(बीफ मामला) : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ ट्विटर पोस्ट के लिए कार्रवाई करने की मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2020-09-18 10:57 GMT

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुवार (17 सितंबर) को बॉलीवुड अभिनेत्री, कंगना रनौत के खिलाफ सोशल मीडिया (ट्विटर) पर एक पोस्ट डालने के मामले में कार्रवाई की मांग करते हुए दायर याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि कंगना ने कथित रूप से ''गोमांस की खपत को बढ़ावा'' दिया है।

न्यायमूर्ति मनोज बजाज की एकल पीठ ने कहा कि-

''कथित (सोशल-मीडिया) पोस्ट को देखने के बाद प्रथम दृष्टया यह नहीं कहा जा सकता है कि यह पोस्ट किसी भी रूप में आईपीसी की धारा 295-ए के तहत दंडनीय अपराध के समान है। इसके विपरीत, यह पोस्ट पर्सन या व्यक्ति को शाकाहारी के रूप में वर्णित करती है, इसलिए यह बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता है कि यह पोस्ट सलाह के माध्यम से गोमांस की खपत को बढ़ावा देती है।''

केस की पृष्ठभूमि

नवनीत गोपी ने हाईकोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक याचिका दायर की थी। जिसमें मांग की गई थी कि प्रतिवादी नंबर 1 से लेकर प्रतिवादी नंबर 4 तक को यह निर्देश जारी किया जाए कि वह उसके ज्ञापन/ शिकायतों पर जांच करवाएं। जिसके बाद प्रतिवादी नंबर यानि कंगना रनौत के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।

यह आरोप लगाया गया था कि उसने गोमांस की खपत को बढ़ावा देने के लिए जानबूझकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालकर याचिकाकर्ता और अन्य लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है।

इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की थी कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा की जाए, चूंकि प्रतिवादी नंबर 5 (कंगना रनौत) के खिलाफ दी गई शिकायतों के परिणामस्वरूप उनके जीवन को खतरा है।

याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 5(कंगना रनौत) द्वारा सोशल मीडिया पर ड़ाली गई ट्विटर पोस्ट पर भी अदालत का ध्यान आकर्षित करते हुए दलील दी थी कि इस सामग्री ने समाज के एक विशेष वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। जो दंडात्मक कानूनों के तहत दंडनीय अपराध के समान है।

यह भी बताया गया था याचिकाकर्ता ने 5 अगस्त 2020 और 20 अगस्त 2020 को क्रमशः एसएचओ,हैबोवाल,लुधियाना और पुलिस आयुक्त,लुधियाना को दो ज्ञापन या अभ्यावेदन सौंपे थे। जिनमें प्रतिवादी नंबर 5 कंगना रनौत के खिलाफ पंजाब गौहत्या निषेध अधिनियम, 1955 (Section 8 of Punjab Prohibition of Cow Slaughter Act, 1955) की धारा 8,सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 व 67 और आईपीसी 1860 की धारा 295-ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी। परंतु प्रतिवादी अधिकारियों ने अब तक इन शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की है।

अंत में याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की थी कि प्रतिवादी अधिकारियों को जरूरी निर्देश जारी किए जाएं।

कोर्ट की टिप्पणी

वकील की दलीलें और याचिका की सामग्री को देखने के बाद अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थनाओं में कोई मैरिट या योग्यता नहीं है।

कोर्ट का मानना था कि कथित पोस्ट को देखने के बाद प्रथम दृष्टया ऐसा कोई सुझाव नहीं मिलता है,जिसके आधार पर यह कहा जा सकें कि यह पोस्ट आईपीसी की धारा 295-ए के तहत दंडनीय अपराध के समान है या किसी ऐसे अपराध का गठन करती है।

इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि-

''याचिकाकर्ता द्वारा जिन अन्य पोस्ट का हवाला दिया गया है,उनमें सिर्फ देश के अंदर व देश से बाहर के खाने के बारे में की गई बातचीत के कुछ अंश थे। अदालत ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कहीं भी नहीं बताया गया है कि प्रतिवादी नंबर 5 ने इन बातों को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था।''

इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि तथ्य और परिस्थितियां प्रतिवादी नंबर 5 के द्वारा किए गए किसी संज्ञेय अपराध का संकेत नहीं देती हैं।

इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए जो प्रार्थना की थी,वह भी खतरे की किसी उचित आशंका पर आधारित नहीं है। चूंकि याचिकाकर्ता की तरफ से किसी ऐसे व्यक्ति या संगठन का कोई विवरण पेश नहीं किया गया था,जिनसे उनको इस तरह की कोई धमकी मिली हो।

वहीं न्यायालय का यह भी मानना है कि याचिकाकर्ता द्वारा दी गई शिकायतों/ अभ्यावेदन में सभी प्रकार के विवरणों का भी अभाव था क्योंकि याचिकाकर्ता या उसके परिवार के खतरे के बारे में इनमें कुछ नहीं बताया गया था। न ही यह बताया गया था कि कथित धमकी किस तरह और कैसे उनको दी गई थी।

उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, न्यायालय ने कहा कि याचिका अस्पष्ट और मिथ्या थी। इसलिए, न्यायालय सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करने के लिए इच्छुक नहीं है।

गौरतलब है कि बृहस्पतिवार (10 सितंबर) को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका को निर्देश दिया था कि सिविक बाॅडी द्वारा अभिनेत्री कंगना रनौत के बांद्रा स्थित पाली हिल के घर में अवैध निर्माण को हटाने के लिए की जा रही कार्रवाई को रोका जाए।

न्यायमूर्ति एस जे कथावाला और न्यायमूर्ति आर आई छागला की खंडपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई की थी और नगर निगम को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था।

अभिनेत्री द्वारा अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया था कि संपत्ति में गैरकानूनी तोड़फोड़ की गई है। जबकि दूसरी ओर बीएमसी ने तोड़फोड़ को उचित ठहराया था।

इसके अलावा, मंगलवार (15 सितंबर) को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दायर एक संशोधित याचिका में, अभिनेत्री ने कहा था कि बांद्रा के पाली हिल में उसके बंगले के 40 फीसदी हिस्से (जिसे वह एक कार्यालय की जगह के रूप में इस्तेमाल करती थी) को ध्वस्त करने के लिए नगर निगम ग्रेटर मुंबई (एमसीजीएम) ने जो कार्रवाई है,वह राज्य में सत्ता में बैठे कुछ लोगों व एमसीजी ने बदले की भावना के चलते की है। चूंकि वह सभी उसके द्वारा उठाए गए सवालों से नाराज हैं।''

अभिनेत्री ने एमसीजीएम द्वारा 10 सितंबर को की गई तोड़फोड़ के कारण उसको हुए नुकसान की भरपाई के लिए 2 करोड़ रुपये की मांग की है। इस मामले में अब मंगलवार (22 सितंबर) को आगे की सुनवाई होगी।

मामले का विवरण-

केस का शीर्षक- नवनीत गोपी बनाम पंजाब राज्य व अन्य

केस नंबर-सीआरएम-एम नंबर 28390/2020

कोरम-न्यायमूर्ति मनोज बजाज

प्रतिनिधित्व- एडवोकेट विनीत कुमार शर्मा (याचिकाकर्ता के लिए)।

आदेश की काॅपी डाउनलोड करें



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