भारतीय लॉ फर्म खुद को विदेशी फर्मों का हिस्सा बताकर काम नहीं कर सकतीं: BCI

Update: 2025-10-22 08:05 GMT

भारतीय बार काउंसिल (BCI) ने भारतीय और विदेशी लॉ फर्मों या वकीलों के बीच अनधिकृत साझेदारी, गठजोड़ या संयुक्त प्लेटफ़ॉर्म के खिलाफ सख्त चेतावनी जारी की है। BCI ने स्पष्ट किया है कि ऐसे समझौते “कानून का अभ्यास” (practice of law) माने जाएंगे और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत पूरी तरह प्रतिबंधित हैं।

21 अक्टूबर 2025 को जारी विस्तृत प्रेस विज्ञप्ति में BCI ने बताया कि 6 अगस्त 2025 की पिछली विज्ञप्ति को वापस लेकर यह नया बयान जारी किया गया है। पहले वाले बयान में कुछ फर्मों के नाम दिए गए थे, जिसे दिल्ली हाई कोर्ट में Atul Sharma बनाम Bar Council of India मामले में दिए गए बयान के बाद वापस लिया गया।

BCI ने चिंता जताई कि कुछ विदेशी लॉ फर्में भारतीय फर्मों के साथ “स्ट्रैटेजिक एलायंस”, “एक्सक्लूसिव रेफरल मॉडल” या “जॉइंट ब्रांडिंग इनिशिएटिव” के रूप में जुड़कर एकीकृत वैश्विक सेवा प्लेटफ़ॉर्म के रूप में खुद को प्रस्तुत कर रही हैं।

BCI ने कहा — “ऐसे गठजोड़ अक्सर Swiss Vereins, रणनीतिक साझेदारी या संयुक्त ब्रांडिंग के माध्यम से बनाए जाते हैं और संयुक्त पहचान के तहत प्रचारित किए जाते हैं। यह एक तरह से विभिन्न न्यायक्षेत्रों में एकीकृत लॉ प्रैक्टिस बनाता है, जो भारतीय कानून के तहत निषिद्ध है।”

BCI ने यह भी कहा कि यह रोक केवल विदेशी फर्मों पर ही नहीं, बल्कि उन भारतीय फर्मों पर भी लागू होती है जो विदेशी फर्म के नाम या ब्रांड के तहत काम करती हैं। अगर कोई भारतीय फर्म खुद को किसी विदेशी नेटवर्क का हिस्सा बताती है, तो उसे भी विदेशी फर्म के समान माना जाएगा — यानी वह भारत में कानून का अभ्यास कर रही है, जो वर्जित है।

BCI ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा — “Advocates Act न केवल व्यक्तिगत वकीलों पर लागू होता है, बल्कि कंपनियों, फर्मों, एसोसिएशनों या किसी अन्य कानूनी इकाई पर भी लागू होता है। यदि यह रोक किसी विदेशी वकील पर लागू होती है, तो यह विदेशी लॉ फर्म या किसी ग्रुप पर भी उतनी ही सख्ती से लागू होगी।”

नियामक ढांचा (Regulatory Framework)

BCI ने Bar Council of India Rules for Registration and Regulation of Foreign Lawyers and Foreign Law Firms in India, 2023 (2025 में संशोधित) का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी विदेशी इकाई को भारत में सीमित गतिविधियों की अनुमति केवल पंजीकरण के बाद ही मिल सकती है।

विदेशी लॉ फर्में केवल “विदेशी कानून” या “अंतरराष्ट्रीय कानून” से संबंधित गैर-विवादित (non-litigious) मामलों में ही सलाह दे सकती हैं। वे भारतीय कानून पर सलाह नहीं दे सकतीं, न ही भारतीय अदालतों या ट्रिब्यूनलों में पेश हो सकती हैं।

BCI ने सुप्रीम कोर्ट के Bar Council of India v. A.K. Balaji (2018) फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि विदेशी वकील अनुबंध या अन्य माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय कानून का अभ्यास नहीं कर सकते। गतिविधि का वास्तविक स्वरूप निर्णायक है, न कि उसका नाम या रूप।

शो-कॉज़ नोटिस और कार्रवाई

BCI ने खुलासा किया कि उसने ऐसी साझेदारियों में शामिल कई संस्थाओं को पहले ही शो-कॉज़ नोटिस जारी किए हैं और उनसे स्पष्टीकरण मांगा है।

जिन संस्थाओं ने अभी तक जवाब नहीं दिया है, उनके खिलाफ पेशेवर दुर्व्यवहार, निलंबन या प्रैक्टिस से हटाने की कार्रवाई की जा सकती है।

BCI ने यह भी कहा कि मीडिया प्रचार, संयुक्त ब्रांडिंग या लॉन्च इवेंट्स के माध्यम से ऐसे गठजोड़ों का प्रचार करना विज्ञापन और ग्राहक-प्रलोभन (solicitation) माना जाएगा, जो वकीलों के आचार संहिता के तहत प्रतिबंधित है।

मध्यस्थता (Arbitration) पर स्पष्टीकरण

BCI ने स्पष्ट किया कि विदेशी वकील केवल अंतरराष्ट्रीय पंचाट (international arbitration) में विदेशी कानून से जुड़े मामलों में ही “Fly-in Fly-out” प्रावधान के तहत भाग ले सकते हैं।

यदि विवाद भारतीय कानून से संबंधित है, या जहाँ शपथ पर साक्ष्य दर्ज किया जाता है, वहाँ विदेशी वकील की भागीदारी भारतीय कानून का अभ्यास मानी जाएगी, जो प्रतिबंधित है।

BCI ने कहा —

“यदि पंचाट न्यायाधिकरण (arbitral tribunal) भारत में स्थित है और साक्ष्य को शपथ पर दर्ज करता है, तो विदेशी वकीलों की भागीदारी उस प्रक्रिया में वर्जित होगी। विदेशी वकील केवल उन विवादों में भाग ले सकते हैं जो विदेशी या अंतरराष्ट्रीय कानून से संबंधित हों, और तभी जब साक्ष्य शपथ पर न लिया जाए।”

सार्वजनिक संचार पर दिशा-निर्देश

BCI ने कहा कि लॉ फर्मों की सार्वजनिक जानकारी केवल उनके नाम, पता, संपर्क विवरण और कार्यक्षेत्र तक सीमित होनी चाहिए।

किसी भी “मर्जर”, “लॉन्च” या “ग्लोबल ब्रांड” के नाम पर प्रचार करना जांच के दायरे में आएगा।

अंत में BCI ने कहा कि भारत विदेशी वकीलों के लिए “उदार लेकिन पारदर्शी” ढांचा बनाए रखेगा —

वे केवल अंतरराष्ट्रीय या विदेशी कानून से संबंधित मामलों में ही भारत में काम कर सकते हैं, लेकिन किसी भी तरह की संयुक्त पहचान या एकीकृत प्रैक्टिस संरचना भारतीय फर्मों के साथ कानूनी रूप से अस्वीकार्य होगी।

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