बॉम्बे हाईकोर्ट ने लड़की की मां की सहमति के बाद पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज यौन उत्पीड़न का मामला खारिज किया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता - मां की सहमति से नाबालिग किशोरी के अपहरण और यौन उत्पीड़न के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत 19 वर्षीय छात्र के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी।
जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस एसजी डिगे ने पाया कि युगल के बीच "दोस्ती थी और जो कुछ भी हुआ दोस्ती" में हुआ। लड़की के माता-पिता को सूचित किए बिना एक साथ रहते थे और इसी गलतफहमी के कारण एफआईआर दर्ज कराई गई।
खंडपीठ ने कहा,
"पूर्वोक्त पृष्ठभूमि में जो देखा जा सकता है, वह याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने के लिए न्याय के हित के विपरीत होगा। छात्र के रूप में दोनों पक्षों को समान रूप से कठिनाई में डाल दिया जाएगा।"
पॉक्सो एक्ट मामले को सहमति से रद्द करने का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है।
मामले के तथ्य
पीड़िता की मां द्वारा 26 नवंबर, 2021 को याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 के तहत दंडनीय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई, जब 15 साल की पीड़ित लड़की नहीं मिली। इसके बाद आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो एक्ट की धारा 8 (यौन उत्पीड़न) और 12 (यौन उत्पीड़न) को जोड़ा गया।
हाईकोर्ट के समक्ष सहमति पत्र में किशोरी की मां ने कहा कि अपनी बेटी से पूछने पर पता चला कि उसकी बेटी याचिकाकर्ता के साथ अपनी मर्जी से भाग गई। एडवोकेट विश्वनाथ पाटिल ने यह भी तर्क दिया कि किशोरी और उसके माता-पिता के बीच संवादहीनता थी। अंत में हलफनामे में कहा गया कि आईपीसी की धारा 354 के तहत यौन उत्पीड़न के आरोपों को बाद में ही जोड़ा गया।
इस पृष्ठभूमि के साथ याचिकाकर्ता लड़के ने हाईकोर्ट के समक्ष एफआईआर रद्द करने की मांग की। अदालत ने दर्ज किया कि उसने शिकायतकर्ता के साथ बातचीत की और पाया कि उस पर मामले को निपटाने के लिए दबाव नहीं डाला गया।
खंडपीठ ने सतेंद्र शर्मा बनाम राज्य और अन्य और ज्ञानसिंह बनाम पंजाब राज्य के दो निर्णयों पर भरोसा किया, जहां अदालत ने कहा कि हताशा में दर्ज एफआईआर को सहमति से रद्द किया जा सकता है।
खंडपीठ ने कहा,
"मौजूदा मामले के तथ्यों से देखा जा सकता है कि याचिकाकर्ता छात्र पीड़ित लड़की के साथ दोस्ताना संबंध रखता है और यह दोस्ती से बाहर है कि वे माता-पिता को सूचित किए बिना एक साथ रहते हैं। पीड़ित लड़की की मां यानी शिकायतकर्ता को शिकायत दर्ज कराने के लिए भड़काया गया।"
इसके साथ ही पीठ ने एफआईआर रद्द कर दी।
केस टाइटल: शिव चनप्पा ओडाला बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।
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