धोखाधड़ी रोकने के लिए नॉन-बेस ब्रांच में सीलिंग लिमिट लागू करने वाले बैंक बैंकिंग विनियम अधिनियम या एनआई अधिनियम का उल्लंघन नहीं करते: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि नॉन-बेस ब्रांच में भारतीय रिज़र्व बैंक के सर्कुलर के आधार पर हाई लिमिट निर्धारित करने वाले बैंक बैंकिंग विनियमन अधिनियम का उल्लंघन नहीं करते।
जस्टिस एन सतीश कुमार ने आगे कहा कि जब अकाउंट होल्डर ने नॉन-बेस ब्रांच पर लगाए गए सभी प्रतिबंधों को जानते हुए खुद बैंक अकाउंट खोला तो वह बाद में यह शिकायत नहीं कर सकता कि यह उसके संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है।
जब अकाउंट होल्डर ने नॉन-बेस ब्रांच में चेक का भुगतान करने में सभी प्रतिबंधों के साथ सचेत रूप से अकाउंट खोला तो वह शिकायत नहीं कर सकता कि यह संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन है। जब रिज़र्व बैंक के पास कानून के तहत आवश्यक दिशानिर्देश तैयार करने की शक्ति है और बैंकों ने भी धोखाधड़ी को रोकने के लिए अपनी नीति बनाई है तो यह नहीं कहा जा सकता कि इस तरह के प्रतिबंध वास्तव में रिट याचिकाकर्ताओं के संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
वर्तमान मामले में दूसरा याचिकाकर्ता आईसीआईसीआई बैंक (बैंगलोर शाखा) का अकाउंट होल्डर है। उन्होंने प्रथम याचिकाकर्ता के नाम पर 48,000 रुपये जमा किए, जिन्हें दूसरे याचिकाकर्ता के बेटे के एडमिशन फीस और अन्य खर्चों के भुगतान के लिए राशि वापस लेने के लिए खर्च कर दिए। जब प्रथम याचिकाकर्ता ने इसे आईसीआईसीआई बैंक की नुंगमबक्कम ब्रांच में प्रस्तुत किया तो उसे बताया गया कि केवल 15,000/- रुपये से कम राशि का ही भुगतान किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जब अकाउंट होल्डर पर्याप्त राशि होने के बावजूद अपनी आपातकालीन जरूरतों के लिए पैसा भी नहीं निकाल सकता तो यह निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के साथ-साथ बैंकिंग विनियमन अधिनियम के प्रदर्शन उद्देश्यों के खिलाफ है। इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने आरबीआई के सर्कुलर को यह कहते हुए चुनौती दी कि आरबीआई एक परिसीमा तय करते हुए राशि की निकासी से इनकार करने के लिए मनमाना नियम नहीं बना सकता।
उत्तरदाताओं ने कहा कि उच्चतम परिसीमा को यह देखने के बाद लगाया गया कि धोखाधड़ी आम तौर पर निर्धारित सुरक्षा उपायों का पालन न करने के कारण होती है। चूंकि जिन मुख्य क्षेत्रों में धोखाधड़ी हुई है, वे जमा खातों से धोखाधड़ी से धन की निकासी के माध्यम से हुई हैं, इसलिए आरबीआई ने बैंकों को उपयुक्त परिसीमा तय करने के लिए सर्कुलर जारी किया, जिसके आगे कोई नकद निकासी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि अकाउंड होल्डर सीधे निकासी के लिए उपस्थित न हो।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि इन सर्कुलर की भाषा अनुशंसात्मक है, अनिवार्य नहीं है। सर्कुलर का उद्देश्य केवल ग्राहकों के हितों की रक्षा करना है न कि उन्हें कोई असुविधा पहुंचाना। इन दिशानिर्देशों की जानकारी खाताधारकों को अकाउंट खोलते समय दी गई। इस प्रकार, बैंक के नियमों और शर्तों का पालन करने के लिए खाताधारक की ओर से स्पष्ट सहमति है और उस पर किसी तीसरे पक्ष द्वारा सवाल नहीं उठाया जा सकता।
अदालत ने कहा कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 5 (सी) (ए) के तहत रिज़र्व बैंक के पास बैंकिंग प्रणाली के हित में दिशानिर्देश या नीतियां बनाने का अधिकार है। इसी अधिकार के तहत आरबीआई ने दिशा-निर्देश जारी कर बैंकों को गैर-आधार शाखाओं में अधिकतम सीमा को सीमित करने वाली नीतियां बनाने की सिफारिश की। सार्वजनिक हित में नीतियां निर्धारित करने या देश की वित्तीय प्रणाली को विनियमित करने के लिए आरबीआई अधिनियम की धारा 45JA के तहत बैंक को समान शक्ति दी गई है। इस प्रकार, बैंकिंग विनियमन अधिनियम या आरबीआई अधिनियम का कोई उल्लंघन नहीं हुआ।
इस प्रकार, याचिका में कोई योग्यता नहीं पाते हुए अदालत ने इसे खारिज कर दिया।
अदालत ने यह भी कहा कि प्रतिबंधों को संशोधित करने और सीलिंग लिमिट को बढ़ाने के लिए यह आरबीआई और अन्य बैंकों के लिए खुला है।
हालांकि, यह रिज़र्व बैंक और बैंकों पर है कि वे उपलब्ध ऑनलाइन सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए प्रतिबंधों को संशोधित करें और पार्टियों और बैंकों के अधिकारों को संतुलित करने के लिए अधिकतम सीमा को बढ़ाने के लिए संपूर्ण प्रणाली इंटरनेट पर है।
केस टाइटल: जी दीपा व अन्य बनाम महाप्रबंधक व अन्य
साइटेशन: लाइवलॉ (Mad) 480/2022
केस नंबर: डब्ल्यू.पी.नंबर 18656/2008
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