लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधित जनहित याचिका पर विचार करने से पहले कोर्ट को याचिकाकर्ता की साख की बावत संतुष्ट होना चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार संबंधित जनहित याचिका पर विचार करने से पहले कोर्ट को उस व्यक्ति की साख की बावत संतुष्ट होना चाहिए, जिसने कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की है।
जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने राज्य सरकार के एक बर्खास्त कर्मचारी द्वारा राज्य सरकार के वर्तमान कर्मचारी (प्रतिवादी संख्या 6) के खिलाफ अन्य बातों के अलावा उनकी कथित भ्रष्ट गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली जनहित याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायालय ने पाया कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता को प्रतिवादी संख्या 6 के खिलाफ कुछ शिकायत थी और इसलिए, उसने प्रतिवादी संख्या 6 के खिलाफ प्रतिशोध की भावना से एक प्रच्छन्न जनहित याचिका दायर की।
इस संबंध में, हाईकोर्ट ने झारखंड राज्य बनाम शिवशंकर शर्मा 2022 लाइवलॉ (SC) 924 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जनहित याचिका (PIL) दायर करने वाले याचिकाकर्ता की सदाशयता एक अत्यंत प्रासंगिक विचार है और इसकी दहलीज़ पर ही जांच की जानी चाहिए।
नतीजतन, यह पाते हुए कि याचिकाकर्ता ने किसी नेक इरादे के साथ अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया था और यह कि इस मामले में उसकी ओर से दुर्भावना वास्तव में बड़ी थी, अदालत ने उसकी जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
पीठ ने हालांकि जनहित याचिका में अन्य प्रार्थनाओं को प्रासंगिक पाया, जिसमें उत्तर प्रदेश की जेलों में कैदियों की स्थिति में सुधार के लिए राज्य के अधिकारियों को उचित दिशा-निर्देश जारी करना, कैदियों को मजदूरी का भुगतान, जेलों का निर्माण, अपराधों के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कैदियों द्वारा अर्जित राशि से 15% राशि कटौती करके एक कोष का निर्माण आदि शामिल थे।
केस टाइटलः रीवन सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी, प्रधान सचिव के माध्यम से, जेल प्रशासन और सुधार सेवाएं, उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ और अन्य [CRIMINAL WRIT-PUBLIC INTEREST LITIGATION No. - 1 of 2023]
केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 128