बीसीआई ने रिव्यू के लिए 'आलोचना-अयोग्यता नियम' को स्थगित रखने का फैसला किया
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के भाग VI के अध्याय II में हाल ही में सम्मिलित धारा V और V-A के रिव्यू के लिए एक कमेटी बनाने का फैसला किया है और रिपोर्ट प्राप्त होने तक नियमों को स्थगित रखने का फैसला किया है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के उक्त नियम (26 जून की अधिसूचना द्वारा अधिसूचित) में कहा गया है किः
''एक वकील अपने दैनिक जीवन में एक सज्जन पुरुष/सज्जन महिला के रूप में आचरण करेगा और वह कोई गैरकानूनी कार्य नहीं करेगा, वह प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया में ऐसा कोई बयान नहीं देगा, जो किसी भी न्यायालय या न्यायाधीश या न्यायपालिका के किसी सदस्य के खिलाफ, या स्टेट बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया के खिलाफ अभद्र या अपमानजनक, मानहानिकारक या प्रेरित, दुर्भावनापूर्ण या हानिप्रद है।''
बुधवार को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि काउंसिल ने नियमों के रिव्यू के लिए एक कमेटी गठित करने का संकल्प लिया है और अध्यक्ष को कमेटी के गठन के लिए अधिकृत किया गया है। अधिसूचना में कहा गया है कि,
''कमेटी में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पांच सदस्यों के अलावा कुछ वरिष्ठ अधिवक्ता, राज्य बार काउंसिल और हाईकोर्ट और अन्य बार एसोसिएशन के प्रतिनिधि शामिल होंगे। कमेटी से 3 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अनुरोध किया जाएगा। इसके बाद, काउंसिल एडवोकेट एक्ट 1961 के प्रावधानों के अनुसार कार्य करने के लिए आगे बढ़ेगी।''
नियमों को लाने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए काउंसिल ने कहा है कि इस तरह के नियम का उद्देश्य पेशे के मानकों में सुधार करना और ''पेशे से ब्लैक शीप को बाहर निकालना'' था।
इसके अलावा, काउंसिल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया को बार से अयोग्य तत्वों को बाहर निकालने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया है और इसलिए, बार काउंसिल ऑफ इंडिया का प्रोफेशन को मजबूत करने वाले नियम बनाने का दायित्व बनता है।
महत्वपूर्ण रूप से, अधिसूचना में कहा गया है किः
''कोई भी विवेकपूर्ण और वास्तविक अधिवक्ता बार काउंसिल ऑफ इंडिया के ऐसे कदमों का विरोध नहीं करेगा; और केवल वे जो एक्टिव प्रैक्टिस में नहीं हैं, लेकिन हमेशा घिनौनी और नापाक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं और पेशे की छवि को खराब करते रहे हैं, सिर्फ वे ही वकील तब चिल्लाते और शोर-मचाते हैं,जब भी पेशे की गरिमा को बनाए रखने के लिए ऐसे सार्थक कदम उठाए जाते हैं। कुछ लोगों को हर सुधारात्मक कदम पर आपत्ति करने की आदत होती है, लेकिन, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ऐसे किसी भी अनुचित दबाव के आगे झुकने वाला नहीं है।''
अधिवक्ताओं के अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार पर अंकुश लगाने के रूप में नियमों की कानूनी बिरादरी में व्यापक आलोचना की गई है। नियमों को चुनौती देते हुए कुछ हाईकोर्ट में याचिकाएं भी दायर की गई हैं।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका का 'वापस ली गई' के रूप में निपटारा कर दिया था। इस याचिका में बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के भाग VI के अध्याय II में हाल ही में सम्मिलित धारा V और V-A को चुनौती देते हुए कहा था कि यह असंवैधानिक हैं और आर्टिकल 14, 19 (1) (ए) और 21 का उल्लंघन करते हैं।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बुधवार को ही केरल हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया है कि नए नियम जो बीसीआई और अन्य बार काउंसिल के खिलाफ आलोचना और असहमति को प्रतिबंधित करते हैं, उन्हें एडवोकेट एक्ट की धारा 49 के प्रावधान के अनुसार भारत के मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी मिलना बाकी है और इसलिए प्रभावी नहीं हुए हैं।
जस्टिस पी.बी. सुरेश कुमार एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें यह घोषणा करने की मांग की गई थी कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के भाग VI के अध्याय II में हाल ही में सम्मिलित धारा V और V-A असंवैधानिक हैं और आर्टिकल 14, 19 (1) (ए), और 21 का उल्लंघन करते हैं।
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