सीटी बजाने के कारण SC/ST एक्ट के तहत बुक किए गए पड़ोसी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी पूर्व जमानत दी, कहा अपने ही घर में आवाज करना यौन मंशा नहीं दिखाता

Update: 2023-01-25 08:28 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति के खिलाफ अत्याचार करने के आरोपी तीन व्यक्तियों को अग्रिम जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने अपने घर में केवल ध्वनि पैदा की थी, जिसका मतलब यह नहीं हो सकता कि यह यौन इरादे से किया गया था।

कोर्ट ने कहा,

"केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति द्वारा उसके घर में कुछ ध्वनि उत्पन्न की जाती है, हम सीधे तौर पर यह अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि यह यह शिकायतकर्ता के प्रति यौन प्रकृति के इरादे के साथ किया गया है। इसलिए, अत्याचार अधिनियम की धारा 3(1)(w)(ii) के तहत भी प्रथम दृष्टया अपराध को आकर्षित नहीं कहा जा सकता है।"

जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस अभय एस वाघवासे की खंडपीठ ने यह भी कहा कि अपीलकर्ताओं ने पहले शिकायतकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की कोशिश की थी लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया।

"जब कानून को मानने वाला एक नागरिक कानूनी प्रक्रिया अपना रहा है और रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन गया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट नहीं ली गई है, तो ऐसे व्यक्ति सुरक्षा के पात्र हैं।"

अपीलकर्ताओं के एक पड़ोसी शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ताओं में से एक उसे इस तरह से देखता था जिससे उसकी लज्जा भंग होती थी। उसने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता ने रात में अपने मोबाइल से उसके घर का वीडियो शूट किया। इसके अलावा वह छत से सीटी बजाता, बर्तनों की मदद से शोर मचाता और अपनी गाड़ी का लगातार रिवर्स हॉर्न बजाता। प्राथमिकी के अनुसार, अपीलकर्ताओं ने शिकायतकर्ता पर पथराव किया जिससे वह और चौकीदार घायल हो गये। एक विशेष न्यायाधीश ने अपीलकर्ताओं की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। इसलिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 14-ए के तहत वर्तमान अपील दायर की गई।

अपीलकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने मुखबिर और उसके पति के खिलाफ कई शिकायती आवेदन दिए थे। पुलिस ने उनकी शिकायतों का संज्ञान नहीं लिया। इन शिकायतों के आवेदनों का बदला लेने के लिए एफआईआर दर्ज की गई है।

शिकायतकर्ता ने जवाबी हलफनामे में कहा कि अधिनियम की धारा 3 (अत्याचार के लिए दंड) के तहत अपराध एफआईआर में किए गए हैं और इसलिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत अधिनियम की धारा 18 के तहत वर्जित है।

अदालत ने कहा कि जातिगत दुर्व्यवहार की पहली कथित घटना में, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी व्यक्तियों ने सामूहिक रूप से उसके साथ दुर्व्यवहार किया था। जाति का नाम गाली का हिस्सा नहीं था। “फिर भी अगर हम मानते हैं कि, वह गाली शिकायतकर्ता का अपमान करने के इरादे से थी; फिर भी, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह कथित तौर पर कोरस में बोला गया है, जो एक अविश्वसनीय कार्य है। कोरस में गालियां नहीं दी जा सकती हैं।”

एफआईआर में आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता के मकान मालिक ने जब शिकायतकर्ता और उसके पति को बुलाया तो उन्होंने भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया। अदालत ने कहा कि गालियों फोन पर दी गई थी और अधिनियम की धारा 3(1)(आर) या 3(1)(एस) को आकर्षित करने के लिए सार्वजनिक दृश्य या सार्वजनिक स्थान पर विचार नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि प्राथमिकी स्पष्ट नहीं करती है कि पथराव की घटना के दौरान शिकायतकर्ता और अपीलकर्ता वास्तव में कहां खड़े थे। इसलिए, यह अधिनियम की धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस) को आकर्षित नहीं करता है।

अधिनियम की धारा 3(1)(डब्‍ल्यू)(1) को आकर्षित करने के लिए, आरोपी को अनुसूचित जाति की एक महिला को यह जानते हुए स्पर्श करना होगा कि वह उस जाति से संबंधित है और स्पर्श सहमति के बिना यौन प्रकृति का होना चाहिए। अदालत ने कहा कि एफआईआर यह नहीं दर्शाती है कि वास्तव में किसी भी अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता के शरीर को यौन मंशा से छुआ था।

धारा 3(1)(डब्‍ल्यू)(2) को आकर्षित करने के लिए, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के प्रति यौन प्रकृति के शब्दों, कृत्यों या इशारों का उपयोग यह जानते हुए किया जाना चाहिए कि वह ऐसी जाति या जनजाति से संबंधित है। अदालत ने कहा कि एफआईआर में ऐसी कथित घटनाओं का कोई विवरण नहीं है, शिकायतकर्ता द्वारा पूर्व में कोई शिकायत फ़ाइल नहीं की गई है।

अदालत ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने में देरी हुई है क्योंकि यह पिछली कथित घटना के लगभग तीन महीने बाद दर्ज की गई थीअपीलकर्ताओं ने तस्वीरें पेश कीं जिसमें शिकायकर्ता और उसका पति अपीलकर्ता के घर का वीडियो भी बना रहे थे।

इस तरह के व्यवहार के उद्देश्य की सुनवाई के समय जांच की जानी चाहिए, अदालत ने कहा, "पर्याप्त सामग्री इस न्यायालय के समक्ष यह अनुमान लगाने के लिए है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट गुप्त उद्देश्य से दर्ज की गई है।"

अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि एफआईआर में प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं बनता है।

केस नंबरः क्रिमिनल अपील नंबर 858 ऑफ 2022

केस टाइटलः योगेश लक्ष्मण पांडव व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य

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