समझौते से अनुबंध समाप्त होने के बाद अनुबंध के तहत विवाद व्यर्थ, मध्यस्थता के लिए नहीं भेजा जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2022-08-18 13:09 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि एक बार जब पार्टियों के बीच समझौता हो जाने के बाद अनुबंध आपसी समझौते से समाप्त हो जाता है तो उक्त अनुबंध के तहत उत्पन्न होने वाला विवाद व्यर्थ है जिसे मध्यस्थता के लिए नहीं भेजा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि समझौते के तथ्य सहित तथ्यों को छुपाने या दबाने वाला पक्षकार मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 11 के तहत राहत का हकदार नहीं है।

जस्टिस जीएस कुलकर्णी की एकल पीठ ने माना कि मामले में मृत मुद्दों को पुनर्जीवित करने और अनुचित मध्यस्थता को लागू करने की अनुमति दी गई, जब उनके बीच अनुबंध पूर्ण समझौते और उनके बीच हुए समझौते के संदर्भ में संतुष्टि से मुक्त हो गया।

आवेदक विश्वजीत सूद एंड कंपनी और प्रतिवादी एल एंड टी स्टेक जेवी ने उप-अनुबंध समझौता किया, जिसके तहत आवेदक को सब-कॉन्ट्रेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया। प्रतिवादी द्वारा कथित रूप से आवेदक द्वारा किए गए कार्य के लिए भुगतान करने से इनकार करने के बाद आवेदक ने मध्यस्थता खंड का आह्वान करते हुए नोटिस जारी किया। प्रतिवादी ने उक्त नोटिस के जवाब में तर्क दिया कि पक्षकारों के बीच समझौता हो गया है, इसलिए पक्षकारों के बीच अनुबंध का निर्वहन किया गया। प्रतिवादी ने कहा कि एक बार समझौते के माध्यम से अनुबंध को समाप्त कर दिया गया, इसके तहत न तो अनुबंध और न ही अनुबंध के तहत उत्पन्न होने वाला कोई विवाद बचा।

नतीजतन आवेदक ने मध्यस्थ न्यायाधिकरण की नियुक्ति के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 11 के तहत आवेदन दायर किया।

प्रतिवादी- एल एंड टी स्टेक जेवी ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि पक्षकारों द्वारा समझौता निष्पादित किया गया और अनुबंध के तहत सभी विवादों को समाप्त कर दिया गया, जिसे आवेदक द्वारा जानबूझकर अपने आवेदन में ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 के तहत दबा दिया गया।

आवेदक विश्वजीत सूद एंड कंपनी ने कहा कि इस मुद्दे पर कि क्या कोई समझौता है और पक्षकार के बीच संतुष्टि हुई है, लेकिन मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा निर्णय लिया जाना आवश्यक है।

यह देखते हुए कि पक्षकारों के बीच समझौता हुआ था, जिसके नियम और शर्तें आवेदक को पूरी तरह से ज्ञात हैं,

अदालत ने प्रतिवादी के इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि आवेदक ने विवाद को मध्यस्थता करने का प्रयास किया।

कोर्ट ने देखा कि पक्षकारों द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के आठ महीने बाद आवेदक का इरादा इस आधार पर निपटान की शर्तों से बाहर निकलने का था कि यह उपयुक्त समझौता नहीं है और मध्यस्थता समझौते को लागू करने के लिए नोटिस जारी किया। कोर्ट ने आगे कहा कि इसके बाद आवेदक ने बिना शर्त पत्र जारी कर उक्त नोटिस को वापस लेते हुए मध्यस्थता का आह्वान किया। उसने पुष्टि की कि विवाद दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा हुआ है। हालांकि, जब प्रतिवादी ने आगे भुगतान की मांग को खारिज कर दिया, जैसा कि आवेदक द्वारा फिर से किया गया, आवेदक ने समझौते को वापस ले लिया और मध्यस्थता का आह्वान करते हुए नया नोटिस जारी किया।

आवेदक की इस दलील को खारिज करते हुए कि निपटान समझौते को निष्पादित करने के लिए प्रतिवादी द्वारा किसी भी तरह के दबाव या दबाव का प्रयोग किया गया, अदालत ने कहा कि जबरदस्ती की उक्त दलीलें बिना किसी सहायक सामग्री के की गई हैं और आवेदक का आचरण स्पष्ट रूप से निंदनीय है।

यह मानते हुए कि अदालत के समक्ष दायर याचिकाओं में पक्षकारों के बीच समझौते के बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया, अदालत ने माना कि आवेदक का इरादा सामग्री को दबाने और अदालत को गुमराह करने का है।

