बॉम्बे हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपी को जमानत देते समय हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने के लिए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की आलोचना की
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या के आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते समय उस्मानाबाद के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अवज्ञा और न्यायिक अनुपयुक्तता का हवाला देते हुए आलोचना की।
जस्टिस आरएम जोशी ने कहा कि न्यायाधीश ने हाईकोर्ट के पिछले आदेश से अवगत होने के बावजूद आरोपी की जमानत याचिका पर विचार किया और उसे अनुमति दी, जिसमें आरोपी को जमानत के लिए निचली अदालत के बजाय हाईकोर्ट जाने की छूट दी गई।
अदालत ने कहा,
“ट्रायल कोर्ट से अपेक्षा की जाती है कि वे न्यायिक औचित्य बनाए रखें और यह सुनिश्चित करें कि किसी भी तरह से हाईकोर्ट की अवज्ञा न हो। अदालत के अधिकारी होने के नाते वकील और लोक अभियोजक भी अदालतों के प्रति ईमानदार और निष्पक्ष रहने की समान जिम्मेदारी साझा करते हैं और किसी भी मामले में किसी भी अदालत के समक्ष तथ्यों को दबाने में शामिल नहीं होते हैं।”
अदालत ने जिला न्यायाधीश द्वारा उसकी जमानत स्वीकार करने से इनकार करने को चुनौती देने वाली रामचंद्र मारुति येदागे की रिट याचिका खारिज कर दी।
याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा चल रहा है। 5 मई, 2022 के आदेश में हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी, लेकिन आठ महीने के भीतर मुकदमा समाप्त नहीं होने पर उन्हें फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी। हालांकि, उन्होंने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें 29 मई, 2023 को जमानत दे दी। येडगे ने वर्तमान याचिका तब दायर की जब जिला न्यायाधीश ने उनकी जमानत स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने इस तथ्य को छिपाते हुए नई जमानत याचिका दायर की कि हाईकोर्ट ने उसे जमानत के लिए केवल हाईकोर्ट में जाने की स्वतंत्रता दी, ट्रायल कोर्ट में नहीं। हाईकोर्ट ने इस कार्रवाई को अदालत की अवज्ञा और धोखाधड़ी का मामला पाया। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष भी अपनी प्रतिक्रिया में इस तथ्य का खुलासा करने में विफल रहा, जो दोनों पक्षों द्वारा तथ्यों को दबाने का संकेत देता है।
हाईकोर्ट ने कहा,
"याचिकाकर्ता को आठ महीने की अवधि के भीतर सुनवाई पूरी नहीं होने की स्थिति में इस न्यायालय से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी गई और सुनवाई अदालत के पास याचिकाकर्ता को जमानत देने का कोई विवेक नहीं है, भले ही सुनवाई निर्धारित अवधि आठ महीने की अवधि के भीतर समाप्त न हो।”
हाईकोर्ट ने पाया कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को आरोपी की जमानत याचिका पर उसके पिछले आदेश के बारे में पता है, लेकिन उसने निर्देशों की अनदेखी की।
अदालत ने कहा,
“अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 05.05.2022 को इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश का अध्ययन किया, लेकिन न्यायाधीश ने इस निर्देश को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष जमानत के लिए आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता नहीं दी गई, बल्कि इस पर केवल हाईकोर्ट द्वारा विचार किया जाना है।”
हाईकोर्ट ने कहा,
"न्यायिक आचरण ही वह तंतु है जिस पर किसी भी न्याय वितरण प्रणाली पर लोगों का विश्वास काफी हद तक निर्भर करता है।"
न्यायिक प्रणाली में विश्वास सुनिश्चित करने के लिए हाईकोर्ट ने न्याय करने में पारदर्शिता और अनुशासन की आवश्यकता पर जोर दिया।
मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग किया और 29 मई, 2023 के आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने रिट याचिका भी खारिज कर दी।
हाईकोर्ट ने "सतर्क" रहने के लिए उस्मानाबाद के जिला और सत्र न्यायाधीश एएस शेंडे की सराहना की।
अदालत ने कहा,
“उन्होंने प्रक्रिया को अनुचित महत्व देने के बजाय तकनीकीताओं पर कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग की रोकथाम को प्राथमिकता दी। यह अधिनियम सराहना का पात्र है, क्योंकि इस तरह के सकारात्मक कदम के बिना विचाराधीन आदेश निश्चित रूप से किसी का ध्यान नहीं जाता... धोखाधड़ी से प्राप्त कोई भी आदेश निरर्थक है। इसलिए सत्र न्यायाधीश पारित आदेश के अनुसार जमानत स्वीकार करने के लिए कानूनी दायित्व के अधीन नहीं है, जो स्पष्ट रूप से न्यायिक अनुशासनहीनता और अदालत में पार्टी द्वारा की गई धोखाधड़ी को दर्शाता है।”
हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि आदेश की कॉपी प्रशासनिक पक्ष की ओर से चीफ जस्टिस के समक्ष रखी जाए और प्रमुख सचिव, कानून और न्यायपालिका को उनके अधिकार क्षेत्र के भीतर उचित कार्रवाई के लिए भेजी जाए।
वकील एएस मोरे ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया, जबकि एपीपी जीएल देशपांडे ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया।
केस नंबर- आपराधिक रिट याचिका नंबर 775/2023
केस टाइटल- रामचन्द्र मारुति येदागे बनाम महाराष्ट्र राज्य
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