सप्ताह की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा उन्हें अंतरिम जमानत देने से इनकार करने के बाद 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया था।

1,914 पृष्ठों में दायर की गई चार्जशीट में गवाह के रूप में 65 व्यक्तियों को नामित किया गया है।

यह पूरा मामला उस 'सुसाइड नोट' पर निर्भर है,जिसे मरने से पहले दिया गया बयान माना जा रहा है। चार्जशीट के अनुसार, नाइक की लिखावट सुसाइड नोट की लिखावट से मेल खाती है और फॉरेंसिक रिपोर्ट में इंगित किया गया है कि वह इसे लिखते समय दबाव में नहीं था।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने छह बयान दर्ज किए गए हैं,जो चार्जशीट का हिस्सा हैं। ऐसे बयानों को मामले की सुनवाई के दौरान साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद ने 2018 में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि गोस्वामी और अन्य दो आरोपियों की फर्मों द्वारा उनके बकाया का भुगतान नहीं किया गया था।

2019 में सबूतों के अभाव में बंद किए गए इस मामले को इस साल मई में फिर से खोल दिया गया था। इस मामले में गोस्वामी ने आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र सरकार एक टीवी पत्रकार के रूप में उनके काम के चलते उनके खिलाफ प्रतिशोध ले रही है।

Tags:    

Similar News