यौन इरादे से बच्चे के निजी अंगों को छूना POCSO एक्ट आकर्षित करने के लिए पर्याप्त, चोट की अनुपस्थिति प्रासंगिक नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2022-08-25 10:53 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि केवल यौन इरादे से बच्चे के निजी अंगों को छूना POCSO एक्ट (The Protection of Children from Sexual Offences Act) की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न के रूप में माना जाने के लिए पर्याप्त है। इसके साथ ही चोट का प्रदर्शन करने वाला मेडिकल सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं है।

कोर्ट ने कहा,

"मेडिकल सर्टिफिकेट में उल्लिखित चोट की अनुपस्थिति से उसके मामले में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि POCSO एक्ट की धारा 7 के तहत परिभाषित यौन उत्पीड़न के अपराध की प्रकृति में POCSO एक्ट की धारा 8 के साथ पठित धारा 7 के प्रावधान में उल्लेख है कि यौन इरादे से निजी अंग को छूना भी आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है।"

जस्टिस सारंग कोतवाल ने 2013 में नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की अपील खारिज कर दी। नवंबर, 2017 में उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा धारा 354 और PCOSO एक्ट की धारा 8 के तहत दोषी ठहराया गया था और उसे पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

पीड़ित पक्ष का मामला यह है कि जब वह घर के बाहर अपने दोस्तों के साथ खेल रही थी तो उस व्यक्ति ने लड़की को उठा लिया और उसके गुप्तांगों को छुआ और चुटकी ली। मां के पुलिस से संपर्क करने के बाद शिकायत दर्ज कराई गई।

पीड़िता का बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया।

आरोपी ने कहा कि लड़की के पिता ने झगड़े के बाद उसे झूठा फंसाया और एफआईआर दर्ज करने में दो दिन की देरी हुई। उसने तर्क दिया कि मामला इसलिए भी संदिग्ध है, क्योंकि पीड़ित के शरीर पर कोई चोट नहीं है।

हालांकि, पीठ ने कहा,

"पीड़ित ने घटना का पर्याप्त विस्तार से वर्णन किया। पीड़ित गवाही सच्ची प्रतीत होती है। पीड़ित द्वारा अपीलकर्ता की गलत पहचान करने की कोई संभावना नहीं है।"

इसके अलावा, POCSO एक्ट की धारा 7 के तहत वर्णित यौन उत्पीड़न को मेडिकल साक्ष्य के रूप में चोटों की अनुपस्थिति में भी यौन इरादे को साबित करने के रूप में बनाया गया।

कोर्ट ने कहा,

"इस मामले में पीड़िता और उसकी मां का आंखों देखा विवरण आत्मविश्वास को प्रेरित करता हैं और उनके वर्जन पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। अपीलकर्ता का बचाव वास्तव में उसके कारण की मदद नहीं करता। इस प्रकार, इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं है। आक्षेपित निर्णय और आदेश किया जाता है और अपील खारिज की जाती है।"

केस टाइटल: रामचंद्र श्रीमंत भंडारे बनाम महाराष्ट्र राज्य

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