कोर्ट ने कहा,

"इस प्रकार आवेदक की ओर से निपटान से बाहर निकलने और प्रतिवादी को अनुचित मध्यस्थता में घसीटने का स्पष्ट प्रयास प्रतीत होता है ताकि मृत मुद्दों को फिर से जीवित किया जा सके। न्यायालय आवेदकों के ऐसे आचरण से बेखबर नहीं हो सकता है जिसमें राहत के रूप में प्रार्थना की गई, क्योंकि आवेदकों का ऐसा आचरण निश्चित रूप से एक वास्तविक वादी का आचरण नहीं है।"

बेंच ने देखा कि सुगम कंस्ट्रक्शन (पी) लिमिटेड बनाम उत्तर रेलवे प्रशासन (2012) और फाइबरफिल इंजीनियर्स बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2016) में दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि जो पक्षकार तथ्यों को छुपाता या दबाता है तो वह राहत का हकदार नहीं है। ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 के तहत कार्यवाही खारिज किए जाने योग्य है।

बेंच ने कहा कि यह समझौते और संतुष्टि का स्पष्ट मामला है, जिसमें समझौते के तहत पक्षकारों ने पूर्ण और अंतिम निपटान में अनुबंध का निर्वहन करने का फैसला किया।

कोर्ट ने कहा,

"पक्षकारों के बीच किए गए समझौते के आधार पर लाई जाने वाली कानूनी स्थिति यह है कि इस तरह के समझौते से अनुबंध का निर्वहन होगा, जो पक्षकारों द्वारा अनुबंध करने की प्रक्रिया के समान है। उसके बाद निर्णय लेने का आपसी समझौते से अनुबंध का निर्वहन किया जाएगा। इस तरह की घटना को आम कानून में समझौते और प्रतिस्थापित समझौते द्वारा संतुष्टि के रूप में जाना जाता है।"

इसके अलावा, कोर्ट ने नोट किया कि भारत संघ बनाम किशोरीलाल गुप्ता एंड ब्रदर्स (1959) में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब कोई समझौता और संतुष्टि होती है तो मध्यस्थता खंड मूल अनुबंध के साथ ही नष्ट हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह न्यायालय को उसके समक्ष मामले के तथ्यों में तय करना है कि क्या कार्रवाई का कोई कारण न केवल अनुबंध के तहत बल्कि मध्यस्थता समझौते के तहत भी जीवित रहेगा।

इसके अतिरिक्त, भारत संघ और अन्य बनाम मास्टर कंस्ट्रक्शन कंपनी (2011) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर कोर्ट ने देखा कि जहां दावेदार द्वारा डिस्चार्ज वाउचर या नो-क्लेम सर्टिफिकेट या सेटलमेंट एग्रीमेंट की वैधता के संबंध में उठाया गया विवाद प्रथम दृष्टया, विश्वसनीयता में कमी प्रतीत होता है, विवाद मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।

कोर्ट ने कहा,

"जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया कि वर्तमान मामले के तथ्यों में यह स्पष्ट है कि आवेदकों ने प्रतिवादी के साथ समझौता किया। यदि धोखाधड़ी, जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव या दबाव की कोई आशंका थी तो 31 अक्टूबर, 2020 को जिससमझौते की कल्पना की गई थी, उस पर 2 जुलाई, 2021 को कभी भी आवेदकों द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए जा सकते थे।"

यह मानते हुए कि जबरदस्ती के आरोप प्रथम दृष्टया झूठे हैं और इसमें न्यायनिर्णयन की आवश्यकता नहीं है, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पक्षकारों द्वारा किए गए समझौते के संदर्भ में पूर्ण समझौते और संतुष्टि को देखते हुए अनुबंध स्वयं ही समाप्त हो गया।

अदालत ने फैसला सुनाया कि आवेदक मृत मुद्दों को फिर से जीवित करने का प्रयास कर रहा है और प्रतिवादी पर अनुचित मध्यस्थता थोप रहा है। इस प्रकार, बेंच ने आवेदनों को खारिज कर दिया और प्रत्येक आवेदन के लिए आवेदक पर 50,000 / -रुपये का जुर्माना लगाया।

केस टाइटल: विश्वजीत सूद एंड कंपनी बनाम एल एंड टी स्टेक जेवी, मुंबई

दिनांक: 26.07.2022 (बॉम्बे हाईकोर्ट)

आवेदक के लिए वकील: आयुष अग्रवाल a/w, सौरिश शेट्टी, ज्योत्सना कोंधलकर, धनश्री देशपांडे आई/बी. ज्योत्सना कोंधलकरी

प्रतिवादी के लिए वकील: श्याम कपाड़िया, ध्रुव गांधी ए / डब्ल्यू. सनाया दादाचांजी, हिमालय चौधरी आई/बी. एमएस. मणिलाल खेर अंबालाल एंड कंपनी

